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सीरिया के 'लुटे हुए' लोग

२८ अगस्त २०१३

मुहम्मद अल शरीफ का कहना है कि उन पर राजधानी दमिश्क के बाहर रासायनिक हमला हुआ. वह तो बच गए लेकिन अपने दो बच्चों को नहीं बचा पाए. घर बार सब छूट गया और अब वह "लुटे हुए" इंसान की तरह हैं.

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तस्वीर: Reuters

सीरिया के पूर्वी घौता इलाके से 45 साल के अल शरीफ किसी तरह बच कर भागे हैं. उनके साथ कुछ रिश्तेदार भी भागने में कामयाब रहे और उन्होंने विपक्षी नियंत्रण वाले गांव ताल शिहाब में शरण ली है, जो जॉर्डन की सीमा पर है. उन्हें एक स्कूल में रहना पड़ रहा है, जहां आजकल पढ़ाई नहीं होती.

अमेरिका का कहना है कि इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है कि सीरिया में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ है. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी कहते हैं कि इससे पूरी दुनिया हिल गई है.

अल शरीफ का कहना है कि उन्हें इस बात की जानकारी है कि पश्चिमी देश बहस कर रहे हैं कि सीरिया पर हमला किया जाए या नहीं, लेकिन इससे उन्हें कोई राहत नहीं मिलती, "मिसाइल और लड़ाकू विमान मेरे बच्चों को वापस नहीं ला सकते हैं. युद्ध से मेरा घर दोबारा नहीं बन सकता है. पश्चिम ने हमें बचाने में बहुत देर कर दी."

Symbolbild Syrien Giftgas
जहरीली गैसों का डरतस्वीर: Edouard Elias/AFP/Getty Images

घंटे भर में मौत...

पूर्वी घौता में अल शरीफ जैसे दर्जन भर लोग हैं, जो केमिकल हमले के बाद भी बचने में कामयाब रहे. विपक्ष का दावा है कि वहां कम से कम 1300 लोग मारे गए. मेडिकल राहत संस्था मेडेसिंस सांस फ्रांटियरेस का कहना है कि 3,600 मरीजों में रासायनिक हमले के लक्षण पाए गए. उसके मुताबिक 21 अगस्त की इस घटना के तीन घंटे के अंदर 355 मरीजों ने दम तोड़ दिया.

उम मुहम्मद का रो रोकर बुरा हाल है. उसका कहना है कि 18 साल के उसके बेटे मुहम्मद यूसुफ की मौत भी रासायनिक हमले में ही हुई, जबकि संयुक्त राष्ट्र के केमिकल हथियारों की जांच करने वाले इंस्पेक्टर सिर्फ 60 किलोमीटर की दूरी पर थे, "दो साल से दुनिया देख रही है. इस दौरान बशर ने दो लाख मर्दों, औरतों और बच्चों की जान ले ली है." बेटे की मौत के बाद वह अपने चार दूसरे बच्चों के साथ पैदल ही भागी और अब इस गांव में शरण ली है.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि मार्च 2011 के बाद से एक लाख लोग सीरिया में मारे गए हैं. उसी वक्त राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ क्रांति की शुरुआत हुई, जिसे अब तक दबाया गया है.

Lage der syrischen Flüchtlinge in Jordanien
राहत शिविर के सहारेतस्वीर: dapd

कुछ तो बदले

पूर्वी घौता के लोगों ने इस बात पर शक जताया है कि सीरिया के खिलाफ सैनिक कार्रवाई से स्थिति बदलेगी. उनमें से 6,000 लोग जॉर्डन की सीमा पर किसी तरह जी रहे हैं. उनकी स्थिति बेहद खराब है. न तो वे घर लौट पा रहे हैं और न ही सीमा पार कर जॉर्डन जा पा रहे हैं. उनका कहना है कि राहत की बात सिर्फ इतनी है कि वे हमले की सीमा से बाहर हैं.

अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ घौता से भागे 42 साल के इंजीनियर मुहम्मद ए अबु कमाल का कहना है, "हमारे पास कोई आशियाना नहीं, कोई खाना नहीं, न पैसा है और न ही कहीं जाने का साधन है. यहां हमारे साथ सिर्फ खुदा है और कुछ पुरानी यादें."

बचे हुए लोगों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप से उन्हें सुरक्षित जॉर्डन में जाने का रास्ता मिल सकता है या फिर उनके रहने का ठिकाना मिल सकता है. अबु कमाल का कहना है, "हर मिनट हमें इस बात का खतरा रहता है कि हमारे सिर के ऊपर से कोई मिसाइल गुजरेगा. अगर पश्चिम वाकई में सीरिया की फिक्र करता है, तो उसे मानवीय दखल देना चाहिए, युद्ध नहीं करना चाहिए."

एक तरफ जहां पश्चिमी देश सैनिक दखल का नगाड़ा पीट रहे हैं, वहीं पूर्वी घौता के लोग सहमे हुए हैं. अल शरीफ कहते हैं, "हम गैस से, या रॉकेट से या भूख से मर जाएंगे. लेकिन आखिर में खुदा उसके साथ इंसाफ करेगा, जिनकी वजह से ऐसा होगा."

एजेए/एनआर(डीपीए)

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