सारकोजी ने तुर्की को अर्मेनिया में धमकाया
७ अक्टूबर २०११अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर अर्मेनिया गए सारकोजी ने तुर्की से कहा कि फिर से दोस्ती बढ़ाने के लिए काम करे और हत्याओं को नरसंहार के तौर पर स्वीकारे. उन्होंने कहा कि अगर तुर्की ऐसा नहीं करता है, तो फ्रांस इसके खिलाफ कानून भी बना सकता है. सारकोजी ने कहा, "अगर तुर्की ऐसा नहीं करता है तो फ्रांस एक कदम आगे बढ़कर अपने कानूनों में बदलाव कर सकता है और नरसंहार को नकारने को गैरकानूनी बना सकता है."
सारकोजी ने कहा कि उनकी बात चेतावनी नहीं है लेकिन वह काफी सख्त थे. उन्होंने कहा कि फ्रांस यह कदम बहुत जल्दी उठा सकता है.
फ्रांस तुर्की के यूरोपीय संघ में आने का विरोध करता रहा है. इसलिए भी तुर्की उससे कुछ खफा रहता है लेकिन सारकोजी के इस बयान पर तो उसने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. तुर्की के विदेश मंत्री अहमत दावुतोगलू ने कहा कि फ्रांस को औरों को सीख देने से पहले अपने साम्राज्यवादी इतिहास की ओर देखना चाहिए. उन्होंने कहा, "तुर्की को इतिहास का पाठ पढ़ाने का फ्रांस को कोई हक नहीं."
क्या है मामला
अर्मेनिया का कहना है कि विश्व युद्ध से पहले शुरू हुई उठापटक में मुल्क में 15 लाख लोग मारे गए और इसे नरंसहार कहा जाना चाहिए. उसके इस रुख को कई इतिहासकारों और दुनिया के कई देशों का समर्थन हासिल है. लेकिन तुर्की इसे नरसंहार मानने से इनकार करता है. उसका कहना है कि मरने वालों में सिर्फ अर्मेनियाई ईसाई ही नहीं थे बल्कि मुस्लिम तुर्क भी थे.
सारकोजी 2007 में भी ऐसी बात कह चुके हैं. तब फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे. इसलिए सारकोजी के इस बयान के राजनीतिक मायने भी हैं. फ्रांस में अर्मेनियाई मूल के लगभग 50 हजार वोट हैं. 2007 में जब सारकोजी ने नरसंहार को नकारने को गैरकानूनी बनाने की बात कही तो फ्रांस के निचले सदन ने उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
नागोर्नो-काराबाख विवाद
काकेशस देशों के अपने इस दौरे पर सारकोजी अजरबैजान और जॉर्जिया भी जा रहे हैं. अजरबैजान जाने से पहले उन्होंने अर्मेनिया और अजरबैजान से अपील की कि नागोर्नो-कराबाख इलाके पर अपने विवाद हल करें. नागोर्नो-काराबाख अजरबैजान का इलाका है जिसमें अर्मेनियाई मूल के लोगों की तादाद ज्यादा है. इस इलाके को लेकर 1990 के दशक में दोनों देश आमने सामने हो चुके हैं. जब अजरबैजान सोवियत संघ से अलग हुआ तो अर्मेनिया का समर्थन पाए नागोर्नो-काराबाख के विद्रोहियों ने इलाके को अजेरी कब्जे से छीन लिया. लेकिन इस विद्रोह में 30 हजार लोग मारे गए और 10 लाख लोग अपना घर बार खो बैठे.
1994 में युद्ध विराम होने के बाद से अमेरिका, फ्रांस और रूस शांति समझौता कराने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन विवाद चलता रहता है. बुधवार को भी युद्ध विराम सीमा पर हुई गोलीबारी में दो अजेरी और एक अर्मेनियाई सैनिक मारा गया.
तुर्की इस विवाद में भी शामिल रहा है. 1993 में उसने मुस्लिम बहुल देश अजरबैजान के साथ अपना समर्थन दिखाने के लिए अर्मेनिया के साथ लगती सीमा को बंद कर दिया. और अब ओटोमन साम्राज्य के दौरान हुई हत्याओं को नरसंहार न मानने के उसके रुख ने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों को असामान्य बना रखा है.
सारकोजी ने अर्मेनियाई राष्ट्रपति सेर्ज सार्कस्यान से मुलाकात के दौरान कहा, "शांति के लिए खतरे उठाने का वक्त आ गया है. अर्मेनियाई, अजेरी और तुर्क. आप सभी को यही रास्ता चुनना होगा. और कोई रास्ता नहीं है. यही शांति का रास्ता है."
रिपोर्टः रॉयटर्स/वी कुमार
संपादनः महेश झा