"आर्थिक पागलपन कर रहा है ब्रिटेन"
१ मार्च २०११वीजा नियमों में बदलावों को लेकर भारत सरकार काफी गंभीर है और इस बारे में ब्रिटिश सरकार से बातचीत कर रही है. इस महीने की शुरुआत में भारत की उच्च शिक्षा सचिव विभा पुरी ने नई दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायुक्त रिचर्ड स्टैग से बातचीत की और भारत की चिंताएं उनके सामने रखीं.
ब्रिटेन में इन बदलावों की शुरुआत प्रवासन मंत्री डैमियन ग्रीन ने की है. और भारत की परेशानी यह है कि इसका सबसे बड़ा असर भारतीय छात्रों पर ही पड़ेगा क्योंकि भारत से हर साल हजारों की तादाद में छात्र ब्रिटेन जाते हैं.
ग्रीन चाहते हैं कि पढ़ाई के बाद छात्रों का काम करने के लिए जो वीजा दिया जाता है उसमें कटौती की जाएगी. इसी वीजा के तहत भारत और दूसरे देशों के छात्र पढ़ने के बाद वहां दो साल तक काम कर सकते हैं. बहुत सारे छात्र ऐसे हैं जो पढ़ाई के लिए खर्च का इंतजाम खुद करते हैं. उनके लिए यह वीजा काफी काम आता है क्योंकि उन्हें नौकरी मिल जाती है और पढ़ाई का खर्च निकल आता है.
किस तरह हो कटौती
ग्रीन यह भी चाहते हैं कि ब्रिटेन आने वाले छात्रों के लिए अंग्रेजी जानने का स्तर बढ़ाया जाए, साथ आने वाले परिवार के लोगों की संख्या में कटौती की जाए और छात्रों के ब्रिटेन पहुंचने पर उन पर कड़ी निगरानी रखी जाए.
ग्रीन कह चुके हैं कि विदेशी छात्रों को ब्रिटिश नौकरियों पर पहला हक नहीं मिलना चाहिए जबकि ब्रिटेन के लोगों को नौकरी खोजने में परेशानी हो रही है. लेकिन ब्रिटिश संस्थाओं ने इन बदलावों का कड़ा विरोध किया है. उनका कहना है कि इससे न सिर्फ ब्रिटेन को दुनिया भर से मिलने वाली प्रतिभा कम हो जाएगी बल्कि भारी फीस देने वाले विदेशी छात्र भी उसके हाथ से जाते रहेंगे.
विरोध में विश्वविद्यालय
ब्रिटिश विश्वविद्यालयों की संस्था यूनिवर्सिटीज यूके ग्रीन के कदम का खासा विरोध कर रही है. इसके अलावा थिंक टैंक और सरकारी नीतियों पर रिसर्च करने वाले संस्थानों ने भी इनका विरोध किया है.
सेंटर फोरम के निदेशक क्रिस निकलसन कहते हैं, "सरकार के मौजूदा प्रस्ताव विनाशकारी हैं और उनमें भविष्य की सोच नहीं है. ये विदेशी छात्र ब्रिटिश विश्वविद्यालयों को न सिर्फ पैसा दिलाते हैं बल्कि इनका सांस्कृतिक और शिक्षा के क्षेत्र में भी अहम योगदान है. इनकी संख्या को कम करना आर्थिक पागलपन कहा जाएगा."
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए जमाल