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जर्मनी: जोलिंगन हमले के बाद तेज हुई इमिग्रेशन विरोधी बहस

२६ अगस्त २०२४

पिछले हफ्ते जोलिंगन शहर में चाकू से हुए एक हमले के बाद जर्मनी में इमिग्रेशन पर बहस तेज हो गई है. गठबंधन सरकार पर सख्त रुख अपनाने का दबाव बढ़ रहा है. तीन राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के नतीजे दबाव और बढ़ा सकते हैं.

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23 अगस्त को जोलिंगन में हुए हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स. तस्वीर में उनके साथ जोलिंगन के मेयर टिम कुर्जबाख भी हैं.
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने चाकू से जुड़े कानून सख्त करने की बात कही है. उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों के शरण देने से जुड़े आवेदन नामंजूर होते हैं, उनके डिपोर्टेशन की कार्रवाई तेज की जाएगी. शॉल्त्स ने जोलिंगन में मृतकों को श्रद्धांजलि देने के बाद कहा कि वह इस हमले के कारण गुस्से में हैं. तस्वीर: Ina Fassbender/AFP/Getty Images

जर्मनी के जोलिंगन शहर में 23 अगस्त को एक उत्सव के दौरान चाकू से हुए हमले में तीन लोगों की मौत हो गई और आठ लोग घायल हो गए. 'फेस्टिवल ऑफ डायवर्सिटी' नाम का यह उत्सव जोलिंगन की 650वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में मनाया जा रहा था.

संदिग्ध हमलावर खुद ही पुलिस के पास पहुंचा और हमले की जिम्मेदारी कबूल की. जर्मन पत्रिका श्पीगल के मुताबिक, संदिग्ध 26 साल का सीरियाई युवक है. वह 2022 में जर्मनी आया और असाइलम के लिए आवेदन दिया.

आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने भी इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए दावा किया कि यह "फलस्तीन और अन्य जगहों के मुसलमानों के लिए बदला है." आईएस की अमाक न्यूज एजेंसी ने टेलिग्राम मेसेजिंग ऐप पर जारी अपने बयान में दावा किया कि जोलिंगन में हुई घटना में शामिल हमलावर "इस्लामिक स्टेट का एक सैनिक था."

23 अगस्त को जोलिंगन में चाकू से हुए हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स.
खबरों के मुताबिक, जोलिंगन हमले को अंजाम देने वाले 26 साल का संदिग्ध हमलावर बुल्गारिया से होते हुए यूरोपीय संघ में दाखिल हुआ और जर्मनी पहुंचा. यहां उसका असाइलम आवेदन स्वीकार नहीं हुआ. इसके बाद उसे पिछले साल ही डिपोर्ट कर बुल्गारिया भेजा जाना था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि वह गायब हो गया था. यह घटनाक्रम भी माइग्रेशन नीति को लेकर सरकार की आलोचना का कारण बन रहा है.तस्वीर: Thomas Banneyer/dpa/picture alliance

सीरिया और अफगानी शरणार्थियों पर सख्ती की मांग

इस घटना ने जर्मनी में इमिग्रेशन पर चली आ रही बहस को और तेज कर दिया है. विपक्षी दल क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) ने सीरिया और अफगानिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को प्रवेश देने पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है.

सीडीयू के नेता फ्रीडरिष मेर्त्स ने चांसलर शॉल्त्स से अपील की कि वह जर्मनी में आतंकी हमलों को रोकने के लिए तेजी से और ठोस कदम उठाएं. अपने न्यूजलेटर में मेर्त्स ने लिखा, "समस्या चाकू नहीं, बल्कि वे लोग हैं जो उन्हें लेकर चल रहे हैं. ऐसे ज्यादातर मामलों में ये लोग रिफ्यूजी हैं. ज्यादातर अपराधों के पीछे इस्लामिक मकसद हैं."

जोलिंगन में हुए हमले के बाद एएफडी ने भी पिछली सरकारों पर आरोप लगाया कि उन्होंने बहुत सारे प्रवासियों को आने दिया और अराजकता की स्थिति पैदा की.

23 अगस्त को जर्मनी के जोलिंगन शहर में एक स्ट्रीट फेस्टिवल के दौरान हुए हमले में मारे गए लोगों की याद में मोमबत्ती जलाता एक शख्स.
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा कि इस तरह की घटनाएं देश में फिर ना होने पाएं, इसके लिए जो भी जरूरी हो, करना होगा. उन्होंने कहा, "हमें सबकुछ करना होगा, ताकि वे लोग जिन्हें जर्मनी में रहने की इजाजत नहीं है उन्हें वापस भेजा जा सके और डिपोर्ट किया जा सके." चांसलर ने कहा कि हालिया समय में ऐसे डिपोर्टेशन करने की संभावनाएं काफी बढ़ा दी गई हैं. तस्वीर: Thomas Banneyer/dpa/picture alliance

बढ़ते अपराध के बीच उठते सवाल

पिछले साल एआरडी के एक सर्वेक्षण में 64 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें माइग्रेशन, समाज के लिए अपेक्षाकृत नुकसानदेह लगता है. बीते दिनों कई हिंसक हमले हुए, जिनसे जर्मनी में प्रवासियों और कट्टर इस्लाम को लेकर बहस ने जोर पकड़ा. हालिया समय में जर्मनी में चाकू से होने वाले हमलों में भी तेजी आई है. इसके मद्देनजर हथियारों से जुड़े कड़े कानून लाने और माइग्रेशन पॉलिसी सख्त करने की मांग जोर पकड़ रही है.

नेताओं पर हमले से तिलमिलाया जर्मनी

यूरोपीय संसद के चुनाव से पहले मई में जर्मनी के मानहाइम शहर में एक रैली के दौरान चाकू से हुए हमले में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई. हमलावर 25 साल का एक अफगान युवक था. इसके बाद सत्तारूढ़ एसपीडी के सदस्यों ने भी डिपोर्टेशन नियमों को सख्त बनाने की मांग की.

ऐसी घटनाओं ने भी जर्मनी में माग्रेशन को लेकर विरोध बढ़ाया है. इसे देखते हुए जून में सरकार ने बताया कि ऐसे अफगान और सीरियाई प्रवासियों को डिपोर्ट करने पर विचार किया जा रहा है, जो सुरक्षा के लिए खतरा हैं.

जोलिंगन हमले में मारे गए लोगों के लिए आयोजित एक प्रार्थना कार्यक्रम के दौरान एक महिला के हाथ में पोस्टर है, जिसपर लिखा है: कुछ तो जरूर होना चाहिए.
जर्मनी, सीरिया और अफगानिस्तान में डिपोर्टेशन नहीं करता है. इसकी वजह यह है कि तालिबान के सत्ता में वापस आने के बाद से जर्मनी का अफगानिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं है. वहीं, सीरिया में सुरक्षा से जुड़ी स्थितियां बेहद नाजुक हैं.तस्वीर: Henning Kaiser/dpa/picture alliance

घटती जा रही है गठबंधन सरकार की लोकप्रियता

जानकारों के मुताबिक, माइग्रेशन पर नीतियों में बदलाव की मांग का एक कारण राजनीति से जुड़े समीकरण भी हैं. जर्मनी की मौजूदा गठबंधन सरकार के घटक दलों एसपीडी, ग्रीन्स और एफपीडी की लोकप्रियता कम हुई है.

वहीं, माइग्रेशन नीति पर बेहद सख्त रवैया अपनाने की समर्थक और धुर-दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़ी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) ने यूरोपीय संघ (ईयू) के संसदीय चुनाव में काफी अच्छा प्रदर्शन किया. वोटों के मामले में एएफडी 16 फीसदी मत पाकर जर्मनी में दूसरे नंबर पर रही.

एक ओर जहां एएफडी के जनाधार में बढोतरी हुई, वहीं गठबंधन सरकार की तीनों पार्टियों को बड़ा झटका लगा. चांसलर शॉल्त्स की एसपीडी को 14 प्रतिशत से भी कम वोट मिले. घटती लोकप्रियता और दक्षिणपंथ के बढ़ते जनाधार के मद्देनजर भी जर्मन सरकार पर माइग्रेशन को लेकर सख्त रवैया बरतने का दवाब बढ़ा है. 

23 अगस्त को चाकू से किए गए हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए जोलिंगन पहुंचे जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स.
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने बताया है कि इसी साल डिपोर्टेशन में 30 फीसदी वृद्धि आई है. उन्होंने भविष्य में इसे और सख्त किए जाने पर कहा, "हम बहुत बारीकी से देखेंगे कि हम कैसे इस आंकड़े को और बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं." तस्वीर: Henning Kaiser/REUTERS

तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव की तस्वीर

जर्मनी के तीन राज्यों सैक्सनी, थुरिंजिया और ब्रांडनबुर्ग में हो रहे आगामी विधानसभा चुनाव का भी राष्ट्रीय राजनीति पर खासा असर पड़ने की संभावना है. सेक्सनी और थुरिंजिया में 1 सितंबर को विधानसभा चुनाव होना है. ब्रांडनबुर्ग में 22 सितंबर को मतदान है.

एएफडी: धुर दक्षिणपंथियों ने कैसे रिझाया युवा वोटरों को

सर्वेक्षणों में धुर-दक्षिणपंथी एएफडी थुरिंजिया में लगातार बढ़त बनाए हुए है. सेक्सनी और थुरिंजिया से जुड़े जेडडीएफ के हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक, सेक्सनी में 30 प्रतिशत वोटों के साथ एएफडी दूसरे स्थान पर रह सकती है. यहां 33 प्रतिशत वोटों के साथ सत्तारूढ़ सीडीयू पहले स्थान पर बनी हुई है. पॉप्युलिस्ट पार्टी बीएसडब्ल्यू (सारा वागनक्नेष्ट अलायंस) वोटों के मामले में तीसरे स्थान पर रह सकती है.

जर्मनी की मौजूदा गठबंधन सरकार के तीनों दल सेक्सनी और थुरिंजिया में संघर्ष करते दिख रहे हैं. शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी को सेक्सनी में 7 फीसदी और थुरिंजिया में 6 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है.

क्या जल्द ही जर्मनी के एक राज्य में बन सकती है "फासिस्ट" सरकार

गठबंधन के दूसरे दल, अनालेना बेयरबॉक की ग्रीन्स को सेक्सनी में 6 प्रतिशत और थुरिंजिया में केवल चार प्रतिशत मत मिलने का अनुमान है. क्रिस्टियान लिंडनर की एफडीपी को दोनों राज्यों में इतने कम वोट मिल रहे हैं कि सर्वेक्षण कराने वालों ने उसे 'अन्य' की श्रेणी में डाल दिया है.

पूर्वी जर्मनी में एएफडी को इतनी सफलता क्यों मिल रही है

एसएम/सीके (डीपीए, एएफपी)