मौत में मदद किस हद तक
२३ नवम्बर २०१३अगर कोई बच्चा लंबे वक्त तक बीमार रहे और उसकी यातना असहनीय हो, तो क्या उसे वयस्कों वाले अधिकार नहीं मिलने चाहिए. यह सवाल पूछते हैं डॉक्टर यान बर्नहाइम जो ब्रसेल्स फ्री यूनिवर्सिटी में मृत्यु सहयोग शोध समूह में काम करते हैं. प्रोफेसर बर्नहाइम चाहते हैं कि बेल्जियम में बच्चों को 'मृत्यु सहयोग' यानी यूथेनेशिया का हक मिले. यूथेनेशिया का मतलब है अपने दर्द को कम करने के लिए सोच समझ कर मौत को चुनना. बर्नहाइम का मानना है कि जब बच्चे कैंसर जैसी बीमारियों का शिकार बनते हैं तो उनकी सोच बहुत स्पष्ट और सटीक होती है, वह अपनी उम्र से कहीं ज्यादा वयस्क हैं. इसलिए बेल्जियम में ज्यादातर बाल चिकित्सकों का मानना है कि बच्चों को इस बारे में अपनी इच्छा जताने का मौका मिलना चाहिए.
बच्चों की ख्वाहिश
कुछ वक्त पहले बेल्जियम में 16 जाने माने बाल चिकित्सकों ने दो अखबारों में बाल यूथेनेशिया के लिए पहल की थी. लेकिन धार्मिक समुदायों के एक संघ ने इसकी कड़ी निंदा की है. कैथोलिक, प्रोटेस्टंट, कट्टर ईसाई, यहूदी और मुस्लिमों के इस संघ ने लिखा है कि बच्चों के लिए इस तरह के अधिकार को पारित करना अनैतिक है. वहीं, यूरोपीय बायोएथिक्स इंस्टीट्यूट की कारीन ब्रोशिये कहती हैं, "बेल्जियम में बच्चा घर नहीं खरीद सकता, शराब नहीं खरीद सकता. इस कानून से बच्चा अपनी मौत के लिए मदद मांगने की इच्छा जता सकेगा."
बेल्जियम की संसद 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए और पागलपन के रोगियों के लिए यूथेनेशिया यानी 'मौत में मदद मांगने' की इच्छा के लिए कानून के बारे में विचार कर रही है. पिछले 11 सालों से वहां के डॉक्टर मरीजों को यह अधिकार देते हैं. अगर मरीज को लगता है कि वह अपनी यातना और नहीं सह सकता तो वह डॉक्टर से कह सकता है कि उसे मार दिया जाए. 2012 से लेकर अब तक 1,432 लोगों ने इस अधिकार का इस्तेमाल किया है. यूरोपीय संघ में बेल्जियम के अलावा नीदरलैंड्स और लक्जमबर्ग में यूथेनेशिया कानून सबसे उदारवादी हैं. बाकी यूरोपीय संघ देशों में यह या तो प्रतिबंधित है या बहुत ही सीमित है.
मौत में मदद को लेकर पिछले महीने बेल्जियम के संसद में विवाद छिड़ा. पत्रकार डीर्क लेस्टमान्स ने पैनोरामा मैग्जीन में फ्रांक नाम के एक कैदी के बारे में रिपोर्ट लिखी जिसने मरने की इच्छा जताई. फ्रांक ने माना कि वह कैदखाने में हालात से त्रस्त है और इसलिए मरना चाहता है. अदालतें भी इस मामले से जूझ रही हैं. इस मामले में यूथेनेशिया कानून का इस्तेमाल नहीं हुआ लेकिन सैद्धांतिक तौर पर इसे सहमति दी गई. पत्रकार लेस्टमान्स का सवाल है कि क्या उनके देश की सरकार कैदियों को इस रास्ते से मौत की सजा सुना रही है.
पिछले महीने एक और ऐसा मामला सामने आया जब 44 साल के नाथान ने लिंग बदलने का ऑपरेशन करवाया. पहले वह महिला थी और उसका नाम नैन्सी था. ऑपरेशन के बाद उसके शरीर ने नए गुप्तांग को स्वीकार करने से मना कर दिया. नाथान अपनी पूरी जिंदगी एक महिला के शरीर में गुजार चुका था और उसे इस तरह की और यातना मंजूर नहीं थी. उसने डॉक्टर से मरने की इच्छा जताई. उसने कहा कि वह कोई "दैत्य" नहीं बनना चाहता है. डॉक्टर ने उसे फिर मौत वाले इंजेक्शन दिए.
यूथेनेशिया से सुरक्षा
लेकिन मरने की इच्छा जताने का मतलब नहीं कि मरीज तुरंत इंजेक्शन पा सकता है. प्रोफेसर यान बर्नहाइम कहते हैं कि अगर मौत कई महीने या साल बाद होने की संभावना है तो एक तीसरे डॉक्टर से विमर्श करना होगा. इच्छा जताने के बाद मरीज को एक महीना सोचने का वक्त दिया जाता है. लेकिन इसके आलोचक कहते हैं कि अगर कोई मरीज मानसिक रूप से बीमार हो तो उसका इलाज किया जाना चाहिए. बायोएथिक्स इंस्टिट्यूट की कारीन ब्रोशिये इसको लेकर चिंतित हैं, "यूथेनेशिया अगर एक विकल्प हो तो मांग भी आएगी. आप इसे बाजार में जितना लाएंगे, उतने लोग इसकी मांग करेंगे." इससे अच्छा है कि डॉक्टर दर्द कम करने की दवा का इस्तेमाल करें और जीवन रक्षक उपकरणों का इस्तेमाल न करें."
यान बर्नहाइम भी दर्द निवारक दवाओं के पक्ष में हैं. वह कहते हैं कि जो लोग गहरे मानसिक दबाव की वजह से यूथेनेशिया की मांग करने आते हैं, उनमें से 30 प्रतिशत को वापस कर दिया जाता है. बचे लोग, ज्यादातर इस विकल्प को अंतिम मानकर चलते हैं और अपनी जिंदगी साधारण रूप से गुजारते हैं. यूथेनेशिया का विकल्प उनके लिए सुरक्षा जैसा है, अगर वह दर्द बिलकुल नहीं सह पाए तो कम से कम उनके पास मरने का रास्ता तो होगा.
रिपोर्टः बर्न्ड रीगर्ट/एमजी
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी