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मैर्केल को चुनौती देते श्टाइनब्रुक

७ सितम्बर २०१३

विपक्षी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के चांसलर पद के उम्मीदवार पेयर श्टाइनब्रुक को पैनी बुद्धि वाला, प्रखर वक्ता और जाना माना वित्त विशेषज्ञ माना जाता है. सर्वे के खराब नतीजों के बावजूद उन्हें जीतने का भरोसा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में एसपीडी के पूर्व चांसलर हेल्मुट श्मिट ने अपनी पार्टी के साथी श्टाइनब्रुक के बारे में 2011 में ही कहा था, "वे कर सकते हैं." उन्होंने शतरंज की एक बाजी के दौरान उनके गुणों की तारीफ की थी. श्मिट के लिए इस बात का कोई मायने नहीं था कि हैम्बर्ग में पैदा हुए और बाद में देश के वित्त मंत्री रहे 66 वर्षीय अर्थशास्त्री को स्कूल में गणित में खराब नंबर मिलते थे और हायर सेकंडरी से पहले दो दो बार एक ही क्लास में रहे थे. श्मिट के लिए यह बात अहम थी कि अर्थशास्त्र की पढ़ाई के बाद श्टाइनब्रुक ने श्मिट के चांसलर कार्यालय में युवा अधिकारी के रूप में काम किया और विभिन्न विभागों से होते हुए देश के सबसे बड़े प्रांत नॉर्थराइन वेस्टफेलिया के मुख्यमंत्री और 2005 में जर्मनी के वित्त मंत्री बने.

नॉर्थराइन वेस्टफेलिया के चुनावों में वे सीडीयू से हार गए. कुछ ही समय बाद संसदीय चुनावों के बाद सीडीयू प्रमुख अंगेला मैर्केल को बहुमत सरकार बनाने के लिए सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के सहयोग की जरूरत थी. एसपीडी ने साझा सरकार में वित्त मंत्री के लिए श्टाइनब्रुक का नाम प्रस्तावित किया. इस भूमिका में उन्होंने चांसलर अंगेला मैर्केल के साथ वित्तीय संकट का मुकाबला करने के लिए निकट सहयोग किया.

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150 साल पुरानी पार्टी है एसपीडीतस्वीर: DW/W. Dick

2009 में जब वित्तीय संकट चरम पर था तो जर्मनी में लोग अपनी जमा पूंजी बचाने के लिए खातों से धन निकालने के लिए बैंकों पर धावा बोलने की तैयारी में थे. एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में श्टाइनब्रुक और मैर्केल ने भरोसा दिलाया कि जर्मनी के बैंकों में लोगों का पैसा सुरक्षित है. हालांकि वित्तीय संकट के सामने आने से पहले श्टाइनब्रुक ने वित्त मंत्री के रूप में कई ऐसे फैसले किए जो बाद में विवादास्पद बने. मसलन उन्होंने रियल स्टेट के निवेशकों को मकानों के कर्जों को इकट्ठा कर उन्हें आगे बेचने की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया.

राजनीतिक मुश्किलें

श्टाइनब्रुक का स्टाइल रूखा, ज्ञान देने वाला और बेबाक माना जाता है, क्योंकि वे अक्सर वही बोलते हैं जो वे सोचते हैं. उनके साथी उन्हें बहुत ही धैर्यहीन इंसान बताते हैं. जब मामला टैक्स चोरी को रोकने का था और स्विट्जरलैंड काले धन पर सूचना देने से इनकार कर रहा था, तो श्टाइनब्रुक ने कड़े कदमों की धमकी दी. घुड़सवार फौज को स्विट्जरलैंड भेजने का उनका बयान राजनयिक विवाद का कारण बना.

वह अपनी पार्टी के चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर के एजेंडा 2010 का समर्थन कर चुके हैं. इसके साथ बेरोजगारी को कम करने के लिए सामाजिक सुरक्षा संरचना और श्रम बाजार में भारी सुधार किए गए. सरकारी अनुदानों को कम करने और बेरोजगारी की हालत में अधिक जिम्मेदारी को प्रोत्साहन देने के लिए अस्थायी नौकरी और कम वेतन वाले रोजगारों को बढ़ावा दिया गया. श्टाइनब्रुक को यह विचार पसंद आया. सचमुच एक तरह का रोजगार चमत्कार हुआ, जिसका लाभ अंगेला मैर्केल की सरकार को अब तक मिल रहा है. लेकिन श्टाइनब्रुक को उसका कोई फायदा नहीं मिला.

