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भारहीनता का अनुभव कराने वाली उड़ान

५ मई २०१७

बड़े चरखेनुमा झूले में नीचे आते समय भारहीनता का हल्का सा अहसास होता है. एक खास विमान में ऐसा अभ्यास अंतरिक्ष यात्रियों को बार बार कराया जाता है ताकि वे अंतरिक्ष में लंबे समय समय तक भारहीनता में रह सकें.

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Parabel 1 Airbus 300 Operation ESA/DLR Zero Gravity
तस्वीर: Novospace

हवा में उड़ने का सपना सबका होता है, लेकिन कुछ लोगों के लिए ये सपना सच हो गया है. भले ही यह कुछ ही समय के लिए हो. वे पैराबोला उड़ान पर हैं.  इस विमान पर कुछ पलों के लिए हमारी धरती पर हर जगह मौजूद गुरुत्वाकर्षण को कुछ देर के लिए खत्म कर दिया जाता है. यात्रियों के लिए एक कभी न भूलने वाला रोमांच.

पैराबोला उड़ानों के लिए ऐसे विमानों की जरूरत होती है जो कलाबाजियां करने में सक्षम हों, जैसे कि यह एयरबस ए 300 जीरो जी. इस विमान पर भारहीनता की स्थिति का सामना करने वाले ज्यादातर यात्रियों को पहली बार मितली से दो चार होना पड़ता है. लेकिन उसके बाद रोलर कोस्टर की सवारी जैसा मजा आने लगता है. ऐसा ही प्रोजेक्ट लीडर उलरीके फ्रीडरिष के साथ भी हुआ था, "मेरी पहली पैराबोला उड़ान 2003 में हुई. मैंने खुद से कहा था कि प्रोजेक्ट लीडर होने के नाते मुझे इसका अनुभव होना ही चाहिए और मुझे इस उड़ान पर वोमिटिंग बैग का इस्तेमाल करना पड़ा था. लेकिन भारहीनता का मजा, आजादी, अपना भार महसूस नहीं करने का अनुभव, हर तरफ जाने की आजादी, ये सब इतना मजेदार था कि पहली उलटी मुझे बार बार उड़ने से नहीं रोक पाई."

उड़ान की शुरुआत से पहले हर यात्री की डॉक्टरी जांच की जाती है और उन्हें मितली के खिलाफ एक इंजेक्शन दिया जाता है. छोटी अवधि की भारहीनता का इस्तेमाल बोर्ड पर परीक्षणों के लिए होता है.  आज भारहीनता की स्थिति में इस बात का टेस्ट होगा कि दिमाग किस तरह काम करता है. यह अंतरिक्षयात्रियों के लिए जरूरी होता है जो बहुत सारा समय अंतरिक्ष में भारहीनता में गुजारते हैं. अनुभव ने दिखाया है कि उनका शारीरिक समन्वय प्रभावित होता है यानि मांशपेशियों और दिमाग का तालमेल बदल जाता है.

Parabelkurve Operation ESA/DLR Zero Gravity
वलयाकार उड़ान के दौरान सामने आती है भारहीनतातस्वीर: DLR

विमान में रोलर कोस्टर राइड की शुरुआत. टेस्ट एयरबस ऐसे इलाके से उड़ाया जाता है जहां दूसरे विमानों के उड़ने पर रोक है. रिसर्चर पहले खुद को और फिर दूसरे लोगों को परीक्षण के लिए तैयार करते हैं. सबसे पहली जिम्मेदारी होती है शांत रहना. उड़ान की ऊंचाई 6000 मीटर. प्लेन की स्पीड 800 किलोमीटर प्रति घंटा. और फिर शुरू होती हैं विमान की कलाबाजी. विमान को उठा दिया जाता है जैसे कि वह ऊपर फेंकी गई कोई चीज हो.

पहले तो 50 डिग्री की चढ़ाई और उसके बाद फिर अचानक उसे नीचे गिरने के लिए छोड़ देना. ये वह घड़ी है जिसमें धरती का गुरुत्वाकर्षण काम नहीं करता. पाइलट द्वारा विमान को फिर से कंट्रोल में लेने तक करीब 20 सेकंड का रोमांचक अनुभव.

और अब शुरू होता है एक्सपेरिमेंट का दौर. लोगों के सिर पर इलेक्ट्रोड लगी टोपी होती है. सबसे पहले शांति की स्थिति में दिमाग की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जाता है. रिसर्चरों और टेस्ट में शामिल लोगों के लिए एक्रोबेटिक जैसी स्थिति होती है. उन्हें स्ट्रेस टेस्ट देना है. भारहीनता में कई बार शारीरिक समन्वय काम नहीं करता, लेकिन अंतरिक्ष में तैनात यात्रियों को लंबे समय तक सब कुछ नियंत्रण में रखना होता है.

Wissenschaftler bei Parabelflug
इंसान के शरीर को नहीं है भारहीनता की आदततस्वीर: DLR

श्टेफान श्नाइडर इस प्रोजेक्ट के प्रमुख हैं. श्नाइडर कहते हैं, "जैसे ही शुरुआत होती है, मेरी जगह यहां होती है, जहां मैं डाटा रिकॉर्ड करता हूं. टेस्ट पर्सन उस तरफ बैठते हैं, उजले हिस्से में, जहां दूसरा ऑपरेटर उन्हें निर्देश देता है, सारी एक्टिविटी वाई फाई की मदद से रिकॉर्ड की जाती है, टेस्ट पर्सन सचमुच फ्री होते हैं, वे उड़ सकते हैं और उन्हें बिल्कुल अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसा अनुभव होता है."

सिर्फ दो मिनट के बाद दूसरी कलाबाजी. यात्रियों को एक उड़ान के दौरान कोई 30 बार बादलों के बीच भारहीनता का अनुभव मिलता है. मांशपेशियों की ट्रेनिंग, किसी साइंस फिक्शन की तरह. लेकिन फिल्मकार भी यहां प्रेरणा लेने आते हैं. ताकि वे अपनी फिल्मों में इस तरह के सीन को वास्तविक बना सकें और उस दौरान सामने आने वाली भाव, भंगिमा और प्रतिक्रियाओं को भी.

भारहीनता की स्थिति अपने आप कल्पना से परे है क्योंकि आम तौर पर वह प्रकृति में नहीं दिखती. यह प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध है और यह लोगों को अलग अलग अनुभव की संभावना देती है. विज्ञान का वह हिस्सा जिसमें मजा आता है. इस उड़ान के दौरान जो जानकारी जुटाई जाती है उसका फायदा सिर्फ अंतरिक्ष में जाने की तैयारी में ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों को मिलता है. मांशपेशियों और हड्डियों के इलाज में भी.

(ब्रह्मांड में अजूबों की भरमार)

 

 

DW Mitarbeiterportrait | Mahesh Jha
महेश झा सीनियर एडिटर