हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद के लिए नायाब तरकीब
८ अप्रैल २०२१क्रिसिया पास्को ने जब तालाबंदी के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में हो रही बढ़ोतरी के बारे में सुना तो वो चिंतित हो गईं. उनकी इसी चिंता से जन्म हुआ इन महिलाओं की मदद करने के लिए एक अनोखी तरकीब का. क्रिसिया ने एक ऐसी वेबसाइट शुरू की जो देखने में तो प्रसाधन सामग्री या कॉस्मेटिक्स बेचने वाली वेबसाइट लगती है लेकिन असल में यह हिंसा की शिकार महिलाओं को मदद मुहैया करवाती है.
पोलैंड की राजधानी वॉरसॉ में एक हाई स्कूल में पढ़ने वाली क्रिसिया ने एएफपी को बताया, "मुझे फ्रांस के उस आइडिया से प्रेरणा मिली जिसके तहत हिंसा की शिकार लोग किसी भी दवा की दुकान पर जा कर 19 नंबर का मास्क मांग कर अपने खिलाफ हो रही हिंसा का संकेत दे सकते हैं". 18 साल की क्रिसिया ने तय किया कि पोलैंड में भी महामारी के दौरान ऐसे किसी कोड का इस्तेमाल किया जा सकता है.
उन्होंने अप्रैल 2020 में रूमीआंकि ई ब्रातकी (कैमोमाइलस एंड पैंसीस) नाम से एक फेसबुक पेज बनाया. पेज पर लैवंडर साबुन और फेस मास्क जैसे सामान की तस्वीरों को देखकर आपको यह सही में एक ऑनलाइन दुकान लगेगी. लेकिन स्क्रीन के दूसरी तरफ बिक्री स्टाफ की जगह पोलैंड के एक एनजीओ सेंटर फॉर विमेंस राइट्स के वालंटियर मनोवैज्ञानिकों की एक टीम है.
क्रिसिया ने बताया, "जब कोई इस पेज के जरिये कोई आर्डर बुक करता है और अपना पता देता है तो वो हमारे लिए एक संकेत होता है कि उसे तुरंत अपने घर पर पुलिस की जरूरत है." उन्होंने यह भी बताया कि जो महिलाएं सिर्फ बात करना चाहती हैं वो सौंदर्य प्रसाधनों के बारे में और जानकारी मांगेंगीं. इसके बाद मनोवैज्ञानिक इशारों में कुछ सवाल पूछेंगे, जैसे "आपकी त्वचा पर शराब का क्या असर होता है या क्या बच्चों के लिए भी प्रसाधनों की जरूरत है."
इस टीम ने अभी तक करीब 350 लोगों की मदद की है और पीड़िताओं को निशुल्क कानूनी सलाह और कार्य योजनाएं दी हैं. क्रिसिया कहती हैं, "जितने कड़े प्रतिबंध लागू होते हैं, घर से बाहर निकलना और किसी दोस्त से भी मिलना उतना ही मुश्किल हो जाता है और तब और ज्यादा लोग हमें मदद के लिए लिखते हैं. अक्सर हिंसा करने वाले ऐसे समय में और ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं जब संक्रमण के मामले बढ़ रहे हों, पहले से ज्यादा प्रतिबंध लागू किए गए हों और महामारी का और ज्यादा डर हो."
मदद मांगने वालों में अधिकांश 30 साल से कम उम्र की महिलाएं होती हैं. हिंसा शारीरिक या मानसिक भी हो सकती है और उसे करने वाला या तो महिला का पार्टनर होता है या कोई रिश्तेदार. 10 से 20 प्रतिशत मामलों में पुलिस की मदद लेने की जरूरत पड़ी. क्रिसिया याद करती हैं, "मुझे एक युवा लड़की का मामला याद है, जिसमें उस लड़की का पार्टनर लगातार उस पर ऐसी निगरानी रखता था कि वो हमें तभी लिख पाती थी जब वो अपने बच्चे को नहला रही होती थी."
उस लड़की ने अपने शराबी पार्टनर के साथ रिश्ता तोड़ने की भी कोशिश की थी, लेकिन उस आदमी ने घर से निकलने से इनकार कर दिया था. क्रिसिया बताती हैं कि उनकी टीम के हस्तक्षेप की वजह से पुलिस उस महिला के घर गई, उसके पार्टनर को अपनी "चाभियां सौंपने पर मजबूर किया और उसे बताया कि अगर वो लौटा तो उसके क्या परिणाम होंगे. सौभाग्य से उस लड़की के उत्पीड़न का अंत हो गया."
तालाबंदी में घरेलू हिंसा का बढ़ जाना एक बड़ी समस्या रही है. पिछले साल मार्च में लगी पहली तालाबंदी में सेंटर फॉर विमेंस राइट्स ने पाया कि उसकी घरेलू हिंसा हॉटलाइन पर आने वाली फोन कॉल की संख्या 50 प्रतिशत बढ़ गई. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरे यूरोप में ऐसे मामलों में बढ़ोतरी के बारे में बताया. क्रिसिया को उनकी कोशिशों के लिए यूरोपीय संघ का सिविल सॉलिडैरिटी पुरस्कार दिया गया, जिसके तहत कोविड के दौरान की गई पहलों के लिए 10,000 यूरो दिए जाते हैं.
लेकिन वो कहती हैं कि पोलैंड में घरेलू हिंसा की समस्या "कुछ कुछ उपेक्षित है और भुला दी गई है...सरकार की तरफ से और समर्थन की जरूरत है." उन्होंने इस्तांबुल कन्वेंशन का हवाला दिया, जो कि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के खिलाफ एक ऐतिहासिक संधि है. पोलैंड के कानून मंत्री ने पिछले साल घोषणा की थी कि उन्होंने संधि से बाहर निकलने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है.
उनका कहना था कि संधि में ऐसे प्रावधान हैं जो रूढ़िवादी पारिवारिक मूल्यों को कमजोर करते हैं और "वैचारिक" हैं. उनकी इस घोषणा का पोलैंड के अंदर और बाहर भी विरोध किया गया, लेकिन पिछले सप्ताह सत्तारूढ़ रूढ़िवादी दल लॉ एंड जस्टिस पार्टी के सांसदों और धुर दक्षिणपंथी सांसदों ने संधि छोड़ने के कानून के मसौदे के पक्ष में मतदान किया. विरोधियों से ज्यादा संख्या जुटा लेने के बाद उन्होंने कानून को एक समिति के पास भेज दिया.
"परिवार को हां, जेंडर को ना" नाम के इस विधेयक की शुरुआत अति-रूढ़िवादी संगठन औरडो लूरिस ने की थी. इसमें एक वैकल्पिक संधि का प्रस्ताव है जिसके तहत गर्भपात और समलैंगिक विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा.
सीके/एए (एएफपी)