भारत में "खाना" सुरक्षित हुआ
५ जुलाई २०१३सरकार का कहना है कि इस नई नीति में 23 अरब रुपये खर्च होंगे और इस तरह खाने के लिए सरकार हर साल जो 90 अरब रुपये देती है, उसका दायरा बढ़ जाएगा. सरकार का दावा है कि इससे 81 करोड़ लोगों के खाने की जरूरतें पूरी हो सकेंगी.
इस नीति को अमल में लाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का बड़ा रोल रहा, जिन्होंने 2009 के चुनाव में इसका वादा किया था और वित्तीय स्थिति बहुत अच्छी न होने के बाद भी इसे आगे बढ़ाया. कांग्रेस के टॉम वडक्कन का कहना है, "अगर भुखमरी जैसी बुनियादी चीजों से नहीं निपटा जा सका, तो आप विकास की बात नहीं कर सकते हैं." वडक्कन का कहना है कि यह नीति गरीबी मिटाने का "खेल बदल देने" की हैसियत रखती है.
कुपोषण के शिकार
दो दशक के जबरदस्त आर्थिक विकास के बाद भी भारत में सभी को भर पेट खाना नहीं मिल पाता है. पिछले साल के एक सर्वे में बताया गया कि पांच साल से कम उम्र के 42 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. खाने की नई स्कीम में तय किया गया है कि हर महीने हर व्यक्ति को पांच किलो खाना सिर्फ एक रुपये प्रति किलो की दर से मुहैया कराया जाएगा.
विरोधी खेमे की दलील है कि 2014 के चुनाव से पहले इस तरह के एलान सिर्फ वोट हासिल करने के तरीके हैं. हालांकि वडक्कन का कहना है, "अगर इससे हमें वोट मिलते हैं, तो यह अलग बात है. जाहिर सी बात है कि अगर आप कुछ अच्छा करेंगे, तो आप लोकप्रिय भी होंगे."
इस नीति को कानून बना कर अमल में लाने के लिए कांग्रेस को इसे संसद में पास कराना होगा और इसके लिए जरूरी है कि संसद की कार्यवाही ठीक ढंग से चले. पिछले कुछ सत्रों में भ्रष्टाचार और महंगाई की वजह से कार्यवाही बुरी तरह प्रभावित हुई है. बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह का कहना है, "यह सिर्फ एक राजनीतिक नाटक है और वह भी जल्दबाजी में किया गया है."
अर्थव्यवस्था साथ नहीं
अगर आर्थिक नजर से देखा जाए, तो धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था के इस दौर में क्या भारत इतनी सब्सिडी देने की स्थिति में है. जानकारों का कहना है, "नहीं." नोमूरा सिक्योरिटी की सोनम वर्मा कहती हैं, "भारत की मौजूदा वित्तीय स्थिति उसे इस नीति को लागू करने की इजाजत नहीं देती है."
भारत में विकास दर सिर्फ पांच फीसदी रह गया है, जो पूरे दशक का सबसे कमजोर विकास दर है. इसके अलावा भारतीय रुपया लगातार नीचे की ओर लुढ़क रहा है. हाल ही में इसने डॉलर के मुकाबले 60 रुपये की सीमा भी पार कर ली है.
भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को मिट्टी तेल, गैस सिलेंडर, खाद और गेहूं पहले से ही राशन के जरिए सस्ते दाम पर मिलता है. हालांकि दुनिया की सबसे बड़ी राशन प्रणाली अपने भ्रष्टाचार की वजह से चर्चा में रहती है. जिन 36 करोड़ लोगों को ये राशन मिलना चाहिए, उनका दावा है कि उन्हें खराब क्वालिटी का माल दिया जाता है.
कहां जाता है अनाज
भारतीय योजना आयोग ने 2005 में एक रिसर्च किया था, जिसमें पाया गया कि सरकार ने गरीबों के लिए जो अनाज खरीदा, उसका 58 फीसदी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाया. बार्कलेस के प्रमुख भारतीय अर्थशास्त्री सिद्धार्थ सान्याल का कहना है कि इस नीति से जबरदस्त लॉजिस्टिक समस्या आने वाली है और सभी राज्यों के सहयोग की जरूरत है.
जबरदस्त अनाज उत्पादन के बाद भी भारत में प्रबंधन की समस्या है. कई तस्वीरों में अनाज को सड़ते या चूहों की भेंट चढ़ते देखा जाता रहा है. इस मामले को लेकर किसानों ने बहुत उत्साह नहीं दिखाया है. उनका कहना है कि सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया, जो पूरे राष्ट्र में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं.
अंतरराष्ट्रीय कृषि संस्था आईएसीजी के अध्यक्ष एमजे खान का कहना है, "अगर सरकार इसे सही ढंग से लागू करे, तो गरीबों का भला हो सकता है. लेकिन वितरण प्रणाली को बेहतर करने की जरूरत है."
एजेए/एनआर (एएफपी)