जर्मनी: बढ़ रही है यहूदी-विरोधी भावना, "खासकर मुस्लिमों में"
१३ दिसम्बर २०२३7 अक्टूबर को इस्राएल पर आतंकवादी संगठन हमास के हमले के बाद जर्मनी में यहूदी-विरोध, यानी एंटी-सेमिटिज्म बढ़ा है. जर्मनी समेत दुनिया के कई हिस्सों में ऐंटी-सेमिटिज्म के कारण यहूदियों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं बढ़ी हैं. लेकिन जर्मनी में हुआ एक हालिया सर्वे बताता है कि युद्ध शुरू होने से पहले भी यहूदी-विरोधी भावनाएं उभार पर थीं.
यह जानकारी जर्मनी के बेर्टेल्समान फाउंडेशन द्वारा कराए गए एक सर्वे में सामने आई है. फाउंडेशन की ओर से बॉन इनफास इंस्टीट्यूट फॉर अप्लाइड सोशल साइंस ने यह सर्वे कराया, जिसकी अवधि जून-जुलाई 2023 थी. यानी इसके नतीजे 7 अक्टूबर के बाद शुरू हुए हमास और इस्राएल के युद्ध से पहले के हैं.
इस सर्वे में जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन समेत छह देशों के लगभग 11,000 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. प्रतिभागियों में 31 से 51 फीसदी ने इस कथन से सहमति जताई कि "इस्राएल आज फलीस्तीनियों के साथ जो कर रहा है, वह सैद्धांतिक तौर पर उससे अलग नहीं जो थर्ड राइष में नाजियों ने यहूदियों के साथ किया था."
जर्मनी में यह भावना ज्यादा देखी गई
पाया गया कि बाकी देशों के मुकाबले, इस कथन पर सहमति जताने वालों की संख्या जर्मनी में ज्यादा है. बाकी देशों के प्रतिभागियों में जहां सहमति जताने वालों का औसत 38 प्रतिशत था, वहीं जर्मनी में यह संख्या करीब 43 फीसदी पाई गई.
सर्वे में हिस्से लेने वालों को इस पंक्ति पर भी राय देनी थी कि "हमारे देश में यहूदियों का प्रभाव बहुत ज्यादा है." बाकी देशों में इससे सहमति जताने वालों की तादाद 15 से 29 फीसदी रही. वहीं जर्मनी में 21 फीसदी प्रतिभागी इससे रजामंद पाए गए. यहूदियों को खासतौर पर ताकतवर और प्रभावशाली समूह की तरह देखना, पारंपरिक यहूदी विरोध का एक लक्षण माना जाता है.
सर्वे के मुताबिक, यहूदी-विरोध की भावना मुसलमानों में खासतौर पर देखी गई. साथ ही, सर्वे में मुसलमानों के प्रति दुराव भी स्पष्ट देखा गया. धार्मिक समूहों में एक-दूसरे के लिए बैर और दुराव को देखते हुए यह अनुशंसा भी की गई है कि राजनीति और समाज, इन दोनों तरह की मानवता-विरोधी भावनाओं से निपटने पर ध्यान दें.
यहूदी विरोध की दो श्रेणियां
सर्वे में राजनीतिक दलों के समर्थकों को भी शामिल किया गया है. आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी की दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टी "ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी" (एएफडी) के समर्थकों में पारंपरिक और इस्राएल संबंधी यहूदी-विरोध काफी ज्यादा है. एएफडी समर्थकों में यह तादाद 40 और 49 फीसदी पाई गई. बाकी राजनीतिक दलों में भी इस्राएल संबंधी यहूदी-विरोध देखा गया. फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी) में यह 54 फीसदी और ग्रीन पार्टी के समर्थकों में सबसे कम 32 फीसदी पाया गया.
मुसलमान प्रतिभागियों में करीब 37 फीसदी के भीतर क्लासिक एंटी-सेमिटिज्म और 68 फीसदी में इस्राएल-संबंधी यहूदी विरोध दिखा. इससे पता चलता है कि जिन मुसलमानों के परिवार का संबंध तुर्की और मध्य-पूर्व के देशों से है, वे इस्राएल-फलीस्तीन मुद्दे पर अपने मूल देश में प्रचलित राय के साथ हैं. जो मुस्लिम काफी धार्मिक हैं, उनके बीच दोनों तरह का यहूदी-विरोध ज्यादा पाया गया.
वहीं काफी ज्यादा धार्मिक रुझान वाले ईसाईयों में ऐसी भावना कम पाई गई. स्टडी के मुताबिक, "इसकी वजह शायद यह है कि यहूदी नरसंहार के बाद से जर्मनी के चर्चों ने यहूदियों के खिलाफ द्वेष और उनके उत्पीड़न में निभाई गई अपनी भूमिका के सदियों पुराने इतिहास का आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण किया है."
समाज में बढ़ा है बंटवारा
7 अक्टूबर को इस्राएली नागरिकों पर हमास के हमले और इस्राएल की जवाबी सैन्य कार्रवाई के बाद तनाव और बंटवारा ज्यादा गहरा हुआ है. जर्मनी समेत दुनिया के कई हिस्सों में यहूदी-विरोधी भावनाएं मजबूत हुई हैं. जर्मनी में ऐसी सैकड़ों आपराधिक घटनाएं दर्ज हुई हैं, जिनका संबंध गजा में जारी युद्ध से है.
एंटी-सेमिटिज्म पर नजर रख रहे एक संगठन ने नवंबर में बताया कि 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद, जर्मनी में 994 यहूदी-विरोधी घटनाएं दर्ज की गई हैं. यह पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 320 फीसदी ज्यादा है.
यहां तक कि राजधानी बर्लिन में भी स्थितियां चिंताजनक हैं. अक्टूबर में यहां एक यहूदी प्रार्थना स्थल को निशाना बनाया गया था. बीते दिनों यहां एक घर के दरवाजे पर नाजी प्रतीक 'स्वास्तिका' बनाए जाने की घटना सामने आई. इस घर के बाहर इस्राएल का झंडा लगा था. बर्लिन पुलिस इस मामले की जांच कर रही है.
इस्राएल और फलीस्तीन, दोनों के समर्थन में कार्यक्रम
जर्मनी में इस्राएल समर्थक रैलियां भी हो रही हैं और फलीस्तीनियों के समर्थन में भी. देश में बढ़ रहे एंटी-सेमीटिज्म को देखते हुए इसके विरोध में एकजुटता दिखाने की भी कोशिशें हो रही हैं. इसी क्रम में 10 दिसंबर को बर्लिन में यहूदी-विरोध और नस्लवाद के खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन हुआ, जिसे बड़े स्तर पर समर्थन मिला. जर्मन संसद की स्पीकर बैरबेल बास और बर्लिन के मेयर काई वेगनर ने भी इसे समर्थन दिया.
प्रदर्शन में शामिल "सेंट्रल काउंसिल ऑफ ज्यूज इन जर्मनी" के अध्यक्ष योसेफ शूस्टर ने कहा कि यहूदी-विरोध समाज में आम हो गया है. जर्मनी की स्थितियों को रेखांकित करते हुए शूस्टर ने कहा, "कभी-कभी मैं इस देश को पहचान ही नहीं पाता."
नाडीन मेशुलम, इस्राएली हैं और बर्लिन में रहती हैं. वह भी इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने पहुंची थीं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "सड़क पर हिब्रू बोल रहे हों, तो मैं हमेशा घूमकर देखती हूं कि मेरे पीछे कौन है." इसी दिन बर्लिन में फलीस्तीनियों के समर्थन में भी रैली हुई. पुलिस के मुताबिक, इसमें करीब ढाई हजार लोगों ने हिस्सा लिया.
यहूदियों और इस्राएल के प्रति ऐतिहासिक जिम्मेदारी
जर्मनी का कहना है कि यहूदियों की सुरक्षा के प्रति उसकी एक खास ऐतिहासिक जिम्मेदारी है. इसका संबंध यहूदी नरसंहार से है. नाजी सरकार ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सुनियोजित तौर पर 60 लाख से ज्यादा यूरोपीय यहूदियों को कत्ल किया. इस्राएल की सुरक्षा को जर्मनी अपना "स्टाट्सरेजॉं" कहता है, यानी देश की चेतना.
इस ऐतिहासिकता के संदर्भ में जर्मनी अपने यहां बढ़ते यहूदी-विरोध को ज्यादा संवेदनशीलता से देखता है. चिंता जताई जा रही है कि बड़ी संख्या में आप्रवासियों के भीतर यहूदी-विरोधी रुझान से कैसे निपटा जाए.
इसी क्रम में बीते दिनों जर्मनी के पूर्वी राज्य सेक्सनी-अनहाल्ट ने कहा कि यहां जर्मन नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों को लिखित में देना होगा कि "वे इस्राएल के अस्तित्व के अधिकार को मान्यता देते हैं और बतौर देश, इस्राएल की मौजूदगी के विरुद्ध किसी भी प्रयास की निंदा करते हैं." राज्य की आंतरिक मामलों की मंत्री तमारा त्सीशांग ने जर्मनी के बाकी राज्यों से भी ऐसे ही नियम बनाने की अपील की.
एसएम/एके (केएनए, एएफपी)