सऊदी अरब और ईरान के बीच बुरा फंसा पाकिस्तान?
१८ अगस्त २०२०पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने सोमवार को रियाद में वरिष्ठ सऊदी अधिकारियों से मुलाकात की और दोतरफा रिश्तों में आए तनाव को दूर करने की कोशिश की. कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के बयान से सऊदी अरब बेहद नाराज है. कुरैशी ने कहा कि अगर कश्मीर पर सऊदी अरब साथ नहीं दे रहा है तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को दूसरे मुस्लिम देशों की बैठक बुलानी चाहिए.
हालांकि पाकिस्तानी सेना का कहना है कि बाजवा के दौरे का मुख्य मकसद दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना है, लेकिन इस वक्त दोतरफा तनाव को दूर करना सबसे अहम हो गया है. पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि बाजवा स्थिति को संभालने की कोशिश करेंगे.
सऊदी अरब पाकिस्तान का पारंपरिक सहयोगी रहा है. दो साल पहले जब इमरान खान ने सत्ता संभाली तो पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलों को कम करने के लिए सऊदी अरब छह अरब डॉलर की मदद देने को सहमत हुआ. इसमें से तीन अरब की रकम सीधे पाकिस्तान के खाते में आई जबकि बाकी पैसा उधार पर तेल के लिए था. माना जाता है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने ही इस मदद को संभव बनाया था.
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क्या चाहता है सऊदी अरब
आलोचकों का मानना है कि सऊदी अरब के बारे में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की नीतियां डांवाडोल रही हैं. कभी उन्होंने सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता करने की बातें कीं, तो कभी तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर सऊदी अरब को चुनौती देने की कोशिश की. ताजा तल्खी पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के उस बयान से पैदा हुई जिसमें उन्होंने कश्मीर समस्या को लेकर सऊदी अरब पर निशाना साधा.
सवाल यह है कि पाकिस्तान से आखिर सऊदी अरब क्या चाहता है? इस्लामाबाद की साइंस एंड टेक्नॉलोजी यूनिवर्सिटी से जुड़े डॉ. बकारे नजमुद्दीन कहते हैं कि सऊदी अरब चाहता है कि पाकिस्तान साफ तौर पर ईरान विरोधी रुख अख्तियार करे. वह कहते हैं, "सऊदी अरब के मौजूदा नेतृत्व ने कई मामलों पर आक्रामक रवैया अपनाया है और वह जोर शोर से अपना असर बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. इसमें सबसे बड़ी रुकावट ईरान है. इसीलिए वह यकीनन चाहेगा कि ईरान के मुकाबले पाकिस्तान सऊदी अरब के साथ खड़ा हो. लेकिन पाकिस्तान के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल है."
डॉ. बकारे नजमुद्दीन कहते हैं कि आने वाले समय में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रहेगी. वह कहते हैं, "हमें सऊदी अरब से अब किसी भलाई की उम्मीद नहीं करनी चाहिए लेकिन संभव है कि सऊदी अरब पाकिस्तान के खिलाफ और कड़े कदम उठाए."
तटस्थता
इसी तरह, पाकिस्तानी रक्षा विश्लेषक रिटायर्ड जनरल गुलाम मुस्तफा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "सऊदी अरब की यह ख्वाहिश हो सकती है कि हम ईरान विरोधी नीतियां अपनाएं, लेकिन पाकिस्तान ऐसा नहीं कर सकता है. इराक-ईरान युद्ध के दौरान भी हमने अपनी नीति तटस्थ रखी थी और पाकिस्तान अब भी यही चाहेगा. वह अपनी तटस्थ नीति पर चलता रहेगा."
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दूसरी तरफ, पाकिस्तान के कुछ विश्लेषक यह भी कहते हैं कि स्थिति उतनी खराब नहीं है, जितनी पेश की जा रही है. रक्षा विश्लेषक जनरल अमजद शोएब का मानना है कि वही लोग इस मुद्दे को उछाल रहे हैं जो शाह महमूद कुरैशी से खफा हैं कि विदेश मंत्रालय उनको क्यों मिल गया."
उनके मुताबिक, "मेरे ख्याल में हमें यह भी देखना चाहिए कि अगर सऊदी अरब ने हमें कश्मीर के मुद्दे पर समर्थन नहीं दिया तो हमने भी तो यमन में फौज भेजने से इनकार किया था. हर देश के अपने हित होते हैं और इसी बात को ध्यान में रखकर वे नीतियां बनाते हैं."
बेहतरी की आस?
दूसरी तरफ, इस्लामाबाद की कायदे आजम यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग से जुड़े डॉ जफर नवाज जसपाल को उम्मीद है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रिश्ते बेहतर होंगे. वह कहते हैं, "मैं नहीं समझता कि सऊदी अरब पाकिस्तान से ईरान विरोधी रुख अपनाने के लिए कह रहा है. पाकिस्तान ऐसा रुख अपना भी नहीं सकता क्योंकि ईरान भी चीन के करीब है और पाकिस्तान भी. दोनों देशों के रिश्ते वास्तविकताओं पर आधारित हैं और सऊदी अधिकारी जानते हैं कि पाकिस्तान से अच्छे रिश्ते उनके हित में हैं."
लेकिन पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने जिस तरह मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी के बहाने सऊदी अरब को निशाना बनाया, उसे अनदेखा करना सऊदी अधिकारियों के लिए आसान नहीं. उन्होंने कह दिया कि सऊदी अरब साथ नहीं देता है, तो उसे छोड़िए और ओआईसी के जो मुस्लिम देश कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करते हैं, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को उनकी बैठक बुलानी चाहिए. सऊदी अरब ने इसे एक चुनौती के तौर पर देखा. सऊदी अरब इस बात को कतई पसंद नहीं करेगा कि कोई ओआईसी में उसके नेतृत्व को कमजोर करने की कोशिश करे.
रिपोर्ट: अब्दुलसत्तार, इस्लामाबाद से (एएफपी इनपुट के साथ)
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