गूगल की सबसे बड़ी गलती
१ जनवरी २०१४सर्च इंजन के तौर पर अब भी दुनिया की सबसे बड़ी इंटरनेट कंपनी गूगल के पूर्व सीईओ और संस्थापक एरिक श्मिट ने ब्लूमबर्ग के साथ इंटरव्यू में कहा, "गूगल में, मैंने जो सबसे बड़ी गलती की, वह यह कि सोशल नेटवर्किंग साइटों की उभार और ताकत का सही अंदाजा नहीं लगा पाया." 2001 से 2011 तक कंपनी के सीईओ रहे श्मिट ने कहा कि उनकी कंपनी ऐसी गलती दोबारा नहीं कर सकती है.
कैसे पिछड़ा गूगल
गूगल ने सोशल मीडिया के शीर्ष पर पहुंचने के साथ इसमें प्रवेश की बहुत कोशिश की लेकिन फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियां बहुत आगे निकल चुकी थीं. श्मिट का कहना है, "हमने अपने बचाव में बहुत कुछ करने की कोशिश की लेकिन हम खुद उस इलाके में हो सकते थे." सच्चाई तो यह है कि फेसबुक का जब जन्म भी नहीं हुआ था, तो गूगल ने ऑर्कुट के तौर पर सोशल मीडिया चलाया था, जो भारत और ब्राजील के अलावा कहीं और नहीं चल पाया. इसके बाद गूगल का बज भी फेल हो गया और अब कंपनी ने अपना पूरा ध्यान गूगल+ पर लगाया है लेकिन उसकी कामयाबी भी सीमित है.
गूगल ने पिछले दशक में इंटरनेट की दुनिया पर राज किया था और उसकी लोकप्रियता का यह आलम था कि गूगल को अंग्रेजी भाषा में क्रिया मान लिया गया और उसे शब्दकोषों में जगह मिल गई. एलेक्सा डॉट कॉम के मुताबिक अब भी वह पहले नंबर की वेबसाइट बनी हुई है, जबकि फेसबुक दूसरे नंबर पर है. लेकिन कभी कभी फेसबुक उससे पहला नंबर छीन लेता है.
भारतीय चुनाव में मदद
इस बीच गूगल ने भारत को आने वाले आम चुनाव में मदद का फैसला किया है. भारतीय अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक भारतीय चुनाव आयोग के साथ उसका समझौता हो गया है, जिसके तहत वह ऑनलाइन वोटरों के रजिस्ट्रेशन में मदद करेगा. अगले छह महीने तक गूगल आयोग को अपने संसाधन मुहैया कराएगा. इससे वोटर इंटरनेट पर ही पता लगा पाएंगे कि उनका नाम किस मतदान केंद्र में शामिल है और वे वहां पहुंचने के लिए गूगल मैप की सहायता भी ले सकेंगे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आखिरी तैयारियां की जा चुकी हैं और जून 2014 तक आयोग को गूगल की मदद मिलती रहेगी. इस काम में करीब 30 लाख रुपये की लागत आएगी, जो गूगल नहीं लेगा. वह इसे अपने कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के बजट से खर्च करेगा. वह इस तरह की सेवा दुनिया भर के 100 से ज्यादा देशों में दे रहा है.
एजेए/एमजे (एजेंसियां)