हाया सोफिया के साथ तुर्की को सालों पीछे ले गए एर्दोवान
१४ अगस्त २०२०धर्मनिरपेक्ष तुर्की को इस्लाम की ओर ले जा रहे एर्दोवान के लिए आज का दिन संतोष का दिन है. ये दिन सिर्फ जुम्मे का दिन नहीं है, ये दिन लुजान में 1923 में हुई उस संधि का दिन भी है, जिसमें युद्ध के बाद नए तुर्की की सीमा तय की गई थी. इसने ऑटोमन साम्राज्य और यूरोप के दूसरे देशों के बीच विवाद को सुलझाने का काम किया. तुर्की के राष्ट्रपिता समझे जाने वाले कमाल अतातुर्क को अब कमजोर दिखाया जा रहा है. यहां तक कहा जा रहा है कि उन्होंने इस्लामी पहचान की बलि चढ़ा दी और पश्चिम के सामने घुटने टेक दिए. हाया सोफिया उसका प्रतीक बन गया है.
तुर्की के इस्लामी कट्टरपंथियों के लिए हाया सोफिया को मस्जिद में बदलना ऑटोमन साम्राज्य की भव्यता के प्रतीक की वापसी है. राष्ट्रपति एर्दोवान के साथ करीब 1000 लोगों ने हागिया सोफिया की ऐतिहासिक इमारत में हुए समारोह में हिस्सा लिया. यूरोप और एशिया को बांटने वाली बॉसपोरस में पहाड़ी पर बने हागिया सोफिया का 15 सदी का इतिहास है. इसमें पूरब और पश्चिम दोनों के मूल्य घुले मिले हैं और इसने ईसाइयत और इस्लाम दोनों पर असर डाला है. इस इमारत को छठी सदी में बाइजेंटाइनी सम्राट जस्टीनियन प्रथम ने ऑर्थोडॉक्स ईसाई गिरजे के तौर पर बनवाया था. यह रोमन साम्राज्य का प्रमुख चर्च था और करीब 1000 साल तक दुनिया का सबसे बड़ा चर्च रहा.
जीत के बाद बदला इतिहास
जब 1453 में कोंस्टांटिनोपल पर ऑटोमन सैनिकों ने कब्जा कर लिया तो ऑटोमन सुल्तान मेहमत द्वितीय ने इसे बड़ी मस्जिद में बदल दिया और कोंस्टांटिनोपल का नाम बदल कर इस्तांबुल कर दिया. बाद के समय में बाइजेंटाइनी दौर के संगमरमरों को या तो ढक दिया गया नष्ट कर दिया गया. तब से 1934 तक यह मस्जिद रहा. आधुनिक तुर्की के निर्माता अतातुर्क ने ना सिर्फ इसे सबों के लिए खोल दिया बल्कि इसे म्यूजियम भी बना दिया और इसकी ढकी हुई चित्रकारियों और मार्बल फ्लोर को फिर से सामने ला दिया. जब पर्यटन उद्योग बढ़ने लगा तो लोग म्यूजियम देखने भी जाने लगे और हाया सोफिया देश में सबसे ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करने वाला म्यूजियम बन गया. पिछले साल यूनेस्को की इस सांस्कृतिक धरोहर को देखने 37 लाख लोग गए थे. अब इसे अचानक मस्जिद बनाए जाने के बाद उसका विश्व धरोहर का दर्जा खतरे में है.
वैसे उसे इतना अचानक भी मस्जिद नहीं बनाया गया है. इस्लामी कट्टरपंथी हमेशा से हाया सोफिया को फिर से मस्जिद बनाए जाने का सपना देखते रहे हैं. पिछले सालों में तुर्की के राष्ट्रपति भी सुन्नी इस्लाम को प्रोत्साहन देने और देश में अपनी ताकत पुख्ता करने के लिए धर्म का इस्तेमाल करते रहे हैं. धर्मनिरपेक्ष तुर्की में उन्होंने ना सिर्फ अपनी धार्मिक पार्टी को स्वीकार्य बनाया है, बल्कि सालों से उसका बहुमत भी सुनिश्चित किया है. इस प्रक्रिया में वे तुर्की की धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, विपक्षी पार्टियों और उनका विरोध करने वाली मीडिया को तहस नहस करते गए हैं. आज 100 से ज्यादा पत्रकार अपने काम की वजह से तुर्की की जेलों में बंद हैं.
एर्दोवान के इरादे
पश्चिम में बहुत से लोग ये सवाल पूछ रहे हैं कि एर्दोवान को हाया सोफिया को मस्जिद बनाने की जरूरत क्या थी. ये घरेलू आबादी के साथ साथ पश्चिमी देशों पर भी लक्षित है. एक ओर धर्म का इस्तेमाल वे राष्ट्रवादियों का समर्थन पाने के लिए कर रहे हैं तो दूसरी ओर यूरोप को संकेत भी दे रहे हैं. सालों तक यूरोपीय संघ का सदस्य बनने की कोशिशों के बाद अब वे फिर से इस्लामी पहचान का सहारा ले रहे हैं और तुर्की के इर्द गिर्द इस्लामी देशों को इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं. इस्लामी देश इस समय शिया और सुन्नी धड़ों में बंटे हैं. एक ओर सऊदी अरब और उसके साथी देश हैं और दूसरी ओर ईरान और उसके साथी देश. पिछले दिनों तुर्की ने पाकिस्तान और मलेशिया के साथ गठबंधन बनाने और मिलजुलकर अंतरराष्ट्रीय इस्लामी मीडिया चैनल बनाने की पहल की थी. हालांकि पाकिस्तान ने सऊदी अरब के दबाव में पैर पीछे खींच लिए, लेकिन इरादे साफ हैं.
नाटो में अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय देशों के साथ तुर्की भी सदस्य है. लेकिन वह शरणार्थियों के मुद्दे पर यूरोप को ब्लैकमेल करता रहा है और इस समय साइप्रस के निकट तेल खुदाई के परीक्षण के जरिए ग्रीस को उकसा रहा है. एक बार फिर नाटो के दो सदस्यों के बीच सैनिक टकराव की संभावना हकीकत बन गई है. तुर्की सीरिया और लीबिया में सैनिक हस्तक्षेप कर अपनी अंतरराष्ट्रीय ताकत दिखा रहा है.
हाया सोफिया को मस्जिद बनाना इन्हीं प्रयासों की ताजा कड़ी है. फिलहाल एर्दोवान ने दुनिया को भरोसा दिलाया है कि हाया सोफिया में जब नमाज नहीं पढ़ी जाएगी तो वह दुनिया के लिए खुली रहेगी और बाइजेंटाइनी कलाकृतियों को भी सिर्फ नमाज के दौरान ही ढका जाएगा. लेकिन अपने फैसले के साथ उन्होंने यूरोप के साथ विभाजन को और पुख्ता कर लिया है.
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