मजदूरों की जान से खेलता कतर
३ अक्टूबर २०१३ब्रिटिश अखबार गार्डियन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निर्माण वाली जगहों में करीब 44 नेपाली मजदूरों की मौत हो चुकी है. रेगिस्तान की गर्मी में काम कर रहे इन मजदूरों को पीने का पानी नहीं दिया गया. उन्हें सुबह से शाम तक काम लिया जाता रहा. जब पुलिस वहां जाती तो मजदूरों को अधिकारियों की नजरों के सामने नहीं आने दिया जाता था.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के लिए खोज कर रहे रामेश्वर नेपाल ने कहा कि मजदूरों को कई हफ्तों तक पैसे नहीं दिए जाते, उन्हें बिना हेल्मेट और दस्तानों के काम करना पड़ता है.
रामेश्वर के मुताबिक कतर में मजदूरों के लिए सबसे बड़ी परेशानी "कफाला" है. यह मजदूरों को काम पर लगाने का एक तरीका है जिसमें उन्हें कंपनी छोड़ने और घर जाने के लिए अपने ठेकेदार से इजाजत लेनी पड़ती है. ठेकेदार मजदूरों के पासपोर्ट भी अपने पास रख सकते हैं. रामेश्वर कहते हैं, "यह बंधुआ मजदूरी की तरह है क्योंकि ठेकेदार की अनुमति के बिना मजदूर किसी दूसरी कंपनी में नहीं काम कर सकते जहां उन्हें ज्यादा अच्छे पैसे मिलें."
रामेश्वर दोहा में एक मजदूर कैंप भी गए जहां 50 लोग बिना खाने के एक हफ्ते से रह रहे थे. "मजदूरों के कमरे छोटे थे और उन्हें बंक वाले बिस्तरों पर सोना पड़ रहा था. बिजली नहीं थी और गर्मी बहुत ज्यादा थी."
सामाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में बुधातोकी नाम के एक मजदूर ने कहा कि जिस इमारत में उसे रखा गया, उसमें दरारें थीं और वह बिलकुल ढहने की कगार पर थी. बुधातोकी ने किसी तरह हिम्मत जुटाकर नेपाल दूतावास को फोन लगाया. मामले का पता चलने के बाद ठेकेदार से कहा गया कि वह बुधातोकी का पासपोर्ट वापस करे. इस तरह बुधातोकी वापस अपने देश लौट सका. बुधातोकी की किस्मत अच्छी थी वरना आए दिन काठमांडू हवाई अड्डे पर मजदूरों की लाशें पहुंचती हैं. दुर्गा देवी का पति डोल बहादुर की कतर में मौत हो गई. दुर्गा की तरह ऐसे कई लोग हैं जो खाड़ी देशों से आ रहे पैसों पर निर्भर है. डोल बहादुर की मौत के बाद ठेकेदारों ने उसके परिवार को करीब सात लाख नेपाली रुपये दिए. ये रकम अंतिम संस्कार और परिवार के खर्चे में खत्म हो गई.
कतर पर सख्ती
फीफा सहित कई अंतरराष्ट्रीय संगठन कतर के प्रमुख से इस पर सफाई मांग रहे हैं. उधर ब्रसेल्स में अंतरराष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कंफेडरेशन आईटीयूसी ने कहा है कि कतर निर्माणस्थलों में निगरानी बढ़ाने के अलावा और कोई बात नहीं कह रहा है. आईटीयूसी की महासचिव शैरन बरो ने कहा, "हमें ऐसे कानून चाहिए जो मजदूरों को यूनियन में शामिल होने का हक दे, उन्हें सौदा करने का और असुरक्षित काम करने से मना करने का अधिकार दे." बरो अब अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ में शिकायत दर्ज करने की तैयारी कर रहे हैं.
आईटीयूसी के मुताबिक हर साल बुरी परिस्थितियों की वजह से कतर में 400 मजदूर जान गंवाते हैं. इस वक्त वहां करीब तीन लाख नेपाली और चार लाख से ज्यादा भारतीय कामगार हैं.
एमजी/ओएसजे(एएफपी, रॉयटर्स)