समलैंगिक अधिकारों के लिए रैली
१९ जुलाई २०१२समलैंगिकों और किन्नरों के समर्थन में रंगीन पोशाकों में सैकड़ों लोग रविवार को पश्चिम बंगाल की राजधानी में सड़कों पर उतरे. उन्होंने इस समुदाय के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने की मांग की. 'रेनबो प्राइड वाक' का यह सिलसिला कोलकाता में ही शुरू हुआ था. यह लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर यानी एलजीबीटी समुदाय की एशिया में सबसे पुरानी रैली है. पहली बार यहां 1999 में इसका आयोजन किया गया. उसके बाद से यह इस तबके के लोगों का सालाना उत्सव बन गया है. रंग बिरंगे कपड़े पहन कर और मुखौटे लगा कर नाचते गाते हुए रैली में शामिल होने वाले लोगों के मन में अपने समलैंगिक या किन्नर होने के प्रति कोई शर्म या झिझक नहीं थी.
रैली के आयोजकों में एक संगठन 'साथी' के पवन ढल बताते हैं, "हमारे मन में अपने लिंग को लेकर कोई हीन भावना नहीं है. हम जो है, जैसा है के आधार पर इस समाज में अपने लिए इज्जत चाहते हैं." इस रैली में विभिन्न गैरसरकारी संगठनों के अलावा बांग्ला फिल्मोद्योग की कुछ हस्तियों ने भी शिरकत की. ढल कहते हैं, "हम समाज में अल्पसंख्यक के तौर पर अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं. भारतीय समाज में समलैंगिकता कोई अजूबा नहीं है. ऋग्वेद तक में इसका जिक्र किया गया है."
पवन कहते हैं, "हम अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन का यह संदेश फैलाने का प्रयास कर रहे हैं कि समलैंगिक अधिकार मानवाधिकार हैं और मानवाधिकार समलैंगिक अधिकार हैं. यानी दोनों में कोई अंतर नहीं है." वह उम्मीद जताते हैं कि धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस तबके के अनुकूल रहेगा. उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 में समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर रखने का दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला इस तबके के लोगों के लिए पहली बड़ी कामयाबी थी.
ध्यान रहे कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और व्यवस्था दी कि एकांत में दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं हैं.
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत समलैंगिक यौन संबंध अपराध है, जिसमें उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. वरिष्ठ बीजेपी नेता बीपी सिंघल ने हाईकोर्ट के फैसले को यह कहकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी कि इस तरह की गतिविधियां अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के मूल्यों के खिलाफ हैं.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और एपोस्टोलिक चर्चेज जैसे धार्मिक संगठनों ने भी फैसले को चुनौती दी थी. केंद्र सरकार ने भी हाईकोर्ट में तो इसे अपराध माना था. लेकिन बाद में उसने सुप्रीम कोर्ट में अपना रुख बदलते हुए हाईकोर्ट के फैसले को सही करार दिया.
गुजरात से रैली में शिरकत करने आए स्वागत कहते हैं, "मेरी टीम में डाक्टर, डिजाइनर और उद्यमी भी हैं और वह लोग एलजीबीटी तबके के हैं." उन्हें उम्मीद है कि जल्दी ही उनके राज्य गुजरात में भी ऐसी रैली का आयोजन होगा. लेखक और एलजीबीटी तबके के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले अशोक कवि कहते हैं, "मैंने 1999 में यहां हुई पहली रैली में शिरकत की थी. तब इसमें महज 14 लोग शामिल हुए थे. लेकिन समय के साथ इस तबके के लोगों की झिझक खत्म हुई है और अब हजारों लोग इसमें शामिल होते हैं."
रैली की एक अन्य आयोजक सोनाली राय कहती हैं, "इस समुदाय के बारे में समाज में अब भी कई भ्रांतियां हैं. समाज की सोच बदलने में ऐसी रैलियों की भूमिका बेहद अहम है." आयोजकों ने विभिन्न राजनीतिक दलों से भी समर्थन में की अपील की है. लेकिन पवन के मुताबिक, उनकी बात सुनते तो सभी हैं पर मामला उससे आगे नहीं बढ़ा है. सोनाली का कहना है कि सरकार भेदभाव विरोधी कानून लागू करे ताकि शिक्षण संस्थानों, कामकाज के स्थानों व अन्य संस्थानों में भेदभाव को खत्म किया जा सके.
समलैंगिकों के विभिन्न संगठन 'रेनबो प्राइड वीक' यानी गौरव सप्ताह के 'गे फिल्म फेस्टिवल' का भी आयोजन करते रहे हैं. इस दौरान पुरुष व महिला समलैंगिकों के विषयों वाली फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता है.
क्या इस तबके के लोगों को समाज में सिर उठा कर जीने का हक मिलेगा. इस सवाल पर पवन ढल कहते हैं कि ऐसा होने में अभी समय लगेगा. इसके लिए समाज को अपनी सोच बदलनी होगी. प्राइड वॉक यानी गर्व यात्रा समाज की सोच बदलने की दिशा में ही एक पहल है.
रिपोर्ट: प्रभाकर,कोलकाता
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी