रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का फ्रांस में क्यों हो रहा विरोध
१७ जनवरी २०२३फ्रांस में प्रस्तावित पेंशन सुधारों का विरोध हो रहा है. नई योजना के तहत सरकार का इरादा है कि साल 2030 से, रिटायरमेंट की आयुसीमा 62 से बढ़ाकर 64 कर दी जाए. इसके अलावा पूरी पेंशन लेने के लिए नौकरी की न्यूनतम अवधि को भी बढ़ाने का प्रस्ताव है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों भले ही इससे अपना बजट घाटा कम करने में कुछ कामयाब हो जाएं, लेकिन जमीन पर बढ़ते असंतोष पर काबू पाना भी उनके लिए बड़ी चुनौती होगी. 2022 में दोबारा राष्ट्रपति बने माक्रों ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 65 साल करने की बात कही थी. बीते हफ्ते फ्रांस की प्रधानमंत्री एलिजाबेथ बोर्ने ने पेंशन सुधारों के बारे में कहा कि यह कोई राजनीतिक कवायद नहीं है, बल्कि पेंशन सिस्टम को चलाए रखने के लिए जरूरी कदम है.
कर्मचारी संगठन विरोध में
कोविड और फिर बढ़ती महंगाई से जूझ रहे फ्रांस के बड़े तबके ने सरकार के फैसले का विरोध किया है. यह एक दुर्लभ मौका है कि फ्रांस के लगभग सभी प्रमुख कर्मचारी संगठन 19 जनवरी को विरोध-प्रदर्शन करने के लिए सहमत हुए हैं. सबसे बड़ी यूनियन सीएफडीटी के नेता लॉरां बेर्जे ने इसे बीते 30 सालों का सबसे खराब रिफॉर्म पैकेज बताया है. कर्मचारी संगठनों का मानना है कि सरकार के इस कदम से मध्यम वर्ग पर बोझ बढ़ेगा. उन्हें पूरी पेंशन पाने के लिए ज्यादा साल काम करना होगा और इस दौरान वह अपनी तनख्वाह से भारी टैक्स भी भरते रहेंगे.
जानकारों की राय भी ऐसी ही है. ओएफसीई रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े अर्थशास्त्री मैथ्यू प्लां के अनुसार, जिन लोगों के कम उम्र में काम करना शुरू कर दिया था, उन पर सबसे ज्यादा असर होगा. इससे महंगाई और रोजमर्रा के खर्च से जूझ रहे मध्यम वर्ग पर बोझ बढ़ेगा. प्लेन कहते हैं, "मध्यम वर्ग को ऐसा लगता है कि हर बार ऐसे सुधारों में उनकी जेब से ही पैसा जाता है."
फ्रांस की सरकार का पक्ष
फ्रांस की सरकार इसे वक्त की जरूरत बता रही है. नई योजना के तहत पूरी पेंशन पाने के लिए लोगों को कम से कम 43 साल नौकरी करनी होगी. यह नियम 2027 से लागू करने की योजना है. सरकार ने पुलिस और दमकल कर्मियों जैसे कुछ खास पेशों को इन नियमों से छूट दी है. सरकार का तर्क है कि फ्रांस के लोग अब पहले के मुकाबले लंबा जीते हैं. इसलिए उन्हें काम भी ज्यादा समय के लिए करना चाहिए. नई योजना लागू होने से फ्रांस के हर कामगार को न्यूनतम तनख्वाह का 85% यानी करीब 1200 यूरो हर महीने मिला करेंगे.
प्रधानमंत्री बोर्ने ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा, "ज्यादा काम करने से भविष्य में रिटायर होने वाले लोगों को ज्यादा पेंशन मिलेगी. मैं जानती हूं कि हमारे पेंशन सिस्टम में बदलाव करने से सवाल पैदा होंगे और फ्रांस के लोगों के बीच डर है. लेकिन इससे 2030 तक हमरा (पेंशन) सिस्टम संतुलित हो जाएगा. हम अपने पेंशन सिस्टम को संतुलित करने के लिए नई योजना लाना चाहते हैं. अगर ज्यादा वरिष्ठ लोग काम करेंगे, तो हम सब की साझा संपत्ति बढ़ेगी. ज्यादा टैक्स जमा होगा. उस पैसे का इस्तेमाल हम बजट घाटे को पूरा करने और शिक्षा, स्वास्थ्य व पर्यावरण जैसी नीतिगत प्राथमिकताओं के लिए कर सकते हैं."
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माक्रों की मजबूरियां
राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने 2022 में वादा किया था कि 2027 में बतौर राष्ट्रपति अपना कार्यकाल खत्म करने से पहले वह बजट के घाटे को यूरोपीय संघ की तय सीमाओं से कम कर देंगे. श्रम मंत्रालय के अनुसार, रिटायरमेंट की उम्र सीमा दो साल बढ़ाने से पेंशन सिस्टम में श्रमिक योगदान 17.7 अरब यूरो बढ़ जाएगा. इससे 2027 तक पेंशन सिस्टम संतुलित होने लगेगा. सरकार का अनुमान है इस कदम से 3 लाख लोग काम के लिए उपलब्ध होंगे, जो जीडीपी के लिए अच्छा संकेत है. इस वक्त फ्रांस की सरकार का अनुमानित कर्ज जीडीपी के मुकाबले 113% है.
ज्यादा लोग सक्रिय रूप से काम करेंगे तो कर्ज चुकाने के लिए पैसा जुटाने में आसानी होगी. माक्रों सरकार ने यूरोपीय संघ के सहयोगियों और निवेशकों से वादा किया है कि वह 2027 तक बजट घाटे को 5% से घटाकर 3% तक ले आएंगे. हाल के महीनों में बढ़ी महंगाई और महंगी ब्याज दर भी माक्रों सरकार को परेशान कर रही है. एक अनुमान के मुताबिक, 3000 अरब यूरो के कर्ज पर लग रहा ब्याज लगातार बढ़ता जा रहा है. कर्ज का ब्याज इस साल के बजट में शिक्षा के बाद दूसरा सबसे बड़ा खर्च है.
अर्थशास्त्री मैथ्यू प्लां कहते हैं कि यह पूरी कवायद तभी काम कर पाएगी, जब काम खोज रहे लोगों को भी रोजगार मिले. इस वक्त देश में बेरोजगारी दर 7% है. अगर उन्हें रोजगार नहीं मिला तो सरकार कोई खास पैसा नहीं बचा पाएगी. बहरहाल, इन सुधारों को पास करवाने के लिए माक्रों को संसद में प्रस्ताव पास करवाना होगा, जहां उनकी पार्टी के पास बहुमत नहीं है. संसद और सड़क पर विरोध झेल रही माक्रों सरकार ने ना झुकने की बात कही है. 2017 में जब माक्रों राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने देश के राजनीतिक सिस्टम को बदलने की बात कही थी. अबकी बार यह चुनौती सिर्फ आर्थिक फायदे के लिए नहीं, बल्कि सुधारवादी छवि बचाए रखने की भी है.
(रॉयटर्स)