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मध्य पूर्व में सक्रिय हुआ चीन

१९ जून २०१३

मध्यपूर्व की समस्या में चीन अपनी दिलचस्पी बढ़ा रहा है. विशेष दूत की नियुक्ति के साथ ही उसने इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की मेजबानी की है. अमेरिका से निराश अरब चीन की बढ़ती सक्रियता को उसका जवाब मान रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

संयुक्त राष्ट्र में फलीस्तीनी राजदूत ने मध्यपूर्व की शांति प्रक्रिया में चीन की सक्रियता की सराहना की है. फलीस्तीन का कहना है कि इससे दूसरे देशों की कोशिशों को बढ़ावा मिलेगा और इसका विस्तार होना चाहिए. चीन में संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन के दौरान फलीस्तीनी राजदूत रियाद मनसौर ने यह बात कही. चीन मध्यपूर्व की समस्या को खत्म करने के लिए दो राष्ट्र की नीति को आगे ले जाने पर काम कर रहा है. इसके लिए बीजिंग में दो दिन का सम्मेलन बुलाया गया है. यह सम्मेलन चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत के साथ इलाके में अपना कूटनीतिक असर बेहतर करने की उसकी कोशिशों का हिस्सा माना जा रहा है. मनसौर ने बीजिंग में पत्रकारों से कहा, "हम मानते हैं कि चीन एक अहम राजनीतिक ताकत है जो दूसरे राजनीतिक लोगों के साथ मिल कर की जा रही कोशिशों में रचनात्मक और सकारात्मक योगदान दे सकता है."

यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलनों का हिस्सा है जिसमें संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी, राजनयिक, शिक्षाविद के साथ फलीस्तीन और इस्राएल के वर्तमान और पूर्व सांसद शामिल होते हैं. किसी ठोस उपाय या नतीजे की उम्मीद तो फिलहाल नहीं है लेकिन यह बैठक फलीस्तीन के लिए चीन के समर्थन को संतुलित करने की कोशिश को जरूर महत्व दिला गई है. चीन की सउदी के तेल पर भारी निर्भरता तो है ही साथ में वह इस्राएल से अर्धसैनिक बलों के प्रशिक्षण और जल प्रबंधन से जुड़ी उच्च तकनीक भी आयात करना चाहता है.

China Israel Netanjahu in Peking 08.05.2013
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मध्यपूर्व में संतुलन की कोशिश तो पिछले महीने भी नजर आई थी जब चीन ने फलीस्तीनी नेता महमूद अब्बास और इस्राएली राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू को एक ही हफ्ते में सरकारी दौरे पर बुलाया. अब्बास तो संक्षिप्त और औपचारिक दौरे पर आए लेकिन नेतन्याहू पांच दिन रहे और कारोबारी इलाके शंघाई का दौरा किया. दोनों के बीच कारोबारी समझौतों पर भी चर्चा हुई जिससे चीन इस्राएल का कारोबार बढ़ कर आठ अरब डॉलर सालाना तक चला जाएगा.

चीन ने मध्यपूर्व में अपनी सक्रियता बढ़ाने के लिए 2009 में एक विशेष दूत की नियुक्ति की और बातचीत में उलझे बगैर वहां के प्रमुख राजनीतिक गुटों से संपर्क शुरू किया. जानकारों का कहना है कि बिना किसी पार्टी के साथ गए वहां उच्च कूटनीतिक दर्जा हासिल करने की चीन की कोशिश कामयाब हुई है.

Obama in Berlin Rede Brandenburger Tor
तस्वीर: Christof Stache/AFP/Getty Images

अमेरिका लंबे समय से मध्यपूर्व की समस्या को हल करने की फिराक में है तो ऐसे मे चीन की इस कोशिश क्या सफल होगी? बर्लिन के थिंक टैंक जर्मन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में चीन के जानकार जोसेफ जैनिंग ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह तो साफ नहीं कहा जा सकता कि चीन के पास अमेरिका की तुलना में ज्यादा तरीके है क्योंकि इस्राएल को रुख बदलने पर समझाने में अमेरिका ही कारगर है. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए इस तरह की कोशिशों से शांति की अमेरिकी कोशिश पर असर होगा. अरब के अलावा फलीस्तीनी भी खासतौर से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से दुखी हैं. इन्हें मध्यपूर्व पर अमेरिकी नीतियों में ओबामा से बदलाव की उम्मीद थी. मेरा ख्याल है कि शांति प्रक्रिया में चीन की बढ़ती सक्रियता को अरब अमेरिका को यह संदेश देना चाहते हैं कि अगर तुम निष्क्रिय रहे तो दूसरे लोग सक्रिय होंगे." (चीन को समझाता अमेरिका)

विश्लेषक मानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के बैठक की मेजबानी अरब की उस इच्छा का असर भी हो सकता है जो मध्यपूर्व के विवाद में अमेरिका के इस्राएल के प्रति झुकाव को चीनी ताकत से संतुलित करने की है. इसके साथ ही सीरिया के गृहयुद्ध को लेकर चीन की आलोचनाओं के जवाब में भी यह किया गया हो ऐसा भी हो सकता है. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि चीन इस मामले में अमेरिका, रूस और दूसरे देशों को साथ लेकर ही चलना चाहेगा क्योंकि उसकी मंशा अपने कूटनीतिक दर्जे को बढ़ाने की है.

रिपोर्ट: एनआर/गाब्रिएल डोमिन्गवेज (एपी)

संपादनः महेश झा

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