हर आठ मिनट में बलात्कार
२७ अप्रैल २०१३हर आठ मिनट में दक्षिण अफ्रीका में एक महिला दरिंदगी का शिकार होती है. 2012 में वहां 64,000 महिलाएं बलात्कार का शिकार हुई. सरकार और न्याय प्रणाली इस हिंसा के खिलाफ किसी तरह का बड़ा कदम उठाने को तैयार नहीं, इसलिए राजधानी प्रिटोरिया में हजारों महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया. सिर्फ विरोध प्रदर्शन नहीं बल्कि सरकार से बलात्कार की हिंसा से निबटने के लिए मांग भी की.
यह कोई सामान्य विरोध प्रदर्शन नहीं था जो महिलाओं पर हो रही हिंसा के विरोध में किया गया हो. यह एक ऐतिहासिक दिन था. दक्षिण अफ्रीका में बलात्कार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना सामान्य नहीं. भारत की तरह वहां भी दिसंबर 2012 में एक 17 साल की लड़की से बलात्कार किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई. दिसंबर 2012 का महीना भारत के लिए भी कुछ ऐसी ही खबर ले कर आया था जब दिल्ली में चलती बस में एक छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया गया और फिर उसे गंभीर हालत में सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया गया.
भले ही यह सुनने में कितना भी अजीब लगे, यौन हिंसा दक्षिण अफ्रीका के समाज में एक तरह से स्वीकार कर ली गई. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. सोच धीमे धीमे तब्दील हो रही है. इसी का असर था कि कई सौ महिलाएं और कुछ पुरुष विरोध प्रदर्शन में आवाज बुलंद करने प्रिटोरिया में जमा हुए.
बोत्स्वाना में वकील और महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली पर्ल कूपे कहती हैं कि दुनिया भर में बलात्कार एक बड़ी समस्या है और दक्षिण अफ्रीका में यह और खराब स्थिति में है, "आंकड़ों के मुताबिक 2012 में दक्षिण अफ्रीका में बलात्कार के 64,515 मामले दर्ज किए गए. दर्ज शब्द पर मैं इसलिए जोर दे रही हूं कि क्योंकि यही आंकड़े यह भी कहते हैं कि नौ में से सिर्फ एक बलात्कार का मामला दर्ज किया जाता है."
शर्म के कारण औरतें पुलिस के पास नहीं जाती. कई मामलों में तो कुकर्म करने वाले महिलाओं को धमकी भी देते हैं. इतना ही नहीं भले ही वह मामला दर्ज करा दें लेकिन अक्सर अपराधियों को पकड़ा ही नहीं जाता. अगर कभी पकड़े जाएं तो अकसर बेकसूर साबित हो छोड़ दिए जाते हैं. कूपे कहती हैं, "कभी कभी जांच जितने अच्छे से होनी चाहिए वैसी होती नहीं. दस्तावेज गायब हो जाते हैं. भ्रष्टाचार पर भी एक-आध छोटी सी रिपोर्ट निश्चित होगी कि पुलिस वालों को रिश्वत दी जाती है ताकि वह कागजात गायब कर दें. फिर सबूत ठीक से इकट्ठा नहीं किए जाते. और फिर जब अपराध के बारे में दुविधा की स्थिति पैदा हो जाती है, भले ही अपराधी को पता हो कि उसने क्या किया है, वह छूट ही जाता है."
दक्षिण अफ्रीका में बलात्कारों की संख्या इतनी ज्यादा होने का एक अहम कारण यह भी है कि समाज में महिलाओं को दोयम दर्जे का समझा जाता है उन्हें पुरुषों से नीचे. उन्हें सिर्फ यौन संतुष्टि प्राप्त करने का जरिया और घर का काम काज करने वाला समझा जाता है. महिला अधिकारों के लड़ने वाले संगठन विमेन ऑफ होप की प्रवक्ता लीडिया मेसहोए कहती हैं, "महिलाएं आजाद नहीं. लगातार हो रहे बलात्कारों ने हमसे आजादी छीन ली है. हमें हमेशा देखना पड़ता है कि हम कहां जा रहे हैं, कैसे जा रहे हैं. शाम ढलते ही हम घर से बाहर नहीं जा सकते. कोई भी आजाद नहीं. हमारी बेटियों के साथ जबरदस्ती की जाती है. हमारी दादी नानियां इससे सुरक्षित नहीं. एक महीने पहले हुई घटना में एक 100 साल की महिला से बलात्कार किया गया."
ये ऐसे मामले हैं जो मीडिया में दिखाई देते हैं. रेडियो, टीवी पर इन पर बहस होती है लेकिन इसके बावजूद बदलाव नहीं हो रहा. र्ल कूपे कहती हैं, "अफ्रीका में एक मुहावरा है. ये कहता है, जब आपने एक पुरुष को पाल पोस कर बड़ा किया तो आपने सिर्फ पुरुष को ही बड़ा किया है लेकिन अगर आपने स्त्री को बड़ा किया है तो आपने पूरे देश को बड़ा किया है. क्योंकि एक महिला पत्नी, मां है. वह नौकरी भी करती है, कई क्षेत्रों में नौकरी करती है और बहुत सारे लोगों पर प्रभाव डाल सकती है. जब कोई किसी महिला से बलात्कार करता है तो वह पूरे देश के साथ ऐसा कर रहा होता है."
विरोध प्रदर्शनों के जरिए प्रिटोरिया में महिलाएं सिर्फ विरोध ही दर्ज करना नहीं चाहती वो कुछ बदलना चाहती हैं. वह हालात सुधारना चाहती हैं. इसलिए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की सरकार के लिए मेमोरेंडम भी तैयार किया है.
इसका कम से कम एक असर तो हुआ कि सरकार ने बातचीत करने के संकेत दिए हैं. वह महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों और संस्थाओं के साथ नियमित बातचीत करेगी और समस्या का हल निकालेगी. बलात्कार के खिलाफ लंबे समय से जारी महिलाओं की लडा़ई में पहला कदम उठ चुका है.
रिपोर्टः आंद्रेयास हैर्सेल/आभा मोंढे
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी