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अमेरिकी पत्रकारों पर जासूसी के आरोप

७ अगस्त २०१३

सरकार के अंदर के लोग पत्रकारों को सूचना देकर लोकतांत्रिक नियंत्रण में अहम भूमिका निभा रहे थे. पर राष्ट्रपति ओबामा का प्रशासन गोपनीय सूचना देने वालों के खिलाफ काफी सख्ती दिखा रहा है. पत्रकारों को भी बख्शा नहीं जा रहा.

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U.S. President Barack Obama (L) and Attorney General Eric Holder attend the National Peace Officers' Memorial Service at the U.S. Capitol May 15, 2013 in Washington, DC. Obama, Holder and other members of the administration are being criticized over reports of the Internal Revenue Services' scrutiny of conservative organization's tax exemption requests and the subpoena of two months worth of Associated Press journalists' phone records. (Photo by Chip Somodevilla/Getty Images)
तस्वीर: Getty Images

कभी कभी कोई वाक्य नए काल के आने का संकेत दे जाता है. जैसे कि 23 जून 2013 को अमेरिका के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण टॉक शो मीट द प्रेस के एंकर डेविड ग्रेगरी ने जासूसी कांड का पर्दाफाश करने वाले दैनिक गार्डियन के पत्रकार ग्लेन ग्रीनवाल्ड से पूछा कि क्या एडवर्ड स्नोडेन की मदद के लिए उन पर मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए. यह सवाल और ग्रीनवाल्ड का जवाब इंटरनेट पर जंगल की आग की तरह फैल गया.

ग्रीनवाल्ड ने अपने जवाब में कहा था, "मैं समझता हूं कि यह अजीबोगरीब बात है कि एक आदमी जो अपने को पत्रकार कहता है, सार्वजनिक रूप से इस पर सोचता है कि क्या दूसरे पत्रकार पर गंभीर अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए या नहीं." उन्होंने कहा कि यह विचार कि उन्होंने खुफिया जानकारी सार्वजनिक करने या देशद्रोह में मदद दी, पूरी तरह निराधार है. इसके पहले रिपब्लिकन पार्टी के एक सांसद ने फॉक्स न्यूज के एक एंकर के सवाल के जवाब में ग्रीनवाल्ड पर मुकदमा चलाने की मांग की थी. (देखें तस्वीरों में-पर्दाफाश करने वाले हीरो)

स्रोत की सुरक्षा के लिए जेल

पत्रकारों द्वारा खुफिया सूचनाओं का प्रकाशन अधिकारियों की आंखों को हमेशा से खटकता रहा है. अमेरिका में खास परिस्थितियों में अदालतें पत्रकारों को अपने सूत्रों का पता बताने को बाध्य कर सकती हैं. एक नामी मामले में न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्टर जूडिथ मिलर को अदालत ने 2004 में अपने स्रोत का पता न बताने पर 18 महीने जेल की सजा सुनाई थी. स्रोत द्वारा अपना नाम गोपनीय रखे जाने की शर्त वापस लिए जाने तक उन्होंने 12 हफ्ते जेल में काटे.

USA Journalistin Judith Miller
अमेरिकी पत्रकार जूडिथ मिलरतस्वीर: Getty Images

लेकिन पत्रकारों के लिए कैद की सजा अब तक आम तौर पर अपवाद है. न तो वियतनाम युद्ध के बारे में पेंटागन पेपर्स और न ही वाटरगेट कांड के रहस्योद्घाटन के लिए पत्रकारों पर मुकदमा चलाया गया. वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में संवैधानिक अधिकारों के विशेषज्ञ फ्रेडरिक शॉवर कहते हैं, "लंबे समय से अमेरिका में पत्रकारों से सुरक्षा संबंधित मुद्दों पर जानकारी साझा करने का आग्रह किया जाता है, मांग की जाती है या बाध्य किया जाता है." वे कहते हैं, "आम तौर पर वे ऐसा नहीं करते, लेकिन कभी कभी उन्हें इसके लिए बाध्य किया जाता है."

ओबामा प्रशासन ने इस मामले में सख्ती बढ़ा दी है. 1917 में जासूसी कानून के पास होने के बाद से सभी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में जितने मुकदमे दर्ज हुए हैं उनके शासनकाल में उससे दोगुने मुकदमे दर्ज किए गए हैं. ओबामा प्रशासन ने पत्रकारों के खिलाफ भी कार्रवाई के नए रास्ते पर चलने का फैसला किया है.

पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई

इस समय तीन मामले अदालतों में हैं, जिनमें अमेरिका की सरकार पत्रकारों पर अपने स्रोत का नाम बताने या सूचना देने को बाध्य कर रही है या खुफिया कार्रवाई के जरिए ये जानकारी हासिल कर चुकी है. एक जाना माना मामला समाचार एजेंसी एपी का है जिसके टेलीफोन डाटा को गोपनीय तरीके से जब्त किया गया है. अमेरिकी कानून मंत्रालय ने दो महीने तक एपी के पांच दफ्तरों में 20 टेलीफोन लाइनों से हुई बातचीत और फैक्स की सूचनाओं को हासिल किया और उसका आकलन किया.

कई रिपोर्टरों के सेलफोन और निजी बातचीत के आंकड़ों को भी जब्त किया गया. एपी को इस जासूसी के बारे में कार्रवाई के खत्म होने के एक साल बाद मई 2013 में पता चला. टेलीफोन संपर्कों पर निगरानी के कारणों के बारे में औपचारिक रूप से कुछ नहीं बताया गया. एपी को शक है कि इस जासूसी की वजह एक विफल किए गए आतंकी हमले के बारे में उसकी रिपोर्टिंग थी.

दूसरा मामला न्यूयॉर्क टाइम्स के रिपोर्टर और खुफिया एजेंसियों के विशेषज्ञ जेम्स रीजेन का है. एक अपील अदालत ने जुलाई में फैसला सुनाया कि रीजेन को एक पूर्व सीआईए एजेंट के खिलाफ जासूसी के मामले में गवाही देनी होगी. अभियोक्ता कार्यालय ने खुफिया एजेंट पर गोपनीय सूचनाएं रीजेन को देने का आरोप लगाया है जिसका इस्तेमाल उन्होंने 2006 में सीआईए पर लिखी एक किताब में किया. रीजेन ने कहा है कि वह गवाही नहीं देंगे, भले ही उन्हें इसके लिए जेल क्यों न जाना पड़े.

Interview James Rosen mit John Kerry Fox News
फॉक्स न्यूज के जेम्स रोजन जॉन केरी के साथतस्वीर: U.S. Department of State

पत्रकारिता या साजिश में मदद

तीसरा और शायद सबसे महत्वपूर्ण मामला फॉक्स न्यूज के पत्रकार जेम्स रोजेन का है. कानून मंत्रालय ने सिर्फ उनके टेलीफोन और ईमेल के डाटा को ही जब्त नहीं किया बल्कि विदेश मंत्रालय के उनके आईडी कार्ड और उनके मंत्रालय जाने के आंकड़ों के आधार पर उनका एक प्रोफाइल भी बनाया. विदेश मंत्रालय के पूर्व अधिकारी स्टीफन किम के खिलाफ चल रही जांच के सिलसिले में रोजेन अभियोक्ताओं के घेरे में आ गए. किम पर आरोप है कि उन्होंने उत्तर कोरिया के बारे में एक गोपनीय रिपोर्ट फैला दी. रोजेन ने एक आर्टिकल लिखा था जिसमें उस रिपोर्ट के कुछ अंश थे.

इस मामले को यह बात विस्फोटक बनाती है कि रोजेन पर तलाशी वारंट में अपराध के लिए मदद का आरोप लगाया गया है और साजिशकर्ता बताया गया है. यह एक नई बात है. अब तक अमेरिका में किसी पत्रकार पर गोपनीय सूचनाओं के प्रकाशन के लिए जासूसी के आरोप में मुकदमा नहीं चलाया गया था.

अपने समय में पेंटागन पेपर्स पर रिपोर्ट करने वाले कानून विशेषज्ञ जेम्स गुडेल का कहना है कि रोजेन के मामले में तलाशी का वारंट यह दिखाता है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ऐसी कार्रवाईयां कर रहे हैं जो अब तक किसी राष्ट्रपति ने नहीं की थी. गुडेल का कहना है कि अब तक ओबामा से ज्यादा सिर्फ रिचर्ड निक्सन ने प्रेस स्वतंत्रता को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है.

प्रकाशन या विश्वासघात

मिनिसोटा यूनिवर्सिटी में मीडिया नैतिकता की प्रोफेसर जेन किर्टली कहती हैं, "मैं समझती हूं कि इस बात की असली संभावना है कि जल्द ही ऐसे अदालती फैसले सुनाए जाएंगे कि पत्रकारों पर जासूसी का मुकदमा चलाया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने खुफिया सूचनाएं पाई और उन्हें दूसरों को दिया." अब तक अमेरिका में कानून को इस तरह परिभाषित करने का कोई आधार नहीं था. क्योंकि पत्रकारों ने किसी गोपनीयता दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और अमेरिका में ब्रिटेन की तरह कोई गोपनीयता कानून नहीं है.

Wikileaks Gründer Julian Assange Aufenthalt Botschaft Ecuador in London
विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज लंदन में इक्वाडोर दूतावास मेंतस्वीर: REUTERS

किर्टली कहती हैं, "लेकिन अब सरकार और कांग्रेस से ऐसी आवाजें सुनाई दे रही हैं जो कहते हैं कि खुफिया सूचनाओं को इंटरनेट या कहीं और प्रकाशित करना उसे आतंकवादी या दुश्मन को देने जैसा ही है. यह यकीन करने लायक नहीं है."

यही दलील सैनिक अभियोक्ता ने ब्रैडली मैनिंग के मुकदमे में दी, जिसे जज ने खारिज कर दिया. लेकिन ऐसा लगता है कि यह खुफिया जानकारी जाहिर करने के असली मुकदमे से पहले आरंभिक मुकदमा है, जो विकीलिक्स के संस्थापक जूलियान असांज के खिलाफ चलाया जाएगा. तब यह मुद्दा भी उठेगा कि 21वीं सदी में पत्रकारिता का असली मतलब क्या है.

रिपोर्ट: मिषाएल क्निगे/एमजे

संपादन: आभा मोंढे

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