मिस्र की मार तेल पर
४ जुलाई २०१३कच्चे तेल की कीमत पहले ही तय कर ली जाती है. अगस्त के मध्य के लिए तय कीमत 101.24 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया है. समझा जाता है कि पूरी दुनिया कि अर्थव्यवस्था तेल की कीमतों से प्रभावित होती है. मई के बाद तेल अपनी सबसे ऊंची कीमत पर पहुंचा है. मिस्र की घटना के अलावा अमेरिकी ऊर्जा शेयरों में मंदी भी इसकी वजह बताई जा रही है.
कारोबारियों को इस बात का खतरा है कि मिस्र में सैनिक तख्ता पलट के बाद वहां से तेल की ढुलाई मुश्किल में पड़ जाएगी. मध्य पूर्व से निकाले जाने वाले तेल की ढुलाई के लिए मिस्र बेहद अहम पड़ाव है. मिस्र के राष्ट्रपति मुहम्मद मुर्सी ने इस्तीफा देने की लोगों की मांग को अनदेखा कर दिया और आखिरकार देश की सेना ने उन्हें सत्ता से हटा दिया और नजरबंद कर लिया.
मिस्र एक तेल उत्पादक देश नहीं है लेकिन यह दुनिया के सबसे व्यस्त पानी के रास्ते को नियंत्रित करता है. दुनिया भर के कारोबार का रास्ता स्वेज नहर से होकर गुजरता है.
सऊदी अरब और मध्य पूर्व के दूसरे देशों में विश्व जरूरत का एक चौथाई कच्चा तेल निकलता है. यह करीब 2.3 करोड़ बैरल है, जिसमें से प्रति दिन दो बैरल तेल स्वेज नहर से होकर जाता है. यह इलाका भूमध्यसागर को लाल सागर से जोड़ता है.
सिंगापुर से मिली खबरों के मुताबिक निवेशक मिस्र की स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और समझा जाता है कि इससे विश्व कारोबार पर भी असर पड़ सकता है. ऑस्ट्रेलियाई शहर सिडनी में फैट प्रोफेट्स के डेविड लेनॉक्स का कहना है, "पिछले दिनों जो बढ़त देखी गई थी, वह खत्म हो रही है. इसकी एक बड़ी वजह मिस्र में सरकार का गिरना है. अब बाजार के लोग देखना चाह रहे हैं कि जो लोग पहले सरकार में थे, वह आगे क्या कदम उठाते हैं."
मिस्र में भले ही सेना ने राष्ट्रपति को पद से हटा दिया हो लेकिन वहां हफ्ते भर चली हिंसा में लगभग 50 लोग मारे गए.
लेनॉक्स का कहना है कि कीमतों पर इसका और ज्यादा असर नहीं पड़ेगा लेकिन अगर यह मामला दूसरे देशों में भी फैलता है, तो बाजार प्रभावित हो सकता है.
एजेए/एनआर (एएफपी)