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बर्लिन में एक संबोधन के दौरान श्टाइनब्रुकतस्वीर: picture-alliance/dpa

एजेंडा 2010 के बहुत से नियमों का नियोक्ताओं ने लाभ उठाया. आज जर्मनी में 20 फीसदी लोग इतना कम कमाते हैं कि उससे अपनी रोजी रोटी नहीं चला सकते. चांसलर पद के उम्मीदवार के रूप में पेयर श्टाइनब्रुक अब देख रहे हैं कि कुछ गड़बड़ हो गया है. समाज बंट रहा है. वे इसे फौरन रोकना चाहते हैं. वे सामाजिक बाजार अर्थव्यवस्था की वकालत कर रहे हैं, जिसमें सामूहिक समृद्धि फिर से केंद्र में होगा. लेकिन आलोचक उनमें आए बदलाव को अविश्वसनीय मानते हैं. इसमें उनकी न्यूनतम वेतन की मांग भी शामिल है. विश्वसनीयता में कमी की एक वजह उनका धनी परिवार में पैदा होना भी है.

गलत शुरुआत

2009 में पिछले संसदीय चुनाव में अंगेला मैर्केल ने अपनी सीडीयू-सीएसयू और फ्री डेनोक्रैटिक पार्टी के साथ इतना मत पाया था कि वे एसपीडी के बिना भी सरकार बना सकती थीं. पेयर श्टाइनब्रुक फिर से सामान्य सांसद हो गए और नेतृत्व से पीछे हट गए. नेतृत्व से हटने के बाद उन्होंने अपने मंत्री काल के बारे में एक सफल किताब लिखी, यूनिवर्सिटियों में मानद प्रोफेसर बने और बड़ी फीस लेने वाले वक्ता बने. 2010 में भी उन्होंने नहीं सोचा था कि उन्हें फिर से बड़ा राजनीतिक पद लेना होगा. लेकिन उसके बाद सब कुछ अलग ही होने लगा.

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द ग्रीन के साथ एसपीडी का गठजोड़तस्वीर: Reuters

एसपीडी की विशेष पार्टी कांग्रेस ने उन्हें 94 फीसदी मतों से चांसलर पद का उम्मीदवार चुना. लेकिन उत्साह लंबा नहीं टिका. उसके कुछ ही दिन बाद पता चला कि श्टाइनब्रुक ने बैंकों और वित्तीय कंपनियों में भाषण देकर करीब 10 लाख यूरो कमाए हैं. उससे भी बुरा यह हुआ कि वह काफी समय तक इसे निजी मामला बताते रहे और उस पर कोई जानकारी देने को तैयार नहीं हुए. अंत में उन्होंने सब कुछ सामने रख दिया. उसके बाद जब उन्होंने चांसलर के वेतन को कम बताया और कहा कि वे कोई सस्ती वाइन नहीं पीएंगे, तो उनकी छवि को गहरा नुकसान हुआ. यह सब कमजोर लोगों के लिए लड़ने वाली एसपीडी की छवि से मेल नहीं खाती.

सर्वेक्षणों के नतीजे अच्छे नहीं हैं. अंगेला मैर्केल से दूरी पाटने लायक नहीं लगती. श्टाइनब्रुक ने हिम्मत नहीं हारी है. वे लड़ रहे हैं और कहते हैं, "2005 में भी एसपीडी की हालत अच्छी नहीं दिख रही थी, लेकिन बाद में अच्छी हो गई." पिछले हफ्तों में वे अपने पार्टी के कार्यक्रम के लिए दलीलों के साथ प्रचार कर रहे हैं. ज्यादा कमाने वालों का टैक्स बढ़ा कर वह देश में सामाजिक विषमता दूर करना चाहते हैं और उन्हें बढ़ावा देना चाहते हैं जो आगे बढ़ना चाहते हैं.

श्टाइनब्रुक कामकाजी महिलाओं की मदद करना चाहते हैं. उनका कहना है कि उन्हें पुरुषों जितना ही वेतन मिलना चाहिए और बच्चों की देखभाल तथा पेंशन की स्थिति सुधरनी चाहिए. समर्थकों का कहना है कि श्टाइनब्रुक के पास तुरुप का पत्ता है. वह राजनीतिज्ञ के रूप में उतने ही विश्वसनीय हैं, जितने आम इंसान के रूप में. वे 38 सालों से शादीशुदा है, उनकी पत्नी जीवविज्ञान पढ़ाती हैं और उनके तीन बड़े बच्चे हैं. अंगेला मैर्केल की सीडीयू को वे राजनीतिक सहयोगी के तौर पर नहीं देखते. साझा सरकार बनाने के लिए उनकी इच्छा की सहयोगी पार्टी ग्रीन पार्टी है.

रिपोर्ट: वोल्फगांग डिक/एमजे

संपादन: अनवर जे अशरफ

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