अब ट्रेनर भी वर्चुअल
६ मई २०१३कोलोन में दुनिया के सबसे बड़े हेल्थ और फिटनेस मेले फीबो में युवा महिला हिस्सा ले रही हैं. यह एक वर्कआउट गेम है, एक कंप्यूटर प्रोग्राम. एक बड़े से स्क्रीन पर ट्रेनर की फिल्म चल रही है, जो वर्कआउट की अलग अलग स्टेप्स बता रहा है.
जब लोग इसे देखते हुए एक्सरसाइज करते हैं तो एक 3डी कैमरा उनकी तस्वीरें लेता है. फिर एक कंप्यूटर प्रोग्राम इन लोगों की मूवमेंट की तुलना ट्रेनर की मूवमेंट से करते हैं और फिर कसरत करने वालों को अंक देते हैं जो स्क्रीन पर दिखते रहते हैं.
प्लेओके काफी हद तक कंप्यूटर गेम ही है. फर्क सिर्फ इतना है कि हर व्यक्ति जिम में एक बड़े ग्रुप में एक दूसरे से जीतने की कोशिश में हैं.
प्लेओके के प्रवक्ता आंद्रेयास बर्लिन कहते हैं कि जो युवा कंप्यूटर गेम्स से काफी जुड़े हुए हैं वो प्लेओके की ओर आकर्षित हैं. सॉफ्टवेयर बनाने वाले का उद्देश्य है प्रतिस्पर्धा की भावना का फायदा उठाना, वह लोगों को अंक देकर उनका उत्साह बढ़ाना चाहते हैं. इसका तकलीफ देने वाला हिस्सा एक ही है कि इससे असली ट्रेनर की जरूरत खत्म हो जाएगी. बर्लिन के मुताबिक, "इस स्टैंड पर पिछले साल हमारी बहुत सारे फिटनेस ट्रेनर से बहस हुई थी." हालांकि बर्लिन को नहीं लगता कि इससे ट्रेनरों का काम कम हो सकता है या उन्हें निकाल दिया जाएगा. क्योंकि अनुभव बिलकुल इसके उल्टी बात बताता है. बूढ़े लोगों को भी जिम में ट्रेनर की जरूरत पड़ती ही है.
फीबो मेले में इस बार एक और उत्पाद दिखाया गया है जो 3डी कैमरे से शारीरिक हालचाल दर्ज करता है. इस प्रोग्राम का नाम है सिस्ट्रेन काइनेटिक्स. यह बीमारियों को पकड़ने के लिए 3डी कैमेरा का इस्तेमाल करता है. इस कंपनी के संस्थापक थिलो रुपेर्ट का कहना है कि रिहेबिलिटेशन सेंटर में ट्रेनर हर मरीज के हिलने डुलने पर नजर नहीं रख सकते. यहां सिस्ट्रेन काइनेटिक काम आता है.
यह शरीर कैसे हिल डुल रहा है, इसे दर्ज करता है और बताता है कि कौन सा मूवमेंट सही है और कौन सा गलत. इस मशीन से आंकड़े इकट्ठे कर उसका विश्लेषण किया जाना भी जरूरी होता है.
लेकिन क्या हेल्थ क्लब के ट्रेनर को सच में हटाया जा सकता है. कई लोग तो क्लब में जाते ही इसलिए हैं कि फलां ट्रेनर बहुत अच्छा या अच्छी है, फलां बहुत अच्छे से समझाता है या हैंडसम है. मशीनें इंसान के लिए परफेक्शन तो पैदा कर सकती हैं लेकिन इंसान नहीं पैदा कर सकतीं.
रिपोर्टः आभा मोंढे (डीपीए)
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी