नई शिक्षा नीति, पुरानी बहस
३० जुलाई २०२०एनडीए सरकार की महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की व्यापक समीक्षा अभी तक विशेषज्ञ नहीं कर पाए हैं, लेकिन इसके प्रावधानों ने कई महत्वपूर्ण विषयों पर एक बार फिर देश में बहस शुरू कर दी है. बच्चों की शिक्षा की शुरुआत किस भाषा में की जानी चाहिए, परीक्षाओं को कितना महत्व देना चाहिए, उच्च शिक्षा में किस तरह के विकल्प होने चाहिए जैसे कई सवाल हैं जिन पर एक बार फिर देश में बहस शुरू हो गई है.
1986 के बाद पहली बार देश में नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई है. इस नीति को बनने में आधिकारिक रूप से पांच साल लग गए लेकिन इसके पीछे विचार, शोध, सुझाव, चर्चा और बहस की बरसों की कोशिश है. इसे लागू करने के लिए मौजूदा शिक्षा नीति में कई मौलिक बदलाव करने पड़ेंगे.
कैसे बड़े बदलाव
नई नीति में भारत की 10 + 2 शिक्षा पद्धति को बदलकर उसकी जगह 5+3+3+4 पद्धति अपनाने की अनुशंसा की गई है. इसके तहत तीन साल से ले कर आठ साल की उम्र तक बुनियादी स्तर की पढ़ाई होगी, आठ से 11 तक प्री-प्राइमरी, 11 से 14 तक प्रेपरेटरी और 14 से 18 तक सेकेंडरी.
कम से कम पांचवी कक्षा तक की शिक्षा बच्चे की मातृभाषा या प्रांतीय भाषा में दी जाएगी, और उसके बाद दूसरी भाषाओं में पढ़ने का विकल्प दिया जाएगा. छोटी कक्षाओं में सालाना परीक्षाएं बंद कर दी जाएंगी और सिर्फ तीसरी, पांचवी और आठवीं कक्षा में इम्तिहान होंगे.
वोकेशनल शिक्षा शामिल
छठी कक्षा से ही व्यावसायिक यानी वोकेशनल शिक्षा की शुरुआत हो जाएगी और दौरान बच्चे इंटर्नशिप भी करेंगे ताकि स्कूल से निकलते निकलते वो कम से कम एक कौशल सीख ही लें. इसके अलावा विज्ञान और ह्यूमैनिटीज के बीच कोई कड़ा वर्गीकरण नहीं होगा और विद्यार्थियों को सभी तरह के विषय पढ़ने की सुविधा दी जाएगी.
स्नातक की पढ़ाई को तीन की जगह चार साल का कर दिया जाएगा, जिसमें हर स्तर पर कोर्स से निकलने का भी विकल्प होगा. जिस साल भी छात्र कोर्स से निकलेगा उसे उस स्तर के अनुसार डिग्री या डिप्लोमा दिया जाएगा. नीति के तहत मानव संसाधन मंत्रालय का नाम भी बदल दिया जाएगा. मंत्रालय का नया नाम शिक्षा मंत्रालय होगा.
क्या है शिक्षाविदों की शिकायत
शिक्षाविद शिकायत कर रहे हैं कि सरकार द्वारा नीति का सिर्फ संक्षिप्त विवरण जारी किए जाने की वजह से नीति का विस्तृत विवरण अभी तक उन्हें नहीं मिल पाया है. नीति के आधिकारिक विस्तृत दस्तावेज के अभाव में उसके कई प्रारूप सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप पर भेजे जा रहे हैं.
इसी बीच नीति पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है. सीपीएम जैसे दलों ने नीति का यह कह कर विरोध किया है कि इसे संसद के समक्ष नहीं रखा गया और इस पर संसद में चर्चा नहीं हुई.
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