जी-7 में दक्षिणी दुनिया को साथ लाने की कोशिश
२२ मई २०२३संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय वित्त प्रबंधन व्यवस्था ब्रेटन वुड्स में सुधार का वक्त आ गया है ताकि उसे "आज की दुनिया की वास्तविकताओं” के मुताबिक ढाला जा सके.
जापान के हिरोशिमा में जी-7 सम्मेलन में हिस्सा लेने गए गुटेरेश ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि दोनों संगठन 1945 की व्यवस्था की झलक देते हैं और उनमें नये बदलावों की जरूरत है. उन्होंने कहा, "वैश्विक वित्त ढांचा अब पुराना, दुष्क्रियाशील और अन्यायपूर्ण हो गया है. कोविड-19 महामारी और रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के कारण लगे आर्थिक झटकों के दौरान यह दुनिया को सुरक्षा ढांचा देने के अपने मुख्य काम में विफल रहा है."
भारत, ब्राजील और कई अन्य देश इस बात की लगातार मांग करते रहे हैं कि सुरक्षा परिषद में मूलभूत सुधार किये जाएं. ये देश सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा वित्तीय व्यवस्था में भी इन देशों की अहमियत बढ़ी है क्योंकि दुनिया की अर्थव्यवस्था में इन देशों की भूमिका और हिस्सेदारी का विस्तार हुआ है.
अहम हैं विकासशील देश
गुटेरेश ने कहा कि जी-7 सम्मेलन के दौरान उन्हें यह महसूस हुआ कि विकासशील देशों में यह भावना लगातार बढ़ रही है कि पुराने पड़ चुके संस्थानों में सुधार और ‘दक्षिणी दुनिया में निराशा' कम करने के लि समुचित प्रयास नहीं किये जा रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के शोध विभाग के निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री पिएरे-ओलिविएर गोरिंशास ने कहा है कि भारत और चीन मिलकर 2023 में दुनिया के कुल आर्थिक विकास के लगभग आधे के लिए जिम्मेदार होंगे. जनवरी में जारी पूर्वानुमान में कहा गया था कि इस साल और अगले साल भी भारत की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत की दर से विकास करेगी.
डिफॉल्टर होने के कगार पर अमेरिका, 2008 जैसी मंदी की संभावना
जब विकासशील अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ रही हैं, तब जी-7 जैसे सबसे धनी देशों का विकास धीमा पड़ रहा है. पिछले 30 साल में दुनिया के सबसे धनी देशों का वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सा लगातार कम हुआ है. आईएमएफ के मुताबिक 1980 में दुनिया की कुल जीडीपी का 50.7 फीसदी इन्हीं देशों में था जबकि 2023 में यह सिर्फ 29.9 प्रतिशत रह गया है.
गुटेरेश ने कहा, "अब देखना होगा कि हिरोशिमा में जो विचार-विमर्श हुआ है, उसका क्या असर होता है. जी-7 देशों ने दुनिया की कुछ सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं के साथ चर्चा की है.”
दक्षिणी दुनिया को खास तवज्जो
जी-7 सम्मेलन के लिए जापान ने कई विकासशील देशों के नेताओं को बतौर मेहमान बुलाया था. इन कथित ‘दक्षिणी दुनिया' के देशों में भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया आदि के नेता शामिल थे. इसके अलावा कोमोरस और कुक आइलैंड्स जैसे छोटे देशों के नेताओं को भी आमंत्रित किया गया था. कोमोरोस इस वक्त अफ्रीकी संघ का अध्यक्ष है जबकि कुक आईलैंड के पास पैसिफिक आईलैंड्स फोरम की अध्यक्षता है. जी-7 की कोशिश है कि इन देशों रूस और चीन के अलावा जलवायु परिवर्तन, बढ़ते कर्ज और वैश्विक विकास जैसे मुद्दों पर साथ लिया जा सके.
जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने कहा कि इन देशों के नेताओं को बुलाने का मकसद दक्षिणी दुनिया के देशों की अहमियत जताना है. जापान जी-7 में एकमात्र एशियाई देश है. टोक्यो की कीयो यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रोफेसर यूइची होसोया कहते हैं कि अकेला एशियाई देश होने के नाते जापान की भूमिका विशेष हो जाती है.
शनिवार को जी-7 के साझा बयान में भी इस बात पर जोर दिया गया कि दक्षिणी दुनिया की उनके लिए विशेष अहमियत है. बयान में कहा गया कि धनी देश कर्ज से जूझ रहे देशों की मदद करना चाहते हैं. उन्होंने विकासशील देशों में अक्षय ऊर्जा, दूरसंचार और रेलवे से जुड़ीं विकास परियोजनाओं के लिए 600 अरब डॉलर का धन उपलब्ध कराने का अपना वादा भी दोहराया.
होयोसा कहते हैं, "अहम वैश्विक मुद्दों को दक्षिण दुनिया की मदद के बिना नहीं सुलझाया जा सकता. इनकी मदद के बिना जी-7 अहम मुद्दों को हल नहीं कर सकता, जैसा कि पहले हो जाता था.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)