असम-मेघालय सीमा विवाद के स्थायी समाधान की पहल
३० जून २०२१केंद्र सरकार के निर्देश पर अब पूर्वोत्तर राज्य असम और मेघालय के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद के स्थायी समाधान की दिशा में ठोस पहल हो रही है. मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा का कहना है कि यह इस विवाद के स्थायी समाधान का सही समय है. लेकिन यह मामला काफी जटिल है.
उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ उनकी अनौपचारिक बातचीत होती रही है. अमित शाह ने पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों को देश की स्वाधीनता की 75वीं सालगिरह यानी अगले साल 15 अगस्त तक आपसी सीमा विवाद सुलझाने को कहा है. दोनों राज्यों के बीच 12 इलाकों के मालिकाना हक को लेकर विवाद है.
इस जटिल मुद्दे के समाधान के लिए मुख्यमंत्री स्तर की बातचीत शुरू करने में मेघालय के बीजेपी विधायक और राज्य सरकार में मंत्री अलेक्जेंडर लालू हेक भी मध्यस्थ की भूमिका में हैं. उनको भरोसा है कि स्वाधीनता के 75वीं सालगिरह के मौके पर यह समस्या भी सुलझ जाएगी.
हेक ने शनिवार को गुवाहाटी में असम के मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और सीमा विवाद पर दोनों राज्यों के बीच बातचीत दोबारा शुरू करने के मुद्दे पर चर्चा की थी. हेक बताते हैं कि केंद्र सरकार भी इस विवाद के स्थायी समाधान के पक्ष में है. अगले महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मेघालय दौरे के दौरान भी इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया जाएगा.
मेघालय के मुख्यमंत्री को हिमंत से उम्मीद
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा कहते हैं, "असम में नए मुख्यमंत्री के शपथ लेने के बाद हमें इस विवाद के स्थायी समाधान की उम्मीद है. मुख्यमंत्री का रवैया सकारात्मक है और मेघालय के साथ उनके बेहतर संबंध हैं. संगमा का कहना था कि हम पुराने आरोपों या विवाद की वजहों को भुला कर नए सिरे से बातचीत शुरू करने के पक्ष में हैं. हमारा मकसद किसी की गलती तलाशना नहीं बल्कि समाधान तलाशना है."
वे मानते हैं कि यह मुद्दा बेहद जटिल है. इसका समाधान ऐसा होना चाहिए जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो. हम खुले मन से हर पहलू पर चर्चा के लिए तैयार हैं. संगमा कहते हैं कि तस्वीर के बड़े पहलू को ध्यान में रखना चाहिए, "हमारे फैसलों से ही तय होगा कि इतिहास हमें कैसे याद रखेगा. लेकिन समाधान ऐसा होना चाहिए कि मेघालय और उसके लोगों के हितों को कोई नुकसान नहीं हो."
सीमा विवाद सुलझाने के केंद्र के निर्देश पर मुख्यमंत्री का कहना था कि इस समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर है कि बातचीत किस तरह आगे बढ़ती है, "असम का विवाद सिर्फ मेघालय ही नहीं दूसरे राज्यों के साथ भी है. हम केंद्र की इच्छा के अनुरूप समय सीमा को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं."
संगमा पर इस मुद्दे पर उदासीनता बरतने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन वे इन आरोपों का खंडन करते हुए कहते हैं कि बीते सप्ताह असम के मुख्यमंत्री और उनके परिवार के साथ रात्रिभोज पर हुई बैठक के दौरान सीमा विवाद समेत आपसी हित से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर अनौपचारिक बातचीत हुई थी.
राज्य के तमाम विपक्षी दल मुख्यमंत्री पर सरकारी स्तर पर बातचीत शीघ्र शुरू करने का दबाव बना रहे हैं. दूसरी ओर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इस विवाद के स्थायी समाधान का भरोसा जताया है. उनका कहना है कि इसका समाधान जितनी जल्दी हो सके, दोनों राज्यों के हित में उतना ही अच्छा है.
अलग राज्य के साथ ही शुरू हुआ विवाद
असम के साथ मेघालय का सीमा विवाद वर्ष 1972 में इस राज्य के गठन जितना ही पुराना है. मेघालय कम से कम 12 इलाकों पर अपना दावा करता रहा है. वह इलाके फिलहाल असम के कब्जे में हैं. दोनों राज्यों ने एक नीति अपना रखी है, जिसके तहत कोई भी राज्य दूसरे राज्य को बताए बिना विवादित इलाकों में विकास योजनाएं शुरू नहीं कर सकता.
यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब मेघालय ने असम पुनर्गठन अधिनियम, 1971 को चुनौती दी. उक्त अधिनियम के तहत असम को जो इलाके दिए गए थे उसे मेघालय ने खासी और जयंतिया पहाड़ियों का हिस्सा होने का दावा किया था. सीमा पर दोनों पक्षों के बीच नियमित रूप से झड़पें होती रही हैं. इससे राज्यों में बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों के विस्थापन के साथ ही जान-माल का भी नुकसान हुआ है.
इस मुद्दे पर अब तक कई समितियों का गठन किया जा चुका है और दोनों राज्यों के बीच कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है. लेकिन अब तक नतीजा सिफर ही रहा है. सीमा विवाद की जांच और उसे सुलझाने के लिए वर्ष 1985 में वाईवी चंद्रचूड़ समिति का गठन किया गया था. लेकिन उसकी रिपोर्ट भी ठंडे बस्ते में है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि असम से काट कर अलग-अलग राज्यों के गठन के समय सीमा का ठीक से निर्धारण नहीं किया गया. वही विवाद की जड़ है. यही वजह है कि इलाके के ज्यादातर राज्य असम के साथ सीमा विवाद में उलझे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक होमेन बोरदोलोई कहते हैं, "अब शायद केंद्र इस विवाद पर गंभीर रवैया अपना रहा है. इससे अब पांच दशक पुरानी इस समस्या के समाधान की उम्मीद जगी है. लेकिन इसकी राह उतनी आसान नहीं होगी. दोनों राज्य कई इलाकों पर अपना दावा करते रहे हैं. इस मामले में केंद्र को हस्तक्षेप करना ही होगा."