भारत को यूरेनियम निर्यात के पक्ष में ऑस्ट्रेलिया
१५ नवम्बर २०११चीन, जापान, ताइवान और अमेरिका को ऑस्ट्रेलिया पहले से ही यूरेनियम का निर्यात करता है लेकिन भारत को इसके काबिल इसलिए नहीं समझा गया क्योंकि उसने परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत नहीं किये हैं. ऑस्ट्रेलिया की सत्ताधारी लेबर पार्टी इसे यूरेनियम के निर्यात की जरूरी शर्त मानती है.
बदलाव का वक्त
प्रधानमंत्री गिलार्ड का कहना है कि अब वक्त आ गया है जब बदलाव किया जाना चाहिए. सिडनी में अगले महीने होने जा रहे लेबर पार्टी के सालाना सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा होगी और माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नीतियों में बदलाव के लिए सहमति हासिल कर लेंगी. पत्रकारों से बातचीत में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने कहा, "मेरा मानना है कि लेबर पार्टी के लिए अपनी नीति को बदलने का वक्त आ गया है. भारत को यूरेनियम बेचना ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था और यहां नौकरियों के लिए अच्छा होगा."
ऑस्ट्रेलिया खुद तो परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं करता लेकिन यह कजाकिस्तान और कनाडा के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा यूरेनियम उत्पादक देश है. हर साल यह 9600 टन ऑक्साइड कंसेन्ट्रेट निर्यात करता है जिसकी कीमत करीब 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर है. ऑस्ट्रेलिया के पास दुनिया का सबसे बड़ा यूरेनियम का भंडार भी है. वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन के मुताबिक दुनिया का 23 फीसदी यूरेनियम ऑस्ट्रेलिया में है.
अमेरिकी संधि का असर
जूलिया गिलार्ड का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक कोशिशों के साथ भारत को परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत करने के लिए मनाने के लिए काम करता रहा है लेकिन अमेरिका के साथ 2005 में हुए नागरिक परमाणु संधि ने रणनीति बदल दी. इस संधि में भारत अपने नागरिक परमाणु ऊर्जा केंद्रों को और सैन्य परमाणु ऊर्जा केंद्रों के अलग कर उनके लिए अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा आयोग की सुरक्षा शर्तों को मानने पर तैयार हो गया. इसके बदले में अमेरिका भारत के साथ शांतिपूर्ण उद्देश्यों में परमाणु उर्जा के लिए काम करने पर रजामंद हो गया. ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री का कहना है, "इस समझौते ने वास्तव में परमाणु उर्जा के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध को खत्म कर दिया."
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि भारत परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन को 2050 तक 40 फीसदी तक कर लेगा जो फिलहाल महज 3 फीसदी है. ऐसे में जूलिया गिलार्ड इसके आर्थिक पहलू पर ध्यान देते हुए भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर लेना चाहती हैं. गिलार्ड ने कहा, "हम यूरेनियम के बहुत बड़े सप्लायर हैं इसलिए हमें इस नए और बढ़ते बाजार तक पहुंचना होगा जो ऑस्ट्रेलियाई नौकरियों के लिए अच्छा है." हालांकि इसके साथ ही उन्होने इस बात पर भी जोर दिया कि कोई भी निर्यात इस वचनबद्धता के बाद ही होगा कि इस यूरेनियम का इस्तेमाल बिजली पैदा करने के लिए होगा न कि सैन्य उद्देश्यों के लिए. गिलार्ड ने कहा, "निश्चित रूप से यूरेनियम के निर्यात के लिए हम भारत से भी उन्हीं मानकों का पालन करने की उम्मीद रखते हैं जो बाकी देशों से है."
विरोधी भी कम नहीं
भारत ने ऑस्ट्रेलिया के इस कदम का स्वागत किया है. भारतीय विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने कहा कि इस कदम से हमारी, "बढ़ी उर्जा जरूरतों, दोषरहित परमाणु अप्रसार की परंपरा और दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी" को मान्यता मिली है. ऑस्ट्रेलिया के विपक्षी कंजरवेटिव कई सालों से लेबर पार्टी से इस नीति को बदलने की मांग कर रहे हैं जिससे कि भारत के लुभावने और बढ़ते बाजार तक अपनी पहुंच बनाई जा सके. भारत भी सरकार पर दबाव बनाता रहा है.
हालांकि अब भी ऐसे लोग कम नहीं हैं जो यूरेनियम निर्यात के प्रतिबंध को बनाए रखना चाहते हैं. लेबर पार्टी के सीनेटर डाउग कैमरन तो साफ कहते हैं, "हम भारत को यूरेनियम देंगे और इससे भारत में मौजूद यूरेनियम सैन्य कार्यक्रमों के लिए रह जाएगा." ऑस्ट्रेलियाई ग्रीन पार्टी के नेता बॉब ब्राउन ने भी इस कदम की आलोचना की है. उनका कहना है कि इससे बहुराष्ट्रीय खनन कंपनियों के कारोबारी हित वैश्विक सुरक्षा के आगे आ जाएंगे. ब्राउन का कहना है, "यह वो देश है जिसके पास मध्यम दूरी की मिसाइलें हैं और जो परमाणु हथियारों से लैस परमाणु पनडुब्बियां बना रहा है."
रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन
संपादनः ईशा भाटिया