फ्रांसीसी राजदूत को 48 घंटे में नाइजर छोड़ने का अल्टीमेटम
२६ अगस्त २०२३26 जुलाई 2023 की सुबह दुनिया को पता चला कि नाइजर के राष्ट्रपति मोहम्मद बाजौम को उन्हीं के सुरक्षा गार्डों ने बंधक बना लिया है. कुछ घंटों बाद कर्नल मेजर टीवी पर आए और उन्होंने राष्ट्रपति बाजौम की सत्ता का अंत करने की घोषणा की. इसके बाद से नाइजर के तख्तापलट की ज्यादातर देश आलोचना कर रहे हैं. 1960 से पहले नाइजर पर शासन कर चुका फ्रांस इनमें सबसे आगे है.
सैन्य बगावतों से क्यों घिरे हैं अफ्रीका के पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेश
तख्तापलट के एक महीने बाद नाइजर के सैन्य शासकों ने शुक्रवार को फ्रांसीसी राजदूत को अल्टीमेटम दिया. इसके तहत नाइजर की राजधानी नियामे में तैनात फ्रांसीसी राजदूत को दो दिन के भीतर देश छोड़ने को आदेश दिया गया है.
सैन्य शासक (जुंटा) ने कहा कि फ्रांसीसी राजदूत ने नाइजर के नवनियुक्त विदेश मंत्री से मुलाकात का न्योता ठुकराया है. नए विदेश मंत्री की नियुक्ति जुंटा ने ही की है. नाइजर के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, फ्रांस सरकार के कदम "नाइजर के हितों के विरुद्ध" हैं.
फ्रांस ने जुंटा के फैसले को खारिज किया है. फ्रांस ने अपने बयान में कहा है, "ताकत का इस्तेमाल कर तख्तापलट करने वालों के पास ऐसी दरख्वास्त करने का कोई अधिकार नहीं है, राजदूत से जुड़ी सहमति का अधिकार सिर्फ कानूनी तरीके से चुनी गई नाइजर सरकार के पास है."
फ्रांस के बयान में टकराव की आहट भी है. फ्रांस ने कहा, "हम लगातार अपने दूतावास की सुरक्षा और काम करने की परिस्थितियों का मूल्यांकन कर रहे हैं."
अमेरिका और जर्मनी पर अलग रुख
इससे पहले ऐसी खबरें आईं कि नाइजर के जुंटा ने अमेरिकी राजदूत के लिए भी ऐसा ही फरमान जारी किया है. हालांकि बाद में इसे फेक न्यूज बताया गया. इसकी पुष्टि खुद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने की. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "अमेरिकी सरकार से ऐसा कोई आग्रह नहीं किया गया है."
अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक नाइजर के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अमेरिकी राजदूत से जुड़ी वायरल चिट्ठी, उसने रिलीज नहीं की है.
ऐसी ही खबरें जर्मनी और नाइजीरिया के राजदूतों को लेकर भी आईं. समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, नाइजर प्रशासन ने इन्हें फर्जी करार दिया है.
नाइजर और फ्रांस का नाता
अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में स्थित नाइजर, फ्रांस का उपनिवेश रह चुका है. 1960 में फ्रांस से आजाद होने के बाद नाइजर पश्चिमी देशों का अहम साझेदार बना रहा. साहेल में अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों के विरुद्ध लड़ाई में वह पश्चिमी देशों का साथ देता आया है.
नाइजर में अब भी फ्रांस और अमेरिका के करीब 2,500 सैनिक तैनात हैं. दोनों देश नाइजर की सेना को ट्रेनिंग दे चुके हैं और मिलकर आतंकियों के खिलाफ साझा अभियानों में भी हिस्सा ले चुके हैं. तख्तालट के बाद ऐसे सिक्योरिटी ऑपरेशंस निलंबित कर दिए गए हैं. नाइजर को दी जा रही वित्तीय सहायता भी रोक दी गई है.
पश्चिमी देशों को चिंता है कि नाइजर का तख्तापलट इलाके में रूस को बड़े स्तर पर हस्तक्षेप का मौका दे सकता है. नाइजर के पड़ोसी माली में रूस के वागनर लड़ाके सक्रिय हैं.
अफ्रीकी देशों का समूह अफ्रीकन यूनियन भी नाइजर के तख्तापलट की कड़ी आलोचना कर चुका है. पश्चिमी अफ्रीकी देशों के आर्थिक संगठन, इकोवास ने तख्तापलट के कुछ दिनों बाद एक बयान जारी कर कहा कि सैन्य शासक, सात दिन के भीतर लोकतांत्रिक सरकार की बहाली करें, वरना नाइजर के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की जाएगी. वहीं बुरकिना फासो और माली जैसे देश, नाइजर के जुंटा का समर्थन कर रहे हैं. माली तो यह तक कह चुका है कि नाइजर पर हमले को वह खुद के खिलाफ युद्ध के एलान की तरह देखेगा.
ओएसजे/आरएस (एएफपी, रॉयटर्स, एपी)