लीबिया में 'युद्ध टला', लेकिन संकट बरकरार
२० जनवरी २०२०रूस, तुर्की, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात ने भविष्य में गृह युद्ध में शामिल गुटों को हथियार और सैनिकों से मदद नहीं करने का वचन दिया है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने सम्मेलन के बाद कहा कि इसके साथ लीबिया से शुरू होने वाले क्षेत्रीय युद्ध का खतरा फिलहाल टल गया है. सम्मेलन की मेजबानी करने वाली जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा कि सम्मेलन में भाग लेने वाले देश लीबिया में राजनीतिक समाधान की कोशिशें बढ़ाएंगे.
सम्मेलन के बाद लीबिया के गृह युद्ध में हस्तक्षेप न करने के लिए हुए समझौते पर दस्तखत करने वाले अंतरराष्ट्रीय नेताओं में रूस, तुर्की और फ्रांस के राष्ट्रपति शामिल थे. सम्मेलन में लीबिया में सरकारी टुकड़ियों से लड़ रहे खलीफा हफ्तार और संयुक्त राष्ट्र से मान्यता प्राप्त फयाज अल सराज की सरकार के बीच कोई गंभीर संवाद की शुरुआत में सफलता नहीं मिली. जर्मन चांसलर मैर्केल ने कहा, "संघर्षविराम पर फौरन अमल की गारंटी करना आसान नहीं है."
चांसलर मैर्केल ने उम्मीद जताई कि सम्मेलन के बाद इस बात का मौका है कि शांति जारी रहेगी. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पेयो ने स्वीकार किया कि अब भी कुछ सवाल हैं कि संघर्षविराम की कितने प्रभावी तरीके से निगरानी की जा सकेगी. साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई की लीबिया में हिंसा कम होगी और वहां लड़ रहे गुटों के बीच बातचीत शुरू करने का मौका होगा. संघर्ष विराम की निगरानी करने की जिम्मेदारी जर्मनी ने ली है.
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2011 में लीबिया में नाटो के हस्तक्षेप में लीबियाई नेता मुआम्मर गद्दाफी की मौत के बाद परस्पर विरोधी गुटों के बीच हो रही लड़ाई में देश बंटा हुआ है. हाल के महीनों में संयुक्त राष्ट्र समर्थित सराज के सैनिकों पर हफ्तार के सैनिकों के हमलों में तेजी आई है. लड़ाई में करीब 280 असैनिक नागरिक और 2000 सैनिक मारे गए हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं. वहां रूस हफ्तार का समर्थन कर रहा है तो तुर्की सराज के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन कर रहा है और उसने सराज के समर्थन में अपनी सेना भेजने का फैसला किया है. 12 जनवरी को दोनों के प्रयासों से दोनों गुटों के बीच संघर्षविराम हुआ है. हालांकि सराज की सरकार को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन है लेकिन देश के ताकतवर गुटों का समर्थन हफ्तार को मिला है और इसकी वजह से घरेलू विवाद अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के छद्मयुद्ध में बदलने का खतरा पैदा हो गया है.
तेल की चिंता
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता की एक वजह लीबिया का तेल भंडार भी है. वहां शांति प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा तेल भंडारों की सुरक्षा और उसका नियंत्रण भी हो सकता है. जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास का कहना है कि सराज और हफ्तार के साथ तेल से होने वाली आय के बंटवारे के बारे में भी बात हुई है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेश ने भी इस पर चिंता जताई है कि हफ्तार की टुकड़ियों ने न सिर्फ तेल की ढुलाई करने वाले पोर्टों की नाकेबंदी की है बल्कि एक तेल भंडार में तेल निकासी का काम भी रुकवा दिया. सम्मेलन के बाद जारी बयान में कहा गया है कि सरकारी कंपनी एनओसी लीबिया की एकमात्र कानूनी तेल निकासी कंपनी है. सभी गुटों से तेल भंडारों और तेल की आपूर्ति करने वाली संरचनाओं पर हमला रोकने के लिए कहा गया है.
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तेल से होने वाली आमदनी पर नियंत्रण युद्ध में शामिल पक्षों के जरूरी है क्योंकि उसका इस्तेमाल हथियारों की खरीद और सैनिकों की तनख्वाह में हो रहा है. सम्मेलन में लीबिया के पुनर्निर्माण पर भी चर्चा हुई. बयान में एक पुनर्निर्माण तंत्र बनाने की बात कही गई है जो एक एक प्रतिनिधि साझा सरकार के नेतृत्व में देश के सभी इलाकों में विकास और पुनर्निमाण का काम करेगा.
यूरोप के लिए लीबिया का महत्व अफ्रीका से होने वाले अवैध आप्रवासन को रोकने के लिए भी है. लीबिया के रास्ते हजारों लोग अवैध रूप से यूरोप आने का प्रयास करते हैं और इसमे समुद्र में अपनी जान भी गंवाते हैं. बर्लिन सम्मेलन के बाद यूरोपीय संघ के नेता इस पर बात कर रहे हैं कि वे सम्मेलन के नतीजों पर अमल में किस तरह से मदद कर सकते हैं. यूरोपीय संघ के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल के अनुसार संघर्ष विराम और हथियारों की बिक्री पर रोक का नियंत्रण बातचीत के केंद्र में है.
एमजे/एके (एएफपी, रॉयटर्स)
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