1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

हाया सोफिया के साथ तुर्की को सालों पीछे ले गए एर्दोवान

१४ अगस्त २०२०

तुर्की के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है. 86 साल तक म्यूजियम रहने के बाद इस्तांबुल के सांस्कृतिक धरोहर हाया सोफिया में आज फिर से नमाज पढ़ी गई. देश के धर्मभीरू बहुमत के लिए ये भावनात्मक दिन है.

https://p.dw.com/p/3fqqm
Hagia Sofia Mosque Türkei Istanbul
तस्वीर: AFP/Getty Images

धर्मनिरपेक्ष तुर्की को इस्लाम की ओर ले जा रहे एर्दोवान के लिए आज का दिन संतोष का दिन है. ये दिन सिर्फ जुम्मे का दिन नहीं है, ये दिन लुजान में 1923 में हुई उस संधि का दिन भी है, जिसमें युद्ध के बाद नए तुर्की की सीमा तय की गई थी. इसने ऑटोमन साम्राज्य और यूरोप के दूसरे देशों के बीच विवाद को सुलझाने का काम किया. तुर्की के राष्ट्रपिता समझे जाने वाले कमाल अतातुर्क को अब कमजोर दिखाया जा रहा है. यहां तक कहा जा रहा है कि उन्होंने इस्लामी पहचान की बलि चढ़ा दी और पश्चिम के सामने घुटने टेक दिए. हाया सोफिया उसका प्रतीक बन गया है.

तुर्की के इस्लामी कट्टरपंथियों के लिए हाया सोफिया को मस्जिद में बदलना ऑटोमन साम्राज्य की भव्यता के प्रतीक की वापसी है. राष्ट्रपति एर्दोवान के साथ करीब 1000 लोगों ने हागिया सोफिया की ऐतिहासिक इमारत में हुए समारोह में हिस्सा लिया. यूरोप और एशिया को बांटने वाली बॉसपोरस में पहाड़ी पर बने हागिया सोफिया का 15 सदी का इतिहास है. इसमें पूरब और पश्चिम दोनों के मूल्य घुले मिले हैं और इसने ईसाइयत और इस्लाम दोनों पर असर डाला है. इस इमारत को छठी सदी में बाइजेंटाइनी सम्राट जस्टीनियन प्रथम ने ऑर्थोडॉक्स ईसाई गिरजे के तौर पर बनवाया था. यह रोमन साम्राज्य का प्रमुख चर्च था और करीब 1000 साल तक दुनिया का सबसे बड़ा चर्च रहा.

Bildergalerie Hagia Sophia
ढक दिया गया इन कलाकृतियों कोतस्वीर: STR/AFP/Getty Images

जीत के बाद बदला इतिहास

जब 1453 में कोंस्टांटिनोपल पर ऑटोमन सैनिकों ने कब्जा कर लिया तो ऑटोमन सुल्तान मेहमत द्वितीय ने इसे बड़ी मस्जिद में बदल दिया और कोंस्टांटिनोपल का नाम बदल कर इस्तांबुल कर दिया. बाद के समय में बाइजेंटाइनी दौर के संगमरमरों को या तो ढक दिया गया नष्ट कर दिया गया. तब से 1934 तक यह मस्जिद रहा. आधुनिक तुर्की के निर्माता अतातुर्क ने ना सिर्फ इसे सबों के लिए खोल दिया बल्कि इसे म्यूजियम भी बना दिया और इसकी ढकी हुई चित्रकारियों और मार्बल फ्लोर को फिर से सामने ला दिया. जब पर्यटन उद्योग बढ़ने लगा तो लोग म्यूजियम देखने भी जाने लगे और हाया सोफिया देश में सबसे ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करने वाला म्यूजियम बन गया. पिछले साल यूनेस्को की इस सांस्कृतिक धरोहर को देखने 37 लाख लोग गए थे. अब इसे अचानक मस्जिद बनाए जाने के बाद उसका विश्व धरोहर का दर्जा खतरे में है.

वैसे उसे इतना अचानक भी मस्जिद नहीं बनाया गया है. इस्लामी कट्टरपंथी हमेशा से हाया सोफिया को फिर से मस्जिद बनाए जाने का सपना देखते रहे हैं. पिछले सालों में तुर्की के राष्ट्रपति भी सुन्नी इस्लाम को प्रोत्साहन देने और देश में अपनी ताकत पुख्ता करने के लिए धर्म का इस्तेमाल करते रहे हैं. धर्मनिरपेक्ष तुर्की में उन्होंने ना सिर्फ अपनी धार्मिक पार्टी को स्वीकार्य बनाया है, बल्कि सालों से उसका बहुमत भी सुनिश्चित किया है. इस प्रक्रिया में वे तुर्की की धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, विपक्षी पार्टियों और उनका विरोध करने वाली मीडिया को तहस नहस करते गए हैं. आज 100 से ज्यादा पत्रकार अपने काम की वजह से तुर्की की जेलों में बंद हैं.

Goldenes Horn in Istanbul
पर्यटकों में अत्यंत लोकप्रिय तस्वीर: Fotolia/Jan Schuler

एर्दोवान के इरादे

पश्चिम में बहुत से लोग ये सवाल पूछ रहे हैं कि एर्दोवान को हाया सोफिया को मस्जिद बनाने की जरूरत क्या थी. ये घरेलू आबादी के साथ साथ पश्चिमी देशों पर भी लक्षित है. एक ओर धर्म का इस्तेमाल वे राष्ट्रवादियों का समर्थन पाने के लिए कर रहे हैं तो दूसरी ओर यूरोप को संकेत भी दे रहे हैं. सालों तक यूरोपीय संघ का सदस्य बनने की कोशिशों के बाद अब वे फिर से इस्लामी पहचान का सहारा ले रहे हैं और तुर्की के इर्द गिर्द इस्लामी देशों को इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं. इस्लामी देश इस समय शिया और सुन्नी धड़ों में बंटे हैं. एक ओर सऊदी अरब और उसके साथी देश हैं और दूसरी ओर ईरान और उसके साथी देश. पिछले दिनों तुर्की ने पाकिस्तान और मलेशिया के साथ गठबंधन बनाने और मिलजुलकर अंतरराष्ट्रीय इस्लामी मीडिया चैनल बनाने की पहल की थी. हालांकि पाकिस्तान ने सऊदी अरब के दबाव में पैर पीछे खींच लिए, लेकिन इरादे साफ हैं.

नाटो में अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय देशों के साथ तुर्की भी सदस्य है. लेकिन वह शरणार्थियों के मुद्दे पर यूरोप को ब्लैकमेल करता रहा है और इस समय साइप्रस के निकट तेल खुदाई के परीक्षण के जरिए ग्रीस को उकसा रहा है. एक बार फिर नाटो के दो सदस्यों के बीच सैनिक टकराव की संभावना हकीकत बन गई है. तुर्की सीरिया और लीबिया में सैनिक हस्तक्षेप कर अपनी अंतरराष्ट्रीय ताकत दिखा रहा है.

हाया सोफिया को मस्जिद बनाना इन्हीं प्रयासों की ताजा कड़ी है. फिलहाल एर्दोवान ने दुनिया को भरोसा दिलाया है कि हाया सोफिया में जब नमाज नहीं पढ़ी जाएगी तो वह दुनिया के लिए खुली रहेगी और बाइजेंटाइनी कलाकृतियों को भी सिर्फ नमाज के दौरान ही ढका जाएगा. लेकिन अपने फैसले के साथ उन्होंने यूरोप के साथ विभाजन को और पुख्ता कर लिया है.

__________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

DW Mitarbeiterportrait | Mahesh Jha
महेश झा सीनियर एडिटर