जर्मन मीडिया में अन्ना हजारे की गूंज
१६ अप्रैल २०११एक अनशन से भारत में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत हुई. इस नागरिक आंदोलन के दबाव के सामने सरकार झुक गई. जून के अंत तक एक भ्रष्टाचार विरोधी विधेयक तैयार किया जाएगा और फिर इसे 15 अगस्त तक संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा. नौएस डॉयचलांड अखबार लिखता हैः
भ्रष्टाचार के विरुद्ध नारे के साथ 72 साल के गांधीवादी अन्ना हजारे ने अपने जैसे मुट्ठी भर लोगों को लेकर अनशन शुरू किया. नई दिल्ली के जंतर मंतर पर वह घास पर अनशन के लिए बैठ गए. इसके बाद सौ नागरिक संगठन अहिंसक आंदोलन में हजारे के समर्थन में देश भर में सड़कों पर उतरे. हजारे की मांग है कि देश में भ्रष्टाचार पर लगाम कसने वाला एक प्रभावी कानून बने. भारत में 40 साल से हर स्तर पर भ्रष्टाचार है जो देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में बड़ा रोड़ा है. यह मुद्दा दो सप्ताह के अंदर देश की राजनीतिक पार्टियों में बहस का मुद्दा बन गया है. हजारे की मांग है कि केंद्र में एक लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की जाए.
पायलटों का फर्जीवाड़ा
म्युनिख से प्रकाशित होने वाले अखबार स्यूडडॉयचे त्साइटुंग ने भारत में जाली पायलट लाइसेंस के बारे में लिखा है. अखबार के मुताबिक देश में साढ़े चार हजार पायलटों में से एक तिहाई के लाइसेंस ही अच्छे तरह जांचे गए हैं. अखबार का कहना हैः
एक दर्जन से ज्यादा पायलटों को भारत में फर्जी लाइसेंस हासिल करने के आरोप में पकड़ा गया है. यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. जांचकर्ताओं को आशंका है कि जाली लाइसेंस के और मामले सामने आएंगे. भारतीय नागरिक उड्डयन पर अविश्वास का मामला गोवा में हुई एक अजीब लैंडिग के बाद सामने आया. घरेलू एयरलाइन्स इंडिगो की एक महिला पायलट ने बड़े अजीब तरीके से पहले विमान के पिछले पहिए जमीन पर टिकाए. नागरिक उड्डयन मंत्री व्यालार रवि ने बताया कि 2009 और 2010 में कुल 57 पायलट ऐसे मिले जो नशे में विमान उड़ा रहे थे. कहीं ऐसा तो नहीं, यात्रियों की जान के जोखिम के दम पर भारत में आए दिन नई एयरलाइन्स शुरू हो रही हैं.
चीन से सब चिंतित
गोवा में दुनिया के सबसे बड़े सैन्य बंदरगाहों में एक नौसैनिक बंदरगाह बन रहा है. यह 20 किलोमीटर लंबा होगा और वहां 40 युद्धपोत खड़े हो सकेंगे. साथ ही भविष्य में परमाणु अस्त्र ले जा सकने वाली पनडुब्बी भी लगाई जा सकेगी. एशियाई देशों की सरकारें किसी संभावित युद्ध के लिए तैयारी पर बहुत धन खर्च कर रहीं हैं. फ्रैंकफर्ट से छपने वाले अखबार फ्रांकफुर्टर अलगमाइने त्साइटुंग का कहना है कि इसका मुख्य कारण चीन है. अखबार की राय हैः
जापान से होते हुए ताइवान और भारत तक सभी चीन की बढ़ती सैन्य ताकत से डरते हैं. ये सभी जानते हैं कि युद्ध की स्थिति में अमेरिका के मदद करने की बहुत कम संभावना है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद समय समय पर भड़कता रहता है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत ने अपना रक्षा बजट 11.6 फीसदी बढ़ा दिया है. देश के बजट से 40 प्रतिशत हथियार खरीदने में इस्तेमाल किया जाएगा. लेकिन चीन में फिलहाल नए हथियारों के लिए बहुत कम खर्च किया जा रहा है. फिलहाल वहां शिक्षा, मूलभूत संरचना और सैनिकों का जीवन स्तर बेहतर बनाने के लिए ज्यादा खर्च किया हो रहा है. चीनी संसद के प्रवक्ता ने कहा कि चीन की सीमित सैन्य शक्ति देश की एकता और अखंडता को बचाने के लिए है. इससे किसी भी देश को खतरा महसूस करने की जरूरत नहीं है.
पाक अमेरिकी तनातनी
फ्रांकफुर्टर अलगमाइने त्साइटुंग लिखता है कि इस्लामाबाद और वॉशिंगटन के बीच ड्रोन हमलों और पाकिस्तान में एजेंटों की उपस्थिति को लेकर तनातनी तीखी हो गई है. अखबार का मानना हैः
पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख परवेज अशफाक कयानी ने पाकिस्तान में अमेरिकी एजेंटो की संख्या में भारी कमी की मांग की है. प्रभावशाली कयानी की यह भी मांग है कि पाक-अफगान सीमा पर आतंकियों को निशाना बना कर हो रहे ड्रोन हमलों को अनिश्चित समय के लिए रोक दिया जाए. अमेरिकी कांग्रेस में और खासकर विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी में इस बात से चिंता है कि ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद से पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में सीआईए के ड्रोन हमलों में तेजी आई है. लेकिन सीआईए संदिग्धों को पकड कर उन पर सुनवाई करने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. सीआईए को चाहिए कि वह आतंकियों के बारे में खुद जानकारी जमा करें न कि उन्हें खत्म करें या यह काम मित्र देशों की खुफिया एजेंसियों पर डाल दिया जाए.
पाकिस्तान का क्या होगा
कोलोन से निकलने वाले अखबार ने पाकिस्तान में शिक्षा को मुद्दा बनाया है. कोइल्नर श्टाड्ट अनजाइगर का कहना है कि सहायता संगठनों के बस में जो है वे कर रहे हैं. लेकिन सरकार इस मुद्दे पर एकदम नाकाम साबित हुई है. अब भी यह साफ नहीं है कि कहीं देश कट्टरपंथियों के हाथ में तो नहीं जा रहा.
अखबार लिखता है कि भयावह बाढ़ से इस देश ने काफी कुछ सीखा है. पीड़ितों को साफ साफ संदेश यह है कि वह अपनी सरकार से कोई अपेक्षा नहीं कर सकते. गांवों और घरों को फिर से खड़ा करने के लिए सरकार ने देहले का काम नहीं किया है. वह तो प्राकृतिक आपदा बढ़ने के साथ पूरे समय कहीं गायब सी हो गई थी. पूरे पाकिस्तान में शिक्षा की हालत खराब है. स्कूल जाने की कोई अनिवार्यता नहीं है क्योंकि सरकार ने शिक्षण और पढ़ाई के प्रति अपनी जिम्मेदारी से हाथ खींच लिया है. इसका परिणाम है कि पाकिस्तान अफ्रीकी देशों से भी कहीं पीछे है. जनता को समर्थ सरकार कहीं पहले ही मिल जानी चाहिए थी. एक ऐसी सरकार जो सामाजिक हालात को सहन करने लायक बनाए. शहर-गांव, गरीब-अमीर, संभ्रांत और निचली जातियों का भेद खत्म कर दे. 1947 से पाकिस्तान की कोशिश है कि वह अलग अलग जातियों वाला देश बने क्योंकि ऐसे ही देश का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है.
संकलनः अना लेहमान/आभा मोंढे
संपादनः ए कुमार