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यूक्रेन युद्ध में भारत की समस्या तो अभी शुरू हुई है

२६ फ़रवरी २०२२

यूक्रेन में युद्ध रोकने की मांग वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर वोटिंग से भारत के बाहर रहने का मतलब रूस का समर्थन नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह रूस पर भारत की निर्भरता दिखाता है.

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक
यूक्रेन के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की बैठक तस्वीर: John Minchillo/AP/picture alliance

शुक्रवार को भारत ने यूक्रेन विवाद में कूटनीति का रास्ता बंद होने पर दुख जताया लेकिन साथ ही उसने अमेरिका के साथ जाकर उस प्रस्ताव पर वोट करने से इनकार कर दिया जो रूस के खिलाफ था. भारत का वोट मुमकिन है कि बीते सात दशकों से उसके दोस्त रहे रूस से संबंधों का ताना बाना बिगाड़ देता. रूस ने इस प्रस्ताव को वीटो किया जबकि चीन और संयुक्त अरब अमीरात भी भारत की तरह ही वोटिंग से बाहर रहे. 

रूस ने उम्मीद जताई थी कि सुरक्षा परिषद में भारत उसके साथ सहयोग करेगा. भारत के पूर्व राजनयिक जी पार्थसारथी कहते हैं, "हमने रूस का समर्थन नहीं किया है. हम इससे बाहर रहे हैं. इस तरह की स्थितियों में यह करना सही है."

प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ गुरुवार को टेलिफोन पर बातचीतमें "हिंसा को तुरंत रोकने" की अपील की. मोदी ने कूटनीति पर लौटने की कोशिश की मांग करते हुए कहा, "रूस और नाटो के साथ विवाद को सिर्फ ईमानदार और गंभीर बातचीत से सुलझाया जा सकता है."

व्लादिमीर पुतिन और नरेंद्र मोदी
बीते साल दिसंबर में पुतिन भारत गए थेतस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance

रूस पर निर्भर भारत

भारत कश्मीर मामले में पाकिस्तान के साथ विवाद में रूस के सहयोग और सुरक्षा परिषद में वीटो के लिए निर्भर रहा है. यूक्रेन से विवाद के दौरान जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान मास्को पहुंचे तो भारत वहां हो रही गतिविधियों पर बड़ी चौकसी से नजर रख रहा था. युद्ध की स्थिति में भी इमरान खान से पुतिन की मुलाकात करीब 3 घंटे चली.

यूक्रेन की जंग ने भारत के लिए ना सिर्फ कश्मीर बल्कि चीन के साथ भी चल रहे विवाद में नई चुनौतियां पैदा की हैं. पाकिस्तान और चीन दोनों रूस की तरफ हैं. भारत मानता है कि रूस चीन को भारत के साथ सीमा विवाद में नरमी दिखाने के लिए माहौल बना सकता है. जून 2020 में भारत और चीन का सीमा विवाद अचानक हिंसक हो गया था और तब से बातचीत होने के बावजूद तनाव कायम है.

भारत और चीन का सीमा विवाद
भारत चीन सीमा विवाद को लेकर आमने सामने हैंतस्वीर: Sajad Hameed/Pacific Press/picture alliance

यह भी पढ़ेंः यूक्रेन संकट का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा

"वोटिंग से बाहर रहना बेहतर"

यूक्रेन में लड़ाई शुरू होने के बाद भारत की राजधानी में शनिवार को भी कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. ये संगठन रूसी हमले को बंद करने और भारत सरकार से वहां फंसे लोगों को बाहर निकालने की मांग कर रहे हैं. यूक्रेन में फंसे भारतीय लोगों में ज्यादातर छात्र ही हैं. 20 साल के प्रताप सेन छात्र हैं और सुरक्षा परिषद की वोटिंग से भारत के बाहर रहने के बारे में कहते हैं कि यह भले ही आदर्श नहीं है लेकिन इन परिस्थितियों में बेहतर विकल्प था. प्रताप सेन का कहना है, "भारत को अमेरिका और पश्चिमी दुनिया के साथ ही कई दशकों से करीबी सहयोगी रहे रूस के बीच संतुलन बनाना है."

एशिया सोसायटी पॉलिसी के सीनियर फेलो सी राजामोहन की राय में भारत की समस्या यह है कि वह अब भी रूसी हथियारों पर बहुत निर्भर है. राजा मोहन ने कहा, "यह महज एक काल्पनिक सवाल नहीं है, बल्कि सच्चाई यह है कि भारत एक तरह से चीन के साथ युद्ध के बीच में है. विवादित सीमा को लेकर भारत और चीन आमने सामने है." 

हथियार और कारोबार

भारत और रूस ने 2025 तक आपसी कारोबार को 30 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है. भारत रूस के तेल और गैस पर भी बहुत निर्भर है. भारत ने 2021 में रूस से 18 लाख टन कोयला आयात किया था. रूस से प्राकृतिक गैस के कुल निर्यात का 0.2 फीसदी भारत को जाता है. भारत की सरकारी कंपनी गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने रूस के गासप्रोम के साथ 20 साल तक हर साल 25 लाख टन प्राकृतिक गैस खरीदने का करार किया है. यह करार 2018 में शुरू हुआ.

मोदी और पुतिन ने पिछले साल रक्षा और कारोबारी रिश्तों पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की थी और सैन्य तकनीक में सहयोग को अगले दशक तक बढ़ाने के लिए करार पर दस्तखत किए थे.

भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम चाहता है और चीन का सामना करने के लिए इसे जरूरी मानता है. इस मिसाइल सिस्टम की वजह से भारत और अमेरिका के रिश्ते में भी समस्या आ सकती है.

भारत ने अमेरिका और उसके सहयोगियों से चीन का सामना करने में मदद मांगी है. यह भारत प्रशांत सुरक्षा गठबंधन की साझी जमीन है जिसे "क्वॉड" कहा जाता है और जिसमें ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हैं.

रूस का एस-400 मिसाइल सिस्टम
भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम हासिल करना चाहता हैतस्वीर: Kirill Kukhmar/TASS/dpa/picture alliance

यह भी पढ़ेंः प्रतिबंधों से निबटने की कितनी तैयारी कर रखी है पुतिन ने 

संतुलन की जरूरत

भारत अपने हथियारों की खरीदारी में अमेरिकी उपकरणों को भी शामिल कर रहा है. डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते अमेरिका और भारत ने करीब 3 अरब अमेरिकी डॉलर के हथियार सौदे को मंजूरी दी थी. भारत और अमेरिका के बीच सैन्य क्षेत्र में आपसी कारोबार जो 2008 में लगभग शून्य था वह 2019 में 15 अरब डॉलर तक पहुंच गया.

यूक्रेन का संकट बढ़ने के साथ भारत की असली समस्या यह होगी कि वह रूस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में क्या करे. रूस के साथ मिसाइल सिस्टम के सौदे ने भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों के खतरे में डाल दिया है. अमेरिका ने अपने सहयोगियों से कहा है कि वो रूस के साथ सैन्य उपकरणों की खरीदारी से दूर रहें. राजा मोहन कहते हैं, "भारत की समस्या तो अभी शुरू ही हुई है. सबसे जरूरी यह है कि रूस पर हथियारों की निर्भरता से बाहर निकला जाए."

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि पश्चिमी देश भारत को बिल्कुल दुश्मन ही मान लेंगे, आखिर भारत की जरूरत उन्हें भी है. राजनीति विज्ञानी नूर अहमद बाबा कहते हैं कि पश्चिमी देश भारत से नाखुश हो सकते हैं लेकिन शायद उसे पूरी तरह अलग थलग करना उनके लिए संभव नहीं होगा. बाबा का कहना है, "आखिरकार देशों को असल राजनीति और कूटनीति के बीच संतुलन रखना होता है. ऐसा नहीं है कि पश्चिमी देशों के साथ केवल भारत का ही फायदा है, बल्कि उन्हें भी भारत की जरूरत है."

एनआर/एमजे (एपी)