पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और सरकार में टकराव चरम पर
३० जून २०२१इससे दो जुलाई को विधानसभा के वर्षाकालीन अधिवेशन के दौरान राज्यपाल के अभिभाषण पढ़ने पर भी संशय पैदा हो गया है. राज्यपाल ने अभिभाषण के मसौदे में से कुछ हिस्सों को बदलने की मांग की है. लेकिन सरकार ने इससे साफ इंकार कर दिया है.
ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने राज्यपाल पर जैन हवाला मामले में शामिल होने और हरियाणा में विवेकाधीन कोटे से जमीन का अवैध आवंटन कराने के मामले में शामिल होने का आरोप लगाया है. राज्यपाल ने जैन हवाला मामले में तो खुद को बेकसूर बताया है. लेकिन मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस के इस नए हमले से वह बचाव की मुद्रा में नजर आ रहे हैं.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में राज्यपाल पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए दावा किया कि उनका नाम जैन हवाला कांड के आरोपपत्र में था. लेकिन उसके फौरन बाद राजभवन में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में राज्यपाल ने ममता के इस आरोप को निराधार करार दिया.
राज्यपाल एक सप्ताह के उत्तर बंगाल दौरे से सोमवार दोपहर बाद कोलकाता लौटे थे. लौटते ही उन्होंने दार्जिलिंग के गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उसके खातों की जांच नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) से कराने की मांग की. उसके बाद ही ममता उन पर जमकर बरसीं.
ममता बनर्जी ने कहा, "राज्यपाल ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट हैं. तीन दशक पुराने जैन हवाला कांड के आरोपपत्र में भी उनका नाम शामिल था. लेकिन उन्होंने अदालत में जाकर अपना नाम हटवाया था. अब भी एक याचिका में उनका नाम है जो अदालत में लंबित है." मुख्यमंत्री का कहना था कि वे राज्यपाल को हटाने के लिए केंद्र को तीन-तीन पत्र भेज चुकी हैं.
राज्यपाल पर झूठ बोलने का आरोप
उधर, राज्यपाल ने राजभवन में पत्रकारों से कहा, "मुख्यमंत्री का आरोप गलत और निराधार है. मेरा नाम कभी जैन हवाला कांड के आरोपपत्र में नहीं था." उन्होंने कहा कि उत्तर बंगाल दौरे के दौरान उनको कई हैरान करने वाले तथ्यों का पता चला है. जीटीए के भ्रष्टाचार की जांच कराई जानी चाहिए और उसके खातों का ऑडिट होना चाहिए.
लेकिन ममता का कहना था, "राज्यपाल ने उत्तर बंगाल दौरे के दौरान तमाम ऐसे नेताओं से मुलाकात की है जो बंगाल के विभाजन की मांग उठा रहे हैं." यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि उत्तर बंगाल को अलग राज्य या केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा देने की मांग उठाने वाले अलीपुरदुआर के बीजेपी सांसद जॉन बारला ने भी दार्जिलिंग में राज्यपाल से मुलाकात की थी. ममता बनर्जी सरकार के कई मंत्रियों ने भी राज्यपाल पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए उनकी खिंचाई की है.
राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच अब अभिभाषण पर भी विवाद बढ़ गया है. दो जुलाई से राज्य विधानसभा का अधिवेशन शुरू होना है. सरकार ने सोमवार को अभिभाषण का मसौदा राजभवन भेजा था. लेकिन राज्यपाल ने यह कहते हुए इसमें बदलाव की मांग की कि इसमें लिखी बातों और जमीनी हकीकत में भारी अंतर है. लेकिन उसके बाद ममता बनर्जी ने फोन पर राज्यपाल को बताया कि अब इसमें बदलाव संभव नहीं है. राज्य मंत्रिमंडल ने इस अभिभाषण को अनुमोदित कर दिया है.
दूसरी ओर, अपने संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए राज्यपाल ने सरकार की ओर से तैयार अभिभाषण को जस का तस पढ़ने से इंकार कर दिया है. अभिभाषण में तृणमूल कांग्रेस के तीसरी बार सत्ता में आने की कहानी, राज्य सरकार की विकास योजनाओं और उपलब्धियों का विस्तृत ब्योरा दिया गया है.
इसके साथ ही राज्य में कानून व व्यवस्था की स्थिति को बेहतर बताया गया है. लेकिन राज्यपाल की दलील है कि राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है और चुनाव बाद की हिंसा अब भी जारी है. नियम के मुताबिक विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत ही राज्यपाल का अभिभाषण से होती है. इस अभिभाषण को राज्य सरकार तैयार करती है और इसे राज्यपाल को पढ़ने के लिए दिया जाता है.
चुनाव के बाद की हिंसा पर तकरार
राज्यपाल जगदीप धनखड़ पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद हुई हिंसा को लेकर ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर लगातार हमलावर मुद्रा में रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने मुकुल रॉय के बीजेपी छोड़कर टीएमसी में शामिल होने के बाद दल-बदल कानून को सख्ती से लागू करने की बात कही थी.
उधर, तरफ टीएमसी भी लगातार राज्यपाल पर हमलावर है. नेताओं का कहना है कि राज्यपाल सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं. साथ ही कुछ दिन पहले राजभवन में हुई कुछ नियुक्तियों को लेकर भी राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर आरोप लगाए गए थे.
विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के साथ वर्चुअल बैठक के दौरान राज्यपाल पर सदन के कामकाज में अनाधिकार हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए उनकी शिकायत की थी.
तृणमूल सांसद महुआ मित्र ने अपने एक ट्वीट में राज्यपाल धनखड़ पर हरियाणा में विवेकाधीन कोटे से जमीन के एक प्लाट के अवैध आवंटन का भी आरोप लगाया है. बाद में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इस आवंटन को रद्द कर दिया था. राज्यपाल ने इस आरोप पर कोई सफाई नहीं दी है.
राजनीतिक पर्यवेक्षक मईदुल इस्लाम कहते हैं, "राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तमाम मुद्दों पर लगातार बढ़ती कड़वाहट लोकतंत्र और राज्य के विकास के हित में नहीं है. अब राज्यपाल के अभिभाषण पढ़ने से इंकार करने की स्थिति में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है."
इस्लाम कहते हैं कि राज्यपाल सिर्फ प्रस्तावना पढ़ कर बाकी हिस्सों को बिना पढ़े छोड़ सकते हैं. वैसी स्थिति में सदन में अभिभाषण को पढ़ा हुआ मान लिया जाता है. लेकिन साथ ही यह भी माना जाता है कि इसमें लिखी बातों से वे सहमत हैं. अब तमाम निगाहें दो जुलाई पर टिकी हैं कि आखिर यह विवाद कौन-सा मोड़ लेता है?