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यूरोप के सामने भी चीन से निपटने की चुनौती

मथियास फॉन हाइन
१४ सितम्बर २०२०

कोरोना महामारी के कारण यूरोपीय संघ और चीन का शिखर सम्मेलन भी वर्चुअल ही कराना पड़ रहा है. दोनों पक्ष भले ही एक मेज पर आमने सामने ना बैठें, लेकिन उन्हें मुश्किल सवालों का सामना करना ही पड़ेगा.

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Symbolfoto Handelsbeziehungen zwischen China und der EU
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.Ohlenschläger

फिलहाल जर्मनी छह महीने के लिए यूरोपीय संघ का अध्यक्ष है. यूरोपीय संघ और चीन का शिखर सम्मेलन इस अध्यक्षता के सबसे बड़े आयोजनों में से एक होना था. जर्मन शहर लाइपजिष में तीन दिन तक यह सम्मेलन होना था, जहां चीनी राष्ट्रपति पहली बार यूरोपीय संघ के सभी 27 राष्ट्रप्रमुखों से एक साथ मिलते. लेकिन कोरोना महामारी के कारण अब वर्चुअल सम्मेलन ही मुमकिन है और इसकी अवधि भी तीन दिन से घटाकर एक दिन कर दी गई है.

सोमवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए होने वाले इस सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी के साथ जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल, यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन मौजूद रहेंगी.

चीन से नाराजगी

हाल के समय में यूरोपीय संघ के भीतर चीन की छवि को ठेस लगी है. इसकी वजह चीन में अल्पसंख्यक उइगुर मुसमलानों के साथ बदसलूकी और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं पर बल प्रयोग है जिसकी यूरोपीय संसद ने निंदा भी की. इसके अलावा कोरोना महामारी पर चीन के रवैये को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.

बर्लिन के एक थिंकटैंक मेरिक्स में यूरोपीय संघ और चीन के संबंधों पर शोध करने वाली लुकरेशिया पॉजरेट्टी ने डीडब्ल्यू को बताया कि जिस तरह से चीन की सरकार ने कोरोना महामारी को संभाला है, उसे लेकर भी विवाद हो सकता है. वह बताती है कि यूरोपीय संघ के बहुत से देश चीन की "मास्क डिप्लोमैसी" को अपनी छवि चमकाने की "एक शर्मनाक कोशिश के तौर पर देखते हैं." इसके तहत चीन ने यूरोपीय देशों को मेडिकल सामान की आपूर्ति की. वह कहती हैं कि नाराजगी इस बात को लेकर है कि चीन ने बहुत से मामलों में अपने निर्यात को मदद के तौर पर पेश किया.

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यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के अधिकारी चीन की आक्रामक विदेश नीति और घरेलू स्तर पर अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ती बंदिशों को देखते हुए उसके साथ संबंधों पर नए सिरे से विचार कर रहे हैं.

चीन से निपटने की यूरोपीय संघ की रणनीति पर 2019 में जो दस्तावेज जारी किया गया, उसके पहले पेज पर यूरोपीय आयोग ने चीन की पहचान जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में ना तो एक साझेदार के तौर पर की है और ना ही एक आर्थिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर, बल्कि उसे एक "व्यवस्थित प्रतिस्पर्धी" कहा गया है जो "शासन के वैकल्पिक मॉडलों को बढ़ावा देता है". संदेश साफ है कि चीन शासन की अपनी निरंकुश पद्धति को पूरी दुनिया में लागू करना चाहता है, जो यूरोपीय संघ की तर्ज वाले लोकतंत्र के विपरीत है.

निवेश में गतिरोध

यूरोपीय संघ और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को समान स्तर पर लाने के लिए ईयू-चीन व्यापक निवेश समझौते को एक अहम कदम माना गया था. लेकिन इस समझौते पर वार्ता छह साल से चल रही है. इस समझौते का मकसद बाजार तक ज्यादा पहुंच मुहैया कराना और एक पूरी तरह उचित प्रतिस्पर्धा वाला माहौल तैयार करना, निवेश में आने वाली बाधाओं को दूर करना, सरकारी कंपनियों की भूमिका को कम करना और सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देना है.

यूरोपीय संघ की कंपनियों के नजरिए से चीन को इस समझौते को मुमकिन बनाने के लिए बहुत सारे समझौते करने होंगे. चीन में यूरोपीयन यूनियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष योर्ग वुटके कहते हैं, "यूरोपीय पक्ष ने साफ कर दिया है कि चीन के आधा रास्ता चलने से कुछ नहीं होगा." वह कहते हैं कि चीनी कंपनियां पहले ही यूरोपीय संघ के खुले बाजार में काम कर रही हैं जहां पूरी तरह उचित प्रतिस्पर्धी माहौल है जबकि चीन में यूरोपीय कंपनियों के साथ ऐसा नहीं हो रहा है. वुटके कहते हैं कि चीन को इस गैप को पाटना होगा, हालांकि उन्हें इसकी उम्मीद कम ही है.

दिसंबर में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने जब ब्रसेल्स का दौरा किया तो उन्होंने कहा कि चीन 2020 के लिए यूरोपीय संघ को अपने राजनयिक एजेंडे में सबसे ऊपर रखेगा. उन्होंने व्यापक निवेश समझौते को भी सबसे अहम आर्थिक नीति परियोजना बताया. लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं दिखती है.

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