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लीबिया पर अगर मगर में उलझा नाटो

२१ मार्च २०११

लीबिया में मुअम्मर गद्दाफी के खिलाफ कुछ पश्चिमी देशों की मुहिम में शामिल होने पर नाटो में अब भी मतभेद हैं जिन्हें दूर करने के लिए पश्चिमी सैन्य संगठन की ब्रसेल्स में बैठक हुई. फ्रांस ने कहा, जल्द ही नाटो साथ होगा.

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नाटो प्रमुख अंदर्स फो रासमुसेनतस्वीर: dapd

हफ्तों तक चली चर्चा के बाद रविवार को नाटो के राजदूतों ने उस अभियान योजना को मंजूरी दे दी जिसमें लीबिया को हथियारों की आपूर्ति रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के कदम को लागू करने में मदद की बात शामिल है. लेकिन उनके बीच अब भी इसे लागू करने और नो फ्लाई जोन को लागू करने में नाटो की भूमिका पर मतभेद हैं.

पश्चिमी सैन्य गठबंधन नाटो का सहयोगी देश तुर्की लंबे समय से लीबिया में हस्तक्षेप न करने को कहता रहा है. सोमवार को तुर्की के प्रधानमंत्री रैचप तैयब एर्दोआन ने कहा कि उनका देश नाटो की भूमिका से पहले बहुत सी शर्तें चाहता है. तुर्की चाहता है कि गद्दाफी की सेनाओं के खिलाफ जारी अंतरराष्ट्रीय सैन्य अभियान जल्द से जल्द खत्म होना चाहिए, ताकि लीबिया अपने भविष्य को तय कर सके. एर्दोआन ने कहा कि ऐसा न हो कि सैन्य हस्तक्षेप का समापन कब्जे के रूप में हो.

नाटो से परहेज क्यों

राजनयिकों का कहना है कि लीबिया पर सैन्य कार्रवाई की शुरुआत करने वाला फ्रांस भी जमीनी सतह पर नाटो की भागीदारी के हक में नहीं है क्योंकि अफगानिस्तान में लड़ाई की वजह से अरब दुनिया में नाटो की छवि अच्छी नहीं है. साथ ही इसे अमेरिकी दबदबे के तौर पर भी देखा जाता है. फ्रांस के रक्षा अधिकारियों का कहना है कि अगर नाटो को अभियान सौंप दिया गया तो इस हस्तक्षेप के लिए अरब लीग का समर्थन हासिल करना असंभव होगा. सोमवार को फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, "कोई फैसला नहीं हुआ है. नाटो अपना काम कर रहा है."

फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका के नेतृत्व में कई देश लीबिया हो रहे हवाई हमलों में हिस्सा ले रहे हैं, लेकिन एक संगठन के तौर पर नाटो की भूमिका को सिर्फ हवाई निगरानी तक सीमित रखा गया है. वैसे फ्रांस के विदेश मंत्री एलें ज़ुप्पे ने कहा कि कुछ दिनों के भीतर नाटो अंतरराष्ट्रीय गठबंधन सेना के हस्तक्षेप में मदद को तैयार हो जाएगा.

Flash-Galerie Libyen Beerdigung in Tripolis
तस्वीर: dapd

अभियान जारी

गद्दाफी समर्थकों को बेनगाजी पर नियंत्रण करने से रोकने के बाद पश्चिमी देशों की सेनाओं ने सोमवार को अपने हमलों का दूसरा दौर शुरू किया. वे लीबिया के वायुसैनिक ठिकानों को निशाना बना रहे हैं ताकि वायुक्षेत्र पर उनका नियंत्रण हो सके. लेकिन गद्दाफी के खिलाफ एक महीने से जारी विद्रोह में आम नागरिकों की रक्षा के लिए सुरक्षा परिषद ने हस्तक्षेप का जो प्रस्ताव पारित किया, अब अरब लीग को उस पर आपत्ति हो रहा है. लीग के मुखिया अम्र मूसा ने भारी बमबारी पर सवाल उठाया है जिसमें उनके मुताबिक आम लोग भी मारे जा रहे हैं.

ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और कनाडा समेत दूसरे देशों के साथ मिल कर लीबिया में हमले कर रहे अमेरिका ने कहा है कि उनका अभियान कारगर साबित हो रहा है और उन्होंने लीबिया की तरफ से रविवार को जारी नए युद्धविराम को खारिज किया है. ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसकी पनडुब्बी ने रविवार रात तोमाहॉक क्रूज मिसाइलें दागी.

अरब देशों के समर्थन का दावा

इराक पर 2003 में हमले के बाद यह किसी अरब देश में पश्चिमी देशों का का सबसे बड़ा हस्तक्षेप है. जानकार मानते हैं कि अगर इसे अरब दुनिया का समर्थन प्राप्त नहीं होता तो पश्चिम को बेहद मुश्किलें आ सकती हैं. अमेरिकी विदेश उप मंत्री मिशेले फ्लोर्नोय से जब मूसा की टिप्पणी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि लोग नो फ्लाई जोन को लागू करने के सैन्य आयाम को नहीं समझते है. लेकिन मैं आपसे कहता हूं कि हमें बहुत से अरब देशों से बराबर समर्थन के संदेश और बयान मिल रहे हैं."

उधर फ्रांस के सरकारी प्रवक्ता ने फ्रांसुआ बगुआ ने कहा, "आम लोगों के मारे जाने के बारे में कोई खबर नहीं है." लेकिन लीबियाई स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि पश्चिमी देशों की कार्रवाई में अब तक 64 लोग मारे गए हैं. इन खबरों की स्वतंत्र रूप से जांच संभव नहीं है. शनिवार और रविवार को अमेरिका और ब्रिटिश युद्धपोतों और पनडुब्बियों से तोमाहॉक मिसाइलें दागे जाने के बाद इटली ने भी कहा कि सैन्य कार्रवाई में उनके लड़ाकू विमान भी हिस्सा ले रहे हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ओ सिंह

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