बापू के कदमों के निशान ढूंढती जर्मन फोटोग्राफर
२३ अक्टूबर २०१९इसका नतीजा बड़ी तस्वीरों वाली एक किताब के रूप में सामने आया है जिसका नाम है ट्रैकिंग गांधी. यह किताब गांधी जयंती के ठीक पहले आई है. यह प्रोजेक्ट गांधी जी की जिंदगी को फिर से जीने का प्रोजेक्ट था, उन्हीं ठिकानों पर जहां उनकी जिंदगी बीती थी. किताब में दफ्तरों, सोने के कमरों, जेल की काल कोठरियों की तस्वीरें तो हैं ही जहां गांधीजी रहे थे, उन सड़कों, स्टेशनों या मैदानों की भी तस्वीरें हैं जिनकी गांधीजी की जिंदगी में अहम भूमिका रही है. आन्या बोनहोफ की खासियत ये है कि उन्हें तस्वीरों के माध्यम से गांधीजी की जीवनी के विभिन्न पन्नों को उकेरने का मौका मिला है.
आन्या बोनहोफ का भारत से निकट का रिश्ता रहा है. उन्होंने पिछले दस सालों में भारत से संबंधित कई किताबों और फोटो प्रदर्शनियों पर काम किया है. वह खासकर पूर्वी शहर कोलकाता से करीबी रूप से जुड़ी रही हैं. 2012 में कोलकाता के मजदूरों पर एक फोटो सिरीज छपी थी जिसका नाम था बहक. 2018 में प्रकाशित कृषक बंगाल के चावल उगाने वाले किसानों की कथा थी. 2015 में उन्हें भारत जर्मन संबंधों में योगदान के लिए गिजेला बॉन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. ट्रैकिंग गांधी प्रोजेक्ट भी कई प्रदर्शनियों का स्रोत बना है. इस समय ये प्रदर्शनी 15 अक्टूबर से भारत में गांधी संग्रहालय में दिखाई जा रही है.
प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए आन्या बोनहोफ भारत में थीं. गांधीजी की 150वीं जयंती के मौके पर उनकी तस्वीरों की प्रदर्शनी उनके लिए भावनात्मक मौका था. वे कहती हैं, "पिछले साल ट्रैकिंग गांधी किताब पर शोध के लिए बहुत सारा समय यहां गुजारने के बाद प्रदर्शनी के मौके पर यहां होना भावुक करने वाला था." नई दिल्ली में चल रही प्रदर्शनी के दौरान गांधीजी की 1937 में दिल की धड़कनें सुनी जा सकती हैं. इसके लिए 1937 में कोलकाता में हुए गांधीजी के इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम टेस्ट की मदद ली गई है.
आन्या बोनहोफ ने गांधीजी की जीवनी को तस्वीरों के माध्यम से कहने का प्रोजेक्ट 2014 में शुरू किया और इस साल गर्मियों में किताब छपकर बाजार में आई. वे बताती हैं, "तस्वीरों के लिए कुछ जगहों की यात्रा करने के अलावा सतर्कता से शोध करना जरूरी था. साथ ही वहां के लोगों के साथ बातचीत भी ताकि गांधीजी की जिंदगी के महत्वपूर्ण ठिकानों और उसके राजनीतिक असर का पता लग सके."
बंटवारे से पहले का भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन महात्मा गांधी की कर्मभूमि था. सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के अपने सिद्धांतों के कारण वे अपने जीवनकाल में ही दुनिया की प्रमुख हस्ती बन गए थे. आन्या बोनहोफ ने अपने कैमरे से तीन तरह के जगहों की तस्वीरें ली हैं. ऐसी जगहें जहां गांधीजी को आज भी याद किया जाता है, ऐसी जगहें जो आज भी नहीं बदली हैं, मसलन दक्षिण अफ्रीका और भारत की जेलें जहां गांधीजी कैद रहे थे और ऐसी जगहें जहां कोई भी स्मारक नहीं बचा है. डॉयचे वेले को एक इंटरव्यू में आन्या बोनहोफ ने कहा, "मेरा मकसद उन जगहों पर गांधीजी के प्रभामंडल को खोजना नहीं था, लेकिन तस्वीरों में उनकी कहानी कहने का यही एकमात्र रास्ता था."
गांधीजी के जीवनपथ पर चलते हुए 1974 में हागेन शहर में पैदा हुई जर्मन फोटो कलाकार को भारत में क्या समानताएं दिखीं. आन्या बोनहोफ बताती हैं, "पिछले दशक में भी मैंने भारत में बहुत से बदलाव देखे हैं. कोलकाता में मेरे दोस्त महिलाओं की बराबरी के लिए और प्लास्टिक के इस्तेमाल के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं." आन्या बोनहोफ को मलाल इस बात का है कि भारत में भी जीवन बहुत तेज हो गया है और पश्चिम से ली गई कुछ जीवनशैली ने भारतीय अस्मिता को दबा दिया है या ढक दिया है. इस समय आन्या बोनहोफ पुरुलिया में पानी के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं जो खासकर निचले तबके के लोगों के लिए बड़ी समस्या बनता जा रहा है. वे कहती हैं कि उन्हें भारत में काम करना बहुत पसंद है. "यहां बहुत सी ऐसी चीजें सघन रूप में मौजूद हैं जिनका हम पूरी दुनिया में अलग अलग पैमाने पर सामना कर रहे हैं." उनमें ऐसी समस्याएं भी हैं जिनके खिलाफ गांधीजी भी लड़ रहे थे.
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तस्वीरों में देखें महात्मा गांधी की जीवन यात्रा