लीबिया पर लाल हुआ चीनी मीडिया
२३ मार्च २०११चीन की कम्युनिस्ट पार्टी लीबिया पर हो रही कार्रवाई का तीखा विरोध कर रही है. यही बात सरकारी अखबारों और टीवी पर खुल कर सामने आ रही है. दरअसल इस प्रचार की एक वजह चीनी जनता को यह संदेश देना भी है कि वह अरब जगत में हो रही उथल पुथल से कोई प्रेरणा न ले. लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि चीन के नेता सत्ता पर अपनी पकड़ के लिए आने वाले संभावित चु्नौतियों के कितने घबराए हुए हैं.
घर की मुसीबत से लड़ाई
कभी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार के संपादक रहे ली ताथोंग कहते हैं कि लीबिया में पश्चिमी देशों की कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों के प्रभुत्व को प्रदर्शित करती है. सेंसरशिप मानने से इनकार करने पर अपनी नौकरी गंवाने वाले ली कहते हैं, "चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस बात को एक बड़ा खतरा मान रही है कि मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मांगें किसी राष्ट्र की संप्रभुता पर भारी पड़ सकती हैं. वे इस सबसे निपटना चाहते हैं."
लीबिया में लड़ाई शुरू होने से पहले ही चीनी सुरक्षा बलों ने 'जैस्मीन क्रांति' और ट्यूनीशिया और मिस्र की तर्ज पर लोकतांत्रिक बदलाव के लिए एकजुट होने की ऑनाइलन अपीलों पर हमला किया. इस तरह की अपीलों को सेंसरशिप के दायरे में लाया गया और सुरक्षा बलों ने उनसे निपटने की पूरी तैयारी कर रखी है.
मानवाधिकार या संप्रभुता
लीबिया में लड़ाई शुरू होने के बाद से चीन की सरकार ने लोगों को बताना शुरू कर दिया कि लीबिया के घटनाक्रम से साबित होता है कि पश्चिमी जगत पर विश्वास नहीं किया जा सकता. वह सिर्फ अपने हितों को आगे रखता है और उन्हें सिद्धांतों का जामा पहनाता है. चीन के लोकप्रिय टैबलॉयड ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में लिखा है, "हाल के दिनों में, कुछ जानी पहचानी देशी (चीनी) वेबसाइटों ने यह अजीब तर्क देना शुरू किया है कि मानवाधिकार संप्रभुता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं." अखबार लिखता है कि लीबिया में हवाई हमले अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक स्तर पर यह संदेश देने के लिए किए गए हैं कि यह दुनिया पश्चिम के मुताबिक ही चलेगी.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपल्स डेली के विदेशी संस्करण के मुताबिक, "इराक पर भी तेल की वजह से हमला किया गया. अब लीबिया पर भी उसके तेल के कारण ही हमला किया गया है." लीबिया में पश्चिमी हमलों का विरोध दूसरे देशों के मामलों में हस्तक्षेप खास कर मानवाधिकार के नाम पर हस्तक्षेप के चीन के पारंपरिक विरोध को ही जाहिर करता है. लेकिन पूर्व संपादक ली का कहना है कि सरकारी मीडिया अपने यहां भड़कने वाली राजनीतिक अशांति की आशंकाओं को दबाने के लिए भी ऐसा कर रहा है.
रिपोर्टः रॉयटर्स/ए कुमार
संपादनः वी कुमार