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10 हजार नेपाली नर्सों के ब्रिटेन जाने से नेपाल क्यों परेशान

१ मार्च २०२४

नेपाल से बड़ी संख्या में नर्सें बेहतर मौकों की तलाश में विदेश जा रही हैं. नेपाल में पहले से ही स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है. ऐसे में प्रशिक्षित कामगारों का पलायन इस संकट को और बढ़ाएगा.

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स्वास्थ्य केंद्र में एक बच्चे को मलेरिया का टीका लगाने की तैयारी करती एक नर्स. सांकेतिक तस्वीर.
नेपाल को करीब 45,000 नर्सों की जरूरत है. जबकि अभी यहां इसकी आधी संख्या में भी नर्सें नहीं हैं. तस्वीर: Desire Danga Essigue/REUTERS

नेपाल की रहने वाली 28 साल की अंशु नर्स हैं. वह काफी समय से विदेश में नौकरी करना चाहती थीं. अब उनका यह सपना सच हो रहा है. उन्हें ब्रिटेन के एक रोजगार कार्यक्रम के तहत नौकरी मिली है. अंशु को उम्मीद है कि अब उनकी अच्छी आमदनी होगी और जीवनस्तर बेहतर होगा. वह कहती हैं, "मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि अब मेरे काम को कद्र मिली है."

अंशु फिलहाल नेपाल के एक निजी अस्पताल में काम करती हैं. उनका मासिक वेतन करीब 26 हजार रुपया है. उन्हें उम्मीद है कि ब्रिटेन में इससे कम-से-कम 10 गुना ज्यादा कमाई होगी.

पुर्तगाल के एक नेपाली रेस्तरां में काम करता एक कर्मचारी.
बीते कुछ सालों में बड़ी संंख्या में नेपाली युवा नौकरी के लिए विदेश जा रहे हैं. यह तस्वीर पुर्तगाल की है, जहां रेस्तरां और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नेपाल के युवा कामगार काम करते हैं. तस्वीर: Patricia de Melo Moreira/AFP

10 हजार नेपाली नर्सों को मिलेगी नौकरी

ब्रिटेन में नौकरी पाने वाली अंशु अकेली नर्स नहीं हैं. एक द्विपक्षीय सरकारी कार्यक्रम के तहत नेपाल की कई नर्सों को ब्रिटेन में नौकरी मिली है. हालांकि, प्रशिक्षित नर्सों के नौकरी के लिए विदेश जाने से नेपाल में नर्सों और अन्य चिकित्साकर्मियों की कमी को लेकर भी चिंताएं बढ़ रही हैं.

यह सरकारी योजना अभी अपने प्रायोगिक चरण में है. पायलट फेज में अभी केवल 43 नर्सों को नौकरी दी गई है. डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेन एम्प्लॉयमैंट (डीओएफई) ने बताया है कि इस योजना का दूसरा चरण भी प्रस्तावित है और ब्रिटेन 10,000 नेपाली नर्सों को भर्ती करना चाहता है.

इससे ब्रिटेन को अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) में मौजूद प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी दूर करने में मदद मिलेगी. वहीं, नेपाल के नर्सिंग अधिकारी अंदेशा जताते हैं कि इस कारण नेपाल में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी और गहरा सकती है.

नेपाल में भी नर्सों की कमी

नर्सिंग एवं सामाजिक सुरक्षा प्रभाग (एनएसएसडी), नेपाल में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की देखरेख से जुड़ा एक सरकारी विभाग है. इसकी निदेशक हीरा कुमारी निरौला ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "स्थितियां पहले से ही चिंताजनक हैं."

निरौला आगे कहती हैं, "जरूरतमंद समुदायों में नर्सिंग सेवा उपलब्ध कराने के लिए हाल ही में हमने सामुदायिक स्वास्थ्य नर्सिंग और स्कूल नर्स कार्यक्रम शुरू किए हैं. लेकिन चुनौती यह है कि कई जगहों पर हमें ऐसी नर्सें नहीं मिल रही हैं, जो काम करने को तैयार हों."

एनएसएसडी के अनुसार देश के अस्पतालों, ग्रामीण क्लिनिकों और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी अन्य संस्थाओं में नेपाल को करीब 45,000 नर्सों की जरूरत है. जबकि सच ये है कि अभी यहां इसकी आधी संख्या में भी नर्सें नहीं हैं. नेपाल, विश्व स्वास्थ्य संगठन के उन 55 देशों में है, जो स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी से जूझ रहे हैं. निरौला कहती हैं, 'हम नर्सों की भारी कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन जब सरकार ही नर्सों को पलायन के लिए प्रोत्साहित कर रही हो, तो भला कौन नेपाल में रुकेगा?'

बेहतर आमदनी की मांग करते एनएचएस कर्मी
ब्रिटेन 10,000 नेपाली नर्सों को भर्ती करना चाहता है. इससे ब्रिटेन को अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) में मौजूद प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी दूर करने में मदद मिलेगी. तस्वीर: Daniel Leal/AFP

उधर डीओएफई, ब्रिटेन के साथ अनुबंध का पुरजोर बचाव कर रहा है. उसकी दलील है कि ऐसे समझौतों से पलायन करने वाली नर्सों के अधिकार सुनिश्चित होंगे. साथ ही, अवैध तरीके से लोगों का विदेश जाना कम होगा और कामगारों का उत्पीड़न भी रोका जा सकेगा.

डीओएफई में सूचना अधिकारी कबिराज उप्रेती कहते हैं, "ऐसी खबरें सामने आई हैं कि अवैध तरीकों से दूसरे देशों में प्रवेश करने वाली नेपाली नर्सें धोखेबाजी का शिकार हो रही हैं और उन्हें प्रताड़ित करने के साथ ही उनका उत्पीड़न भी हो रहा है." उप्रेती का मानना है कि इन सबके मद्देनजर, यह समझौता 'मील का पत्थर' सिद्ध होगा.

अनिश्चित भविष्य

जिम्बाब्वे से लेकर फिलीपींस समेत कई देशों में स्वास्थ्यकर्मियों का अपने देशों से मोहभंग होता दिख रहा है. इसे एक चिंताजनक रुझान माना जा रहा है. बेहतर वेतन और सुविधाओं के चलते इन देशों का मेडिकल स्टाफ ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में नौकरी को प्राथमिकता दे रहा है.

नेपाल नर्सिंग काउंसिल (एनएनसी) में पंजीकृत 1,15,900 नर्सों में से एक तिहाई ने विदेश में काम करने के लिए पंजीकरण कराया हुआ है. नेपाल से पलायन करने वाली कुल नर्सों में से आधी अमेरिका जाती हैं. इसके बाद सबसे लोकप्रिय देश ऑस्ट्रेलिया और दुबई हैं. ब्रिटेन जाने का चलन भी अब शुरू हुआ है, लेकिनव अभी करीब 500 नर्सें ही ब्रिटेन गई हैं.

हालांकि नेपाल में स्वास्थ्य मोर्चे पर और भी चुनौतियां हैं. नेपाल के स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्री रोशन पोखरियाल का कहना है कि देश के स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या में आ रही कमी की वजह बस पलायन नहीं है. पोखरियाल कहते हैं, "हम अच्छी तरह जानते हैं कि बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मियों का पलायन हो रहा है, लेकिन यह हमारी समस्या नहीं है. हमारी परेशानी यह है कि हम उन्हें स्थायी, दीर्घकालिक और उपयुक्त नौकरियां नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं." उन्होंने आगे कहा, "सरकार कुल बजट का केवल चार प्रतिशत ही स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित करती है."

नेपाल की आबादी करीब तीन करोड़ है. यहां स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सीमित वित्तीय संसाधनों को देखते हुए तमाम नर्सों में विदेश में बेहतर नौकरी की आकांक्षा परवान चढ़ती है. राजधानी काठमांडू के एक निजी अस्पताल के आईसीयू में काम कर रहीं 25 साल की ग्रीष्मा बासनेत बताती हैं कि कम वेतन और काम के भारी दबाव की शिकायत करते-करते वह थक गई हैं.

बासनेत ने अमेरिका में काम के लिए आवेदन किया है और वहां से जवाब मिलने का इंतजार कर रही हैं. अभी उनका मासिक वेतन करीब 15,000 रुपया है. उनकी शिकायत है, "वैश्विक मानकों के मुताबिक एक नर्स को आईसीयू में केवल एक ही मरीज की देखभाल करनी होती है, लेकिन मुझे तीन मरीजों की देखभाल करनी पड़ती है. क्या यह शोषण नहीं है?" ग्रीष्मा बासनेत लभविष्य को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं. वह कहती हैं, "मुझे इस देश में क्यों रहना चाहिए? यहां कोई भविष्य नहीं है."

आरएम/एसएम (रॉयटर्स)