समर्थन वापसी से उलझी परियोजनाएं
२४ सितम्बर २०१२भारी वित्तीय संकट से जूझ रहे इस राज्य को केंद्र से विशेष पैकेज मिलने की उम्मीदें भी धूमिल हो गई हैं. इसी पैकेज के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बार-बार यूपीए के फैसलों को लागू करने की राह में रोड़े अटकाए थे. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब की उम्मीदवारी का विरोध भी इसी वजह से किया था. लेकिन यूपीए सरकार से उनके समर्थन वापस लेते ही बंगाल पर संकट के बादल और गहरे हो गए हैं. इसके अलावा रेल मंत्रालय हाथ में रहते तृणमूल कांग्रेस ने जिन नई परियोजनाओं का शिलान्यास किया था उनका भविष्य भी अधर में लटक गया है. वित्तीय विशेषज्ञों के अलावा राज्य के आम लोग भी मानते हैं कि इस फैसले की राज्य को विकास के रूप में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
करोड़ों की रेल परियोजनाएं
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने यूपीए सरकार के अब तक के कार्यकाल में रेल मंत्रालय के तहत बंगाल में लगभग 70 हजार करोड़ की लागत वाली दर्जनों नई परियोजनाओं की शुरूआत की या कराई थी. ममता के मुख्यमंत्री बनने के बाद रेल मंत्री चाहे दिनेश त्रिवेदी रहे हों या फिर मुकुल राय, रेल मंत्रालय का संचालन तो कोलकाता से ममता के इशारे पर ही होता था. इस दौरान राज्य में रेलवे की जितनी नई परियोजनाएं शुरू की गईं, वह अपने आप में एक रिकार्ड है. बंगाल के लिए नई-नई परियोजनाओं के एलान के साथ ही बजट आवंटन भी प्राथमिकता के आधार पर किया जाता था. अब तक राज्य के विभिन्न स्थानों पर रेलवे की 16 फैक्ट्रियां खोलने का एलान हो चुका है. इनमें से कुछ का काम आखिरी चरण में है.
ममता ने टाटा की लखटकिया कार परियोजना और उस पर हुए विवादों के लिए सुर्खियों में रहे सिंगूर के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए वहां रेलवे की एक कोच फैक्टरी लगाने की घोषणा की थी. लेकिन अब उसका भविष्य अधर में लटक गया है. उसका तो अब तक काम भी शुरू नहीं हुआ है. राज्य में इन दिनों नई रेलवे लाइनें बिछाने और मीटर गेज को ब्राड गेज में बदलने का काम भी बड़े पैमाने पर चल रहा था. इसके अलावा 11 नई लाइनों के सर्वेक्षण का काम भी पूरा हो गया है. लेकिन अब इन परियोजनाओं का क्या होगा, लाख टके के इस सवाल का जवाब तृणमूल कांग्रेस के सांसदों-नेताओं के पास भी नहीं है.
कालेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर अपराजित चक्रवर्ती सवाल करते हैं कि आखिर अब इन परियोजनाओं के लिए पैसे कहां से आएंगे ? राज्य तो पहले से ही लगभग कंगाल हो चुका है.
कर्ज के बोझ से राहत नहीं
पश्चिम बंगाल 2.26 लाख करोड़ के भारी-भरकम कर्ज के बोझ तले दबा कराह रहा है. यह सर्वाधिक कर्ज लेने वाले राज्यों में शुमार है. राज्य को हर साल भारी बजट घाटे से जूझना पड़ता है. मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान भी इसका बजट घाटा 6,585 करोड़ रहने का अनुमान है. वेतन, पेंशन और दूसरी सेवानिवृत्ति सुविधाओं के मद में होने वाला खर्च लगातार बढ़ रहा है. सरकार आंतरिक संसाधन बढ़ाने में नाकाम रही है. इस परिस्थिति से उबरने के लिए ही ममता बनर्जी पिछले डेढ़ साल से विशेष आर्थिक पैकेज की मांग कर रही थीं. लेकिन बदली राजनीतिक परिस्थितियों में इस विशेष पैकेज का भविष्य भी अधर में लटक गया है. केंद्र सरकार राज्य को 16 हजार करोड़ का एक विशेष पैकेज देने की तैयारी कर रही थी. इसके लिए राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्र और केंद्रीय वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के बीच कई बार बातचीत भी हो चुकी थी. लेकिन ममता ने बीच में ही केंद्र सरकार से नाता तोड़ने का एलान कर दिया.
कठिन है आगे की राह
वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीतिक मजबूरी में केंद्र से समर्थन वापस लेने के नतीजे दूरगामी हो सकते हैं. एक अर्थशास्त्री नरेश जाना कहते हैं, ‘अब जब केंद्र से तृणमूल के रिश्ते टूट चुके हैं तो सरकार बंगाल को कोई विशेष छूट या सुविधा क्यों देगी? इसका असर मौजूदा विकास परियोजनाओं पर पड़ेगा. इससे राज्य की विकास की गति और धीमी हो जाएगी. राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा.' वित्त विश्लेषक मोहन पांड्या कहते हैं कि सरकार की सहयोगी रहते तृणमूल कांग्रेस को जो सहूलियतें मिल रही थी वह अब खत्म हो जाएंगी. ऐसे में विभिन्न मोर्चे पर समस्याओं से जूझ रहे इस राज्य का संकट और गहराने का अंदेशा है.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: आभा मोंढे