राज्यपाल और तृणमूल कांग्रेस में टकराव में फिर आई तेजी
७ जून २०२१पश्चिम बंगाल में राज्यपाल जगदीप धनखड़ शपथ लेने के बाद पहले दिन से ही ममता बनर्जी सरकार के प्रति काफी आक्रामक मुद्रा में रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के तीसरी बार सत्ता में आने के बाद राज्यपाल के तेवर नरम पड़ने की बजाय और उग्र ही हुए हैं. राज्यपाल और टीएमसी सरकार के बीच कई मुद्दों पर टकराव होता रहा है. लेकिन धनखड़ अब पहली बार बचाव की मुद्रा में नजर आ रहे हैं. टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने उन पर भाई-भतीजावाद का गंभीर आरोप लगाया है. राज्यपाल ने हालांकि अपनी सफाई में इस आरोप को तथ्यात्मक रूप से गलत बताया है. लेकिन इस मुद्दे पर वाकयुद्ध लगातार तेज हो रहा है.
ताजा मामला
राज्यपाल चुनाव के बाद होने वाली हिंसा के मुद्दे पर बीते एक महीने से राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं. इसी कड़ी में रविवार को भी उन्होंने अपने ट्वीट में राज्य की कानून व व्यवस्था की स्थिति पर चिंता जताते हुए सरकार को घेरा था. उन्होंने मुख्य सचिव हरेकृष्ण द्विवेदी को इस मुद्दे पर राजभवन बुलाया था. राज्यपाल ने आरोप लगाया है कि बंगाल में लाखों लोग विस्थापित किए जा रहे हैं और करोड़ों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. सुरक्षा के माहौल के साथ गंभीर समझौता किया जा रहा है. उनका आरोप है कि जिन लोगों ने टीएमसी के खिलाफ वोट दिया था उनको निशाना बनाया जा रहा है. बड़े पैमाने पर आगजनी, लूट और संपत्तियों को नुकसान हुआ है. राज्यपाल ने कहा, अराजक तत्वों के हाथों बलात्कार और हत्या की भी कई घटनाएं हुईं और ऐसे मामलों में पुलिस भी टीएमसी का ही समर्थन कर रही है.
उसके बाद टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने राज्यपाल पर अपने करीबियों और रिश्तेदारों को राजभवन में नियुक्ति देने का आरोप लगाया था. अपने आरोप के समर्थन में उन्होंने राजभवन में नियुक्त किए गए छह अधिकारियों की सूची भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी. मोइत्रा की सूची में राज्यपाल के ओएसडी अभ्युदय शेखावत, ओएसडी-समन्वय अखिल चौधरी, ओएसडी-प्रशासन रुचि दुबे, ओएसडी-प्रोटोकॉल प्रशांत दीक्षित, ओएसडी-आईटी कौस्तव एस वलिकर और नवनियुक्त ओएसडी किशन धनखड़ के नाम हैं.
टीएमसी सांसद ने दावा किया कि शेखावत धनखड़ के बहनोई के बेटे, रुचि दुबे उनके पूर्व एडीसी मेजर गोरांग दीक्षित की पत्नी तथा प्रशांत दीक्षित भाई हैं. इसके अलावा वलिकर, धनखड़ के मौजूदा एडीसी जनार्दन राव के बहनोई हैं जबकि किशन धनखड़ राज्यपाल के एक और करीबी रिश्तेदार हैं. इसके बाद मोइत्रा के आरोप पर पलटवार करते हुए धनखड़ ने सोमवार को ट्वीट किया कि महुआ मोइत्रा की ओर से मीडिया और उनके ट्वीट में छह निजी पदों पर रिश्तेदारों की नियुक्ति की बात तथ्यात्मक रूप से गलत है. वे ओएसडी तीन अलग-अलग राज्यों और चार अलग जातियों से हैं.
राज्यपाल का कहना था कि उनमें से किसी का भी मेरे परिवार से कोई संबंध नहीं है. उनमें चार लोग मेरी जाति या राज्य के नहीं है. राज्यपाल ने दावा किया कि यह आरोप राज्य की कानून-व्यवस्था से ध्यान भटकाने के लिए अपनाई गई रणनीति के तहत लगाया गया है. लेकिन टीएमसी सांसद ने उसके फौरन बाद अपने एक अन्य ट्वीट में राज्यपाल से ओएसडी पद पर नियुक्त लोगों का विस्तृत परिचय बताने और नियुक्ति की प्रक्रिया का खुलासा करने को कहा.
टकराव का लंबा इतिहास
वैसे, पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव का इतिहास काफी पुराना है. पहले भी यहां टकराव होते रहे हैं. अंतर यही है कि अबकी यह टकराव लगातार लंबा खिंच रहा है और इसके निकट भविष्य में थमने के कोई आसान नहीं नजर आ रहे हैं. लेकिन ताजा विवादों ने पहले के तमाम मामलों को पीछे छोड़ दिया है. अबकी यह टकराव चरम पर पहुंचता नजर आ रहा है.
राज्य के तत्कालीन राज्यपाल धर्मवीर ने 21 नवंबर, 1969 को अजय मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बर्खास्त कर दिया था. वर्ष 1969 में मोर्चा की सरकार फिर सत्ता में लौटी. मंत्रिमंडल के गठन के बाद राज्यपाल के लिए जो अभिभाषण तैयार किया गया था उसके एक पैराग्राफ में धर्मवीर की आलोचना की गई थी. धर्मवीर ने अभिभाषण का वह हिस्सा पढ़ने से इंकार कर दिया था.
वर्ष 1977 में भारी बहुमत के साथ वाममोर्चा सरकार के सत्ता में आने के बाद भी राजभवन और सरकार के बीच टकराव के हालात बने रहे. तत्कालीन राज्यपाल बीडी पांडे के साथ वाममोर्चा के संबंध ठीक नहीं थे. केंद्र के साथ टकराव होने पर उसने पांडे को निशाना बनाया था. वर्ष 1984 में राज्यपाल बनने वाले अनंत प्रसाद शर्मा के साथ भी वाममोर्चा के रिश्ते ठीक नहीं रहे. कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर के पद पर नियुक्ति के मुद्दे पर दोनों के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो गई थी. शर्मा ने ऐसे उम्मीदवार संतोष भट्टाचार्य के नाम पर मुहर लगाई थी जिनका नाम सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे नीचे था.
राज्यपाल का बढ़ता हस्तक्षेप
वर्ष 2007 में नंदीग्राम में हुई फायरिंग और हत्याओं की कड़े शब्दों में आलोचना करने की वजह से तत्कालीन राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी को भी वाममोर्चा नेताओं की भारी नाराजगी का शिकार होना पड़ा था. गांधी के बाद राजभवन पहुंचने वाले पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के रिश्ते भी वाममोर्चा या तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ मधुर नहीं रहे. वर्ष 2011 में तृणमूल कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद राजभवन और राज्य सचिवालय में टकराव की यह परंपरा जस की तस रही.
उत्तर 24 परगना जिले में दो गुटों के बीच सांप्रदायिक हिंसा के बाद तत्कालीन राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना करते हुए कानून व व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे. उसके बाद से सरकार और राजभवन के रिश्ते लगातार बिगड़े रहे. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तब त्रिपाठी पर अपना अपमान करने का भी आरोप लगाया था. आखिर में हालत यहां तक पहुंच गई कि ममता ने त्रिपाठी के विदाई समारोह में भी हिस्सा नहीं लिया. त्रिपाठी ने इस पर दुख भी जताया था.
ताजा चुनावों के बाद जारी हिंसा
पश्चिम बंगाल में बीते महीने विधानसभा चुनाव के नतीजों के एलान के बाद से ही राज्य के विभिन्न इलाकों से छिटपुट हिंसा के मामले सामने आते रहे हैं. इस मुद्दे पर राज्यपाल लगातार सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं. बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह 2019 के चुनाव से ठीक पहले तृणमूल छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे और उसके बाद से ही बैरकपुर इलाके में लगातार राजनीतिक हिंसा होती रही है. रविवार को भी बम विस्फोट में बीजेपी के एक कार्यकर्ता की हत्या हो गई. पार्टी ने इसके लिए टीएमसी को जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि टीएमसी ने इसे बीजेपी की अंदरुनी गुटबाजी का नतीजा बताते हुए कहा है कि इस मामले से उसका कोई लेना-देना नहीं है.
रविवार को प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से अब तक बीजेपी के 32 कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है. उन्होंने कहा कि अब तक बीजेपी के डेढ़ दर्जन उम्मीदवारों और चार नवनिर्वाचित विधायकों पर भी हमले हुए हैं और यह सिलसिला जारी है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता बनर्जी की तमाम कोशिशों के बावजूद खासकर ग्रामीण इलाकों से हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं.
बीते सप्ताह मेदिनीपुर जिले में बीजेपी के नेताओं के सामाजिक बायकाट की खबरें भी सामने आई थीं. राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "दो सौ पार के नारे के बावजूद सत्ता से बहुत दूर रही बीजेपी में भी अंतरकलह बढ़ रही है. दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में बीजेपी का समर्थन करने वालों को टीएमसी की ओर से कथित रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है. लेकिन टीएमसी, राज्य सरकार और राज्यपाल आपस में मिल कर इस पर अंकुश लगाने की पहल करने की बजाय एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में जुटे गए हैं. इससे राज्य के हितों को नुकसान ही होगा."