हक्के बक्के हैं बिन लादेन के पड़ोसी
४ मई २०११इतने बड़े घर का कोई बच्चा स्कूल नहीं जाता था. महिलाएं पड़ोस में नहीं जाती थीं और गम में या खुशी में उनके मर्द किसी के साथ नजर नहीं आते थे. पड़ोस में रहने वालों को अब समझ में आ रहा है कि माजरा क्या था.
12 साल का नबील बताता है, "हम उस घर के पास क्रिकेट खेलते रहते थे. लेकिन उस घर का कोई बच्चा हमारे साथ नहीं खेलता. वहां के बच्चे कभी स्कूल नहीं जाते. हमने उन्हें कभी भी स्कूल जाते हुए नहीं देखा."
पास के 12 साल के जरार अहमद का तो दावा है कि उसने ओसामा बिन लादेन को देखा भी था और उनके घर में गया भी था. जरार का कहना है कि उस आदमी ने उसे दो खरगोश भी दिए.
मामूली सी आबादी वाला मामूली सा शहर एबटाबाद अब इतिहास में दर्ज हो चुका है. इस जगह के बारे में अब दुनिया भर के लोग चर्चा करते रहेंगे और ओसामा बिन लादेन की वजह से यहां के लोगों की भी चर्चा होती रहेगी. यहां के बाशिंदे अब सोच रहे हैं कि उनके पड़ोस में क्या कुछ हो रहा था.
कार्रवाई से दंग
एबटाबाद के लोग अमेरिकी सेना की कार्रवाई से दंग रह गए. वहीं पास में रहने वाले मोहम्मद कासिम का कहना है, "मैंने सड़कों पर विदेशी सेना के जवान देखे, जिन्हें हेलिकॉप्टर से उतारा गया. वे घर का दरवाजा तोड़ कर अंदर दाखिल हो गए. उसके बाद हमने गोलियों की आवाज सुनी, महिलाओं के चिल्लाने की आवाज आई और उसके थोड़ी देर बाद विदेशी सैनिक वहां से निकल गए."
स्थानीय पुलिस अधिकारी ने बताया कि ओसामा बिन लादेन बिना किसी सुरक्षा कवच के आम जीवन बिता रहा था. उसका कहना है, "घर के अंदर ओसाम बिन लादेन की हिफाजत के लिए कोई कमांडो नहीं था."
धार्मिक तो नहीं
कुछ पड़ोसियों का सोचना था कि हो सकता है कि इस घर में रहने वाले लोग बेहद धार्मिक किस्म के होंगे और इसी वजह से वहां की महिलाएं बाहर नहीं जाती होंगी. लेकिन मर्दों का घर से नहीं निकलना उन्हें परेशान जरूर करता था. वे न तो किसी की शादी में शरीक होते और न ही किसी के जनाजे में. आम तौर पर पाकिस्तान में ऐसी परंपराओं का बेहद बोलबाला है और सामाजिक मौकों पर लोग जरूर एक दूसरे के घर आते जाते हैं.
एबटाबाद में ही रहने वाले मोहम्मद कबीर का कहना है, "हम अपने पड़ोसियों के घर खीर बांटते थे लेकिन मेरी मां कहती थी उस सफेद घर में कभी मत जाना."
सरकारी कर्मचारी ताहिर महमूद कहते हैं कि किस तरह उस घर के लोगों के पास एक वैन और एक जीप थी, जिससे वे आना जाना करते थे. महमूद को तो यकीन ही नहीं हो रहा है, "उन्हें देख कर कभी नहीं लगता था कि वे ऐसे लोग हो सकते हैं. मैं तो यकीन नहीं कर पा रहा हूं कि वह वहां रहता था. अगर वह वहां रहता था तो इस बात पर यकीन नहीं हो पा रहा है कि उसे कभी किसी ने देखा क्यों नहीं."
वक्त लगेगा
एबटाबाद में सामान्य स्थिति आते आते अभी थोड़ा वक्त लगेगा. शहर के लोग आम तौर पर आलू और मटर की खेती करते हैं. लेकिन अभी उन्हें ओसामा बिन लादेन की वजह से जाना जा रहा है. मोहम्मद रमजान का कहना है, "हमारी जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं आएगा. हम अपना काम जारी रखेंगे. कड़ी मेहनत करेंगे. मुझे उम्मीद है कि किसी तरह की हिंसा नहीं होगी और मेरे परिवार तथा बच्चे महफूज रहेंगे."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः ए कुमार