विदेशी पत्रकार चीन से क्यों भाग रहे हैं?
९ अप्रैल २०२१चीन स्थित फॉरेन कॉरेस्पॉन्डेंट्स क्लब का कहना है कि पिछले एक साल में कम से कम 20 पत्रकारों को या तो चीन से बाहर कर दिया गया या फिर उन्हें बाहर जाने पर मजबूर किया गया. क्लब के मुताबिक चीन की सरकार पत्रकारों को डराने धमकाने की नीति अपना रही है ताकि विदेशी पत्रकारों को काम करने से रोका जा सके.
लूइजा लिम अवॉर्ड विजेता एक प्रतिष्ठित पत्रकार हैं और मेलबर्न विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्रवक्ता हैं. वे कहती हैं कि मसला पत्रकारों को देश से बाहर करने से भी ज्यादा गंभीर है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वे कहती हैं, "मूल रूप से चीन की कम्युनिस्ट सरकार पत्रकारों को एक ऐसे वैचारिक हथियार के तौर पर देखती है जिनका इस्तेमाल पश्चिमी देश अपनी विचारधारा को यहां पहुंचाने के लिए कर रहे हैं."
पत्रकारों के संरक्षण के लिए बनी समिति 'कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' के एशिया प्रोग्राम समन्वयक स्टीवेन बटलर कहते हैं कि हाल के दिनों में चीन से बाहर किए जा रहे पत्रकारों की संख्या को देखते हुए यह लगता है कि चीन मीडिया की स्वतंत्रता पर कितना कड़ा रुख अपनाए हुए है. डीडब्ल्यू से बातचीत में बटलर कहते हैं, "यह चीन के लिए बहुत ही अपमानजनक है और इससे यह भी पता चलता है कि उनके पास छिपाने के लिए बहुत कुछ है." विरोधियों के खिलाफ चीनी सरकार के सख्त रुख का खामियाजा तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी भुगतना पड़ रहा है.
उत्पीड़न और धमकी का तरीका
विदेशी पत्रकारों को धमकाने की ताजा घटनाओं में बीबीसी के पत्रकार का मामला महत्वपूर्ण है. कुछ दिन पहले बीबीसी ने इस बात को सार्वजनिक किया कि चीन स्थित उनका एक पत्रकार इन्हीं वजहों से ताइवान चला गया था. बीबीसी के पत्रकार जॉन सुडवर्थ ने बताया कि वे और उनके साथियों पर हर वक्त निगरानी रखी जा रही थी, कानूनी कार्रवाई की धमकियां दी जा रही थीं और जहां कहीं भी रिपोर्टिंग और शूटिंग के लिए जा रहे थे, उन्हें परेशान किया जा रहा था और रोका जा रहा था.
बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में जॉन सुडवर्थ ने बताया, "हमें बहुत ही जल्दबाजी में भागना पड़ा. सादी वर्दी में पुलिस एयरपोर्ट तक हमारे पीछे लगी थी. पत्रकारों के लिए जमीनी सच्चाई दिखाना यहां बहुत भारी पड़ रहा है."
सुडवर्थ के चीन छोड़कर जाने के मुद्दे पर चीन के विदेश मंत्रालय का कहना था कि उन्होंने जाने से पहले अधिकारियों को कोई सूचना तक नहीं दी थी. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनइंग के मुताबिक, "पिछले दिनों जब हम लोग प्रेस कार्ड्स का नवीनीकरण कर रहे थे, तब हमें पता चला कि सुडवर्थ बिना औपचारिक सूचना के ही यहां से चले गए हैं. यहां से जाने के बाद भी उन्होंने संबंधित विभागों को न तो इसकी सूचना दी और न ही जाने की कोई वजह बताई."
सुडवर्थ के चीन छोड़कर भागने का मामला ठीक उस फैसले के बाद आया जब चीन की सरकार ने बीबीसी वर्ल्ड न्यूज के चीन में प्रसारण पर रोक लगाई. चीनी अधिकारियों ने बीबीसी पर चीन के बारे में 'गलत और तोड़ मरोड़कर' रिपोर्टिंग करने का आरोप लगाया. चीन ने यह फैसला खासकर उस इंटरव्यू के बाद लिया जिसमें एक उइगुर मुस्लिम महिला ने आरोप लगाया था कि शिनजियांग के तथाकथित 'री-एजुकेशन' शिविरों में उइगुर महिलाओं के साथ रेप और उत्पीड़न की घटनाएं आमतौर पर होती हैं.
चीन स्थित फॉरेन कॉरेस्पोन्डेंट्स क्लब ने बुधवार को एक विज्ञप्ति जारी करते हुए सुडवर्थ और उनके साथियों के उत्पीड़न को चीनी सरकार के उसी तौर-तरीके का एक हिस्सा बताया जिसके तहत चीन में लंबे समय से विदेशी पत्रकारों को अपना दायित्व निभाने से रोका जा रहा है.
चीन की सरकारी मीडिया का उदय
लूइजा लिम का कहना है कि दुनिया भर को चीन से खोजी रिपोर्ट्स की उम्मीद ज्यादा नहीं रखनी चाहिए क्योंकि यहां से बड़ी संख्या में ऐसे पत्रकार देश छोड़कर जा रहे हैं. पत्रकारों का कहना है कि इसकी वजह से चीन को सरकारी मीडिया के प्रसार में मदद मिल रही है क्योंकि विदेशी मीडिया संस्थानों के पास भी उन्हीं से खबर लेने के अलावा और ज्यादा विकल्प नहीं दिख रहे हैं. लिम कहती हैं, "यदि विदेशी संस्थानों के पास यहां अपने संवाददाता नहीं होंगे जो चीन की वास्तविक तस्वीर शूट कर सकें, तो उन्हें चीन की सरकारी प्रसारण संस्था सीजीटीएन से ही सामग्री लेनी पड़ेगी."
उनका यह भी कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया बहुत ही प्रतिकूल है क्योंकि चीन को अभी भी विदेशी पत्रकारों की जरूरत है ताकि बाकी दुनिया को वो अपनी गतिविधियों से वाकिफ रख सके. वे कहती हैं, "यदि वे अनुभवी पत्रकारों से छुटकारा पा लेते हैं, तो भी यह स्थिति चीन के लिए प्रतिकूल होगी क्योंकि ऐसी स्थिति में चीन सूचना के स्रोत के तौर पर बिल्कुल ब्लैक बॉक्स जैसा हो जाएगा."
स्टीवेन बटलर कहते हैं कि विदेशी पत्रकारों का बड़ी संख्या में बाहर जाना भी चीन के लिए एक प्रतिकूल स्थिति पैदा कर सकता है क्योंकि उसके पास न सिर्फ 'बहुत कुछ छिपाने के लिए' है, बल्कि 'शेखी बघारने के लिए भी बहुत कुछ है'. बटलर कहते हैं कि विदेशी पत्रकारों के चले जाने से चीन को दोनों स्थितियों का सामना करना पड़ेगा.
वार्ता की अपील
बटलर चेतावनी देते हैं कि चीन में संवाददाताओं को पहले की तुलना में और सतर्क रहने की जरूरत है. उनके मुताबिक, "मुझे लगता है कि चीन में रह रहे विदेशी पत्रकारों को बहुत ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है. आस-पास के माहौल के अलावा सुरक्षाकर्मियों की गतिविधियों पर भी नजर रखनी होगी. इसके अलावा इन पत्रकारों को अपनी डिजिटल सुरक्षा पर भी खासतौर पर सावधान रहना होगा."
बटलर कहते हैं कि कुछ भी हो, विदेशी सरकारों को चीन से इस मुद्दे पर वार्ता करनी चाहिए और व्यापारिक रिश्तों की बढ़ोत्तरी के साथ-साथ मीडिया की स्वतंत्रता पर भी चर्चा होनी चाहिए, "इस मामले में सबसे अच्छा रास्ता यही है कि पश्चिमी देशों को चीन के साथ अपने व्यापक रिश्तों के पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और इस व्यापक समझौते में मीडिया कवरेज भी एक अहम बिंदु होना चाहिए